संसार के सम्मान का स्वरूप
[ सफलता ]
संसार के लोग सम्मान करें ,घर के लोग सत्कार करें, कौन नहीं चाहेगा सम्मान किसे मीठा नहीं लगता, लोग हमारा सम्मान करते हैं लोग हमारा सत्कार करते हैं , कितना मोंह है | इससे बड़ा भ्रम कोई दूसरा भी होगा कठिन ही है ,
संसार केवल सफलता का सम्मान करता है
घर के लोग केवल अपने स्वार्थ की सिद्धि का सत्कार करते हैं, व्यक्ति का कोई सम्मान,सत्कार नहीं करता | एक व्यक्ति युवक है, स्वस्थ है, सबल है , भाग्य अनुकूल है, उपार्जन करके घर लौटा है, घर के लोग बड़ी उमंग से उसका स्वागत करते हैं | पत्नी का तो वह पूज्य ही है , वह चरणों पर पुष्प चढ़ाती है, माता आरती उतारती है, पिता आलिंगन करने को आगे बढ़ते हैं, घर के भाई बंधु सगे संबंधी सभी स्त्री-पुरुष उसके सत्कार में जुट पडते हैं | घर के लोग तो घर के हैं, पास पड़ोस के लोग ब्राह्मण तथा जाति- भाई छोटे बड़े सभी परिचित उससे मिलने दौड़े आते हैं, उसे आशीर्वाद मिलता है ,सम्मान प्राप्त होता है,
अपरिचित भी उससे परिचय करने को उत्सुक होते हैं,
उसमें गुण ही गुण दिखते हैं सबको , उसकी भूलें भी गुण जान पड़ती हैं , उसे स्वयं लगता है संसार बड़ा सुखद है | लोग बड़े ही सज्जन सुशील और स्नेही हैं, उस व्यक्ति का स्वागत सम्मान है यह उसके गुणों की पूजा है, वह भले भूल जाए , लोग मुख से भले बार-बार उसकी और उसके गुणों की प्रशंसा करते ना थकें- है यह केवल उसकी सफलता की पूजा | उसने सफलता प्राप्त की उससे परिवार का स्वार्थ सिद्ध हुआ है, बस उसके सम्मान का यही कारण है |
[ असफलता ]
व्यक्ति वही है उसके गुण कहीं नहीं चले गए, हुआ इतना कि वह निर्धन हो गया , भाग्य उसके अनुकूल नहीं रहा, उसे उद्योगों में सफलता नहीं मिली, किसी के बस की बात है कि वह रोगी ना हो , काल की गति को कोई कैसे अटका सकता है और चंचला लक्ष्मी जब जाना चाहती है ,उन्हें कोई रोक सकता है ?
इसमें मनुष्य का क्या दोष ?
उसकी उम्र बड़ी हो गई , वह शक्ति हीन हो गया ,उद्योगों में असफल होकर कंगाल हो गया, उसमें उसका कुछ दोष है ? दूसरे और घर के समीप का व्यवहार उसके प्रति ऐसा हो गया जैसे यह सब उसी का दोष है | उसके गुण भी सबको दोष जान पड़ते हैं, वह कोई शुभ सम्मति भी देना चाहता है तो दुत्कार दिया जाता है | पांस पड़ोस के परिचित उसके मित्र तक द्वार के सामने से चले जाते हैं और पुकारने पर भी उसकी ओर देखते तक नहीं , बड़ी शिष्टिता कोई दिखलाता है तो कह देता है- बहुत आवश्यक काम से जा रहा हूं फिर कभी आऊंगा ? वह फिर कभी जानता है कि उसे कभी नहीं आना है |
अपने घर के लोग अपने सगे पुत्र तक उसे बार-बार झिड़क देते हैं,
वह कुछ पूंछता है तो उसे कहा जाता है तुमसे चुपचाप पड़े भी नहीं रहा जाता | उसकी पत्नी वही पत्नी जो कभी उसके पैरों को पूजा करती थी , दो क्षण को उसके पास नहीं बैठती ! कोई काम ना रहने पर भी वह दूर- उससे मुख फिराकर बैठे रहना चाहती है ! माता गालियां बकती हैं, पिता इज्