ब्रज मंडल वर्णन/मधुर विलास/Braj Mandal Description/vrindavan dham

"ब्रज  मंडल  वर्णन"

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 हे तात विदुर जी!  मैं आप को ब्रज मंडल की सीमा का वर्णन करता हूँ।  इसकी चतुष्कोणीय परिक्रमा के दर्शनीय स्थल के संबंध में बतलाता हूँ।  श्रीकृष्ण भगवान् के प्रपौत्र श्री  वज्रभान जी ने महर्षि शाण्डिल्य आदि ऋषियों के निर्देशन में ब्रज मंडल की सीमा निर्धारण पूर्वक विशिष्ट लीला स्थानों की स्थापना की थी।
 हे तात विरूर!  ब्रज मंडल की एक सीमा पर वरहद नामक एक क्षेत्र है और दूसरी सीमा पर 'सोनहद', तीसरी सीमा शौरी राजा शूरसेन द्वारा स्थापित है जहाँ ब्रज में मोर नाचते हैं।ब्रज मंडल के उत्तर दिशा के छोर पर बड़ा सुहावना "कोल" नामक श्रेष्ठ पेड़ है। इस प्रकार

व्रजधाम का विस्तार चौरासी कोष के अंतर्गत बताया है।

 हस्तिनापुर नरेश श्री परीक्षित जी मथुराधीश श्री  वज्रभान से मिलने के लिए श्री मथुरा जी आये।  अपने चाचा जी का स्वागत करके वज्रभान बोले हे राजन!  मुझे मथुरा मंडल का राज्य पता नहीं क्यों प्रदान किया गया है?
 मेरे राज्य(इस ब्रज भूमि)में तो केवल वन ही वन हैं, मनुष्यों की बस्ती तो कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है। फिर भी भला  राज काज चलाना कैसे संभव है।
श्री परीक्षित ने कहा,हे तात वज्रभान!थोड़ा मन में धैर्य धारण करो। मैं वज्र ब्रजमंडल में रहने वाले श्रीशाण्डिल्य इत्यादि इत्यादिक  ऋषियों की सभा बुलाता हूँ जिसमें इस भेद का रहस्य जाना जा सकेगा।ब्रज मंडल की समस्त लीलाओं के प्रत्यक्ष दर्शी श्री शाण्डिल्य मुनि जी के साथ अन्य मुनियों को भी साथ में लेकर राजा परीक्षित एवं ब्रज मंडल के राजा  वज्रभान दोनों ने उन सभी स्थानों का भ्रमण किया जहाँ-जहाँ पर श्रीकृष्ण ने विविध लीलाये की थीं।

उस समय गुरुवर शाण्डिल्य मुनि जी ने कहा था, "

इस पावन ब्रज भूमि पर श्रीकृष्ण ने जहाँ-जहाँ पर जो-जो लीलायें की थीं विवि लीलायें आज भी मेरे इन नयनों में नाच रही हैं।उसमें मधुर लीलाओं की भीनी-भीनी सुगंधि आज भी व्याप्त है। मैं आप लोगों को वहाँ पर ले जाकर दर्शन कराता हूँ।" यह तो  ब्रज भूमि है वह  तो पर ब्रह्म स्वरूप है।यह मुक्ति दायिनी भूमि है।सर्वोत्तम स्वरूप है,आनंदकंद भगवान् के पद रज की दात्री है तथा समस्त पाप हनी है। स्कन्द पुराणान्तर्गत  भागवत महत्म्य में कहा है -
 गुणातीतंं परं ब्रह्म व्यापकं ब्रज  उच्यते।
सदानन्दं परं ज्योतिर्मुक्तानां पदमब्ययम् 
श्रीकृष्ण के ब्रजधाम से जाने के बाद जब ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण का विरह सताने लगा तो वे वीरह  व्यथित होकर कोई तो कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलने के लिए सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र चले गये तथा कोई भक्त द्वारिका धाम की ओर चले गये। ब्रज मंडल वीरह में डूब गया। सारा नुकसान हो गया।
दोनों राजा परीक्षित एवं वज्रभान ने समस्त ब्रज मंडल का सर्वप्रथम भ्रमण किया। इस कार्य से उन दोनों को ही  अत्यधिक परमानंद की अनुभूति हुई।
ब्रज रस का यह  दिव्य आनंद राजा के साथ अन्य सभी प्रजा ने भी प्राप्त किया।बाद में  राजा परीक्षित एवं वज्रभान जी ने इस भूमि को  मसाने का प्रयास किया ग्राम,नगर,मठ,मंदिर, देवालय,सरोवर आदि की स्थापना की। राजा परीक्षित ने इंद्रप्रस्थादि नगरों से लोगों को लाकर यहां पर बसाया। कहा भी है-
ततस्तु विष्णुरातेन श्रेणीमुख्याः सहसृशः ।
इंद्र प्रस्थात् समानाय्य मथुरास्थानमापिता।।

