रामायण कथा हिंदी में लिखित pdf
एक बात और समझने लायक है कि जो गंगा काशी, प्रयाग आदि तीर्थों को संस्पर्शित करते हुए समुद्र में जाकर मिलती है, उनका मूल उत्स, मूल उद्गम, मूल स्त्रोत क्या है ? जब आप इसकी गवेषणा करते हैं तो आप पाते हैं कि वह हिमालय की गंगोत्री से प्रगट हो करके और समस्त तीर्थक्षेत्रों का संस्पर्श करते हुए उदधि में जा करके मिल जाती है |
उसी प्रकार राम कथा की गंगा सर्वप्रथम कहां से चली ?
जब आप इसका अन्वेषण करेंगे तो आप पाएंगे यह राम कथा की गंगा सर्वप्रथम महर्षि बाल्मीकि के लेखनी से प्रसूत हुई, प्रभुत्व हुई, प्रगट हुई इसका मूल उत्स, मूल स्त्रोत्र महर्षि बाल्मीकि की लेखनी है |
बाल्मीकिगिरि सम्भूता रामसागर गामिनी |
श्रीमद्रामायणी गंगा पुनाति भुवनत्रयम् ||
तो राम कथा का जो मुख्य उत्स है वह महर्षि बाल्मीकि की लेखनी है | एक बात और अच्छा धारा तो वहां गंगोत्री से बहुत पतली चलती है लेकिन जब वह मूल स्रोत आगे बढ़ता है तो बहुत सी नदियां इसमें मिलती है और फिर उसे समस्त समिश्रित जल को हम गंगा जी ही कहते हैं |रामायण कथा हिंदी में लिखित pdf
अब आप विचार करें रास्ते में अनेक नदियां और नाले मिलते हैं ,
लेकिन गंगा जी का संस्पर्श होने के कारण हम सबको गंगाजी ही कहते हैं, लेकिन यदि मूल स्रोत बंद हो जाए, मूल उत्स बंद हो जाए तो रास्ते में नदियां और नाले मिले तो क्या हम उन्हें गंगाजी कहेंगे ? वैसे ही प्रथम राम कथा की गंगा महर्षि बाल्मीकि की लेखनी से ही प्रकट हुई, उद्भूत हुईयह जो रामायण है ना यह मानव जीवन का संविधान है |
एक मनुष्य का आचरण क्या होना चाहिए ? वेदव्यास जी ने रामावतार का यही प्रयोजन भागवत महापुराण के पंचम स्कंध में बतलाये हैं-
मर्त्यावतारस्तुहमन्त्यर्शेक्षणं रक्षो भिदाहि न केवलः विभुः |
राम जी के अवतार का प्रयोजन है, सज्जनों की रक्षा करना और मानवों को आचरण की शिक्षा देना | एक और बात आती है पंचम स्कंध में कोई व्यक्ति अपने जीवन को जीना चाहे तो उसकी कसौटी क्या है ?कोई सोना खरा है उसकी कसौटी है चौबीस कैरेट का होना चाहिए, तब वह खरा सोना है | वैसे ही मानव जीवन की कसौटी क्या है ? तो वेदव्यास जी ने भागवत के पंचम स्कंध में लिखा है- किम् पुरुष के वर्णन में---
ॐ नमो भगवते उत्तमश्लोकाय आर्य लक्षण शीलव्रताय साधुवादनिकक्षणाय श्री राम चन्द्राय |
कोई सज्जन, कोई साधु, कोई मानव अपने चरित्र की कसौटी देखना चाहता है तो वह कसौटी भगवान श्री राम जी का चरित्र है | भगवान श्री राघवेंद्र का चरित्र मानव जीवन का मापदंड है, मानव जीवन का मानक है यदि उस चरित्र पर आपका चरित्र खरा उतरता है , तो आप समझें कि आप एक श्रेष्ठ मानव बन रहे हैं |रामायण कथा हिंदी में लिखित pdf
उसकी कसौटी है राम जी का चरित्र और सर्वप्रथम राम जी के चरित्रों को महर्षि बाल्मीकि ने श्री रामायणम् के रूप में अवतरित कराया |
