जगाई मधाई उद्धार
श्री चैतन्य महाप्रभु ने नवद्वीप में भगवन नाम के प्रचार का कार्य सौंपा था- श्री नित्यानंद जी और हरिदास जी को | घर-घर जाकर प्रत्येक व्यक्ति से हरी नाम की भिक्षा मांगनी थी उन्हें |उन दिनों नवद्वीप में दो उद्धत पुरुष थे , उनका नाम तो जगन्नाथ है और माधव था,
किंतु जगाई मधाई नाम से ही हुए प्रसिद्ध थे |
उनके आतंक से नगर काँपता रहता था, शराब के नशे में चूर हुए कभी एक मोहल्ले में अड्डा जमाते, कभी दूसरे मोहल्ले में | जुआ,अनाचा, हत्या, विना कारण किसी को निर्दयता पूर्वक पीटना, किसी को लूट लेना उनके जीवन में अत्याचार और पाप छोड़कर और कुछ था ही नहीं |जो सबसे अधिक गिरा है वही सबसे अधिक दया का पात्र है,
वही सबसे पहले उठाने योग्य है भगवन्नाम दान का वही प्रथम पात्र है, नित्यानंद जी के विचारों को अस्वीकार कोई कैसे करेगा | वे दयामय हरिदास जी के साथ उन मद्यप क्रूरों को भगवान्नाम दान करने पधारे |हरी बोलो ! एक बार हरी बोलो ! यही उनका संदेश था , मद्य के नशे में चूर मधाई क्रुद्ध हो उठा , उसने नित्यानंद जी पर आघात किया मस्तक फट गया रक्त की धारा चल पड़ी है, फिर मारता किंतु उसके भाई जगाई ने उसे रोक लिया | नित्यानंद जी के मस्तक से रक्त बह रहा था, जगाई मधाई ने मारा है, उन्हें ! समाचार पहुंचा गौरांग महाप्रभु के समीप, महाप्रभु सुनते ही आवेश में आ गए-- श्रीपाद नित्यानंद पर आघात ! दौड़े महाप्रभु ! भक्त मंडली साथ गई दौड़ते हुए |किसने मारा है श्री पाद को ? महाप्रभु के नेत्र अरुण हो रहे थे,