 विष्णुराज परीक्षित ने विभिन्न श्रेणी के लोगों को  लाकर हजारों की संख्या में मथुरा आदि ब्रजमण्डल में बसाया ।

चारों वर्णों के लोग ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य,शूद्र,ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास चारों आश्रमों के जन नगर और गाँवों में आकर बस गये। सब अपने-अपने कार्यों में लग गये।किसान आकर ब्रज मंडल में खेती बाड़ी का काम करने लगे। ब्रज मंडल के अंतर्गत आने वाले  बारह वनों एवं  बारह  उपवनों की अनुपम शोभा को देखकर  वज्रभान बड़े ही आनंद में विभोर हो गये।
ब्रजधाम की अनुपम सुंदरता से मधुराधिपति का मानसिक   विक्षेप जो था वह दूर हो गया। राजा परीक्षित ने ब्रज मण्डल में अनेक मंदिर,कूप,तालाब,बावड़ी,बगीचे, बाग आदि का निर्माण करवाकर सुंदर रूप में सजा दिया। फिर राजा परीक्षित को अपने राज्य में जाने के लिए विदाई की।
परीक्षित् जी के जाने के बाद वज्रभान जी का ध्यान ब्रजमण्डल की पुनः स्थापना की ओर ही लगा रहा उन्होंने ब्रज मण्डल में पच्चीस सौ मंदिरों का निर्माण करवाया। उन मंदिरों में भगवान की सुंदर आकृति पूर्ण दिव्य मूर्तियों की स्थापना की ।बारहवन, बारह उपवन, बारह अधिवन और बारह प्रतिवन  करके  कुल अड़तालीस छोटे-बड़े वनों के दर्शन किये। भगवान् की गौचारणादि लीला के  रस काआनंद प्राप्त किया।

स्कंद पुराण के प्रसंग में सुंदर चित्रण है।

            कुण्डकूपापूर्तेन     शिवादिस्थापनेन  च।
            गोविंद  हरि देवादि  स्वरूपारोपणेन  च।
            कृष्णैक भक्तिं राज्ये ततान च मुमोद च।।
 कुंड,बावड़ी,सरोवर,आदि के निर्माण,गोपेश्वर, भूतेश्वरादि शिवालय स्थापन गोविंददेव,हरिदेव,केशव देवादि श्रीकृष्ण विग्रहार्चनादि अनेक कार्य करके राजा वज्रभान ने अपने राज्य मथुरा में श्री कृष्ण भक्ति का विस्तार किया और स्वयं आनंदित रहे।

 उद्धव जी कहते हैं- हे तात विदुर!  ब्रजमण्डल के प्रसिद्ध बारह वनों का नाम मैं आपको सुनाता हूँ। 