दो गंगा हमारे जीवन में हैं, एक गंगा तो श्री राम जी के चरण से प्रगट हुई है और दूसरी गंगा भगवान श्री राम के आचरण से प्रकट हुई है | तो वह जो गंगा है उसको आज हम भागीरथी गंगा कहते हैं और यह आचरण की जो गंगा है इसे हम रामायणी गंगा कहते हैं |
श्री रामायणी गंगा पुनाति भुवनत्रयम् |
एक बात और बाल्मीकि रामायण में कोई मंगलाचरण महर्षि बाल्मीकि जी ने नहीं किया, यह अद्भुत बात है अन्य जितने भी ग्रंथ है सब में मंगलाचरण है, श्री भागवत जी में जन्माद्यस्य* एक ऐसे आचार्य हुए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज जो इतनी बंदना किसी ग्रंथ में नहीं की गई जितनी बंदना तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में किया | और कहा जाता है आस्तिकों का ग्रंथ है कि आरंभ में मंगलाचरण होना चाहिए, किसी देवी देवता को प्रणाम होना चाहिए | लेकिन महर्षि बाल्मीकि ने तो कोई मंगलाचरण किया ही नहीं, सीधे--तपः स्वाध्याय निरतं तपस्वी वाग्विदांवरम् |
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वस्तुलाभकरुणस्तु तकारः सख्यदायकः |
तकार ही मंगलाचरणात्मक है, लेकिन सीधी बात तो यह है कि मंगलाचरण करते दिखाई नहीं देते | मंगलाचरण क्यों करना चाहिए ? इस पर बड़ा विमर्श है और बड़ा शास्त्रार्थ है--
ननु मङ्गलं न वृधस्वंवा न समाप्तिंर्प्रतिकारणम्
ना अवगीध शिष्टाचार विशत्वेन सफलत्वे सिद्धे तत्र च फल जिज्ञासायां सम्भवति दृशफलकत्वे दृशफलकल्पनाय अन्यातत्वात् |
न्याय सिद्धांत मुक्तावली में तो पूरा शास्त्रार्थ है कि ग्रंथ के आरंभ में मंगलाचरण क्यों करना चाहिए और जो उसका निर्णय हुआ वह यह हुआ कि
विघ्नविघातकाय कृतं मङ्गलम् शिष्य शिक्षायैनिबध्नाति |
हमारे कार्य के मध्य में कोई विघ्न ना आए इसलिए हमें मंगलाचरण करना चाहिए | तो किसी ने कहा हाथ जोड़कर, आंख बंद करके मंगलाचरण कर लेते लिखकर करने की क्या जरूरत है ? तो कहा कि( शिष्य शिक्षायै निबध्नाति )
आने वाली शिष्य परंपरा भी जाने की ग्रन्थ के आरंभ में मंगलाचरण करना चाहिए | तो महर्षि बाल्मीकि ने क्यों नहीं किया ? कहा महर्षि बाल्मीकि का तात्पर्य यह है कि यह जो राम जी की कथा है ना यह स्वयं अपने आप में मंगलात्मक है यह राम जी का संपूर्ण चरित्र , संपूर्ण कथा ही मंगलात्मक है , इसलिए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि यह जो रामचरित्र है--
मंगल करणि कलि मल हरणि
तुलसी कथा रघुनाथ की |
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हमारे एक दक्षिणात्य के आचार्यों ने कहा है कि यह शरणागति का ग्रंथ है , एक बार जीव शरणागत हो जाए तो उसके जीवन में कोई विघ्न आ ही नहीं सकता |
कहा तो सबने हैं लेकिन विश्वास जताया केवल और केवल महर्षि वाल्मीकि जी ने कि हम जब प्रभु शरणागत होंगे तो विघ्न की संभावना ही नहीं है , इसलिए मंगलाचरण का कोई आश्रय नहीं लिया | देवर्षि नारद से शोलह प्रश्न पूंछे और उसके उत्तर में देवर्षि नारद ने कहा--