तालवन,महावन,कुमुदवन,कोकिलावन,भण्डीरवन, काम्यवन,खदिरवन,छत्रवन,भद्रवन,बहुलावन, लोहवन,और  विद्रूमवन। इनके नाम  वेद व्यास जी ने अपने पुराणों  स्कंद,  ब्रह्मवैवर्त, भागवत, पद्मपुराण,आदि में किया है। यहाँ पर शाण्डिल्य मुनि ने दोनों राजाओं को उनका परिचय पूर्वक दर्शन करा कर भाव विभोर कर दिया।
ब्रह्म वन,अप्सरा वन, विव्हल वन,  कदम्ब वन,  मयूरवन,  स्वर्ण वन, प्रेम वन, सुरभि वन, मानेगिंत वन, खेल वन, शेषशाई वन,  और नारद वन, ये बारह आनंदप्रद उपवन भी राजाओं  को ऋषियों ने दिखाए।
  शहर  या बस्ती करवा से जुड़े हुये वनों को अधिवन की संज्ञा दी जाती है जहाँ पर भगवान् ने गौचारण, बालकेलि  आदि के माध्यम से अनेक लीलायें की हैं। उन लीला गायन पूर्वक ऋषियों ने इनका दर्श करा कर  भाव विभोर कर दिया।  ये बारह अधिवन  इस प्रकार हैं- मथुरा वन, राधकुण्डवन,भानपुर (बरसाना वन) वन, ललित वन, गढ़वन, गोकुल वन, गोवर्धन वन, मधुवन, नंदग्राम वन, वृंदावन, संकेत वन, और जांववन हैं।
 यह ब्रज भूमि श्रीकृष्ण की अपनी लीला भूमि है। प्रभु ने इस भूमि पर अनंत-अनंत लीलायें की हैं।यह अल्प जीव कभी भी  कल्पना मात्र से भी उन लीलाओं का अन्त्य पा सकता है क्या?कभी भी कैसे पा सकता है क्योंकि उन लीलाओं का  कोई अन्त्य नहीं है।
 हेविदुर जी!  अब मैं आपको आनंदकंद भगवान यादवेंद्र के भक्तों को आनंद प्रदान करने वाले बारह    प्रतिवन  बताने  जा रहा हूं,कृपया मन लगाकर सुनिए।

पूर्व में वर्णित बारह प्रतिवन के नामों का उल्लेख करते हैं।  

वे इस प्रकार हैं- रंगवन,  वारतावन,  वत्स वन, करहवन, प्रेक्षनवन,   कामवन, कृष्ण द्वीपनवन,   कर्णवन,  नंदनवन, तपोवन, अंजनवन और सुंदरवन हैं।  यह वन  इंद्रादि  देवताओं को भी लालायित करने वाले हैं।  जहाँ पर श्री हरि ने प्यारी-प्यारी लीलाये की हैं।ऋषि शांडिल्य ने घूम-घूम कर ब्रज मण्डल की इन  स्थलीयों का परिचय कराया।
 राजा वज्रभान के मन में ब्रज मण्डल के विषय में जो भी जिज्ञासा थी उसे ऋषियों के समूह ने श्रीहरि की लीला स्थली का दर्शन करा कर उसका समाधान कर दिया। वज्रभान भी अपने कार्य में  लग गये ब्रजमण्डल की लीला स्थली का पुनरुद्धार होने लगा। अब उद्धव जी विदुर जि से कहते हैं- हे काका विदुर! आपने उपरोक्त प्रश्न क्रम में  मुझ से एक प्रश्न किया  वह मेरे मन को नहीं भा रहा हैं आप नें भगवान् श्री कृष्ण के अवतार के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य शरीर की तुलना सामान्य पांच भौतिक शरीर वाले प्राणी से की है -आपने पूछा है-
           लख चौरासी  देह जीव  हरि जो वपु धारे    ।
           क्या है अन्तर उभय बीच कहु उधव प्यारे।।
 चौरासी लाख प्राणी के देहधारी जीव में और अनेक अवतार धारी श्री कृष्ण के देह में क्या अंतर है? वही गर्भ का वास जन्म आदि तो एक जैसे ही प्रतीत होते हैं।

मधुर विलास- मीत, श्री जगदानन्द जी महराज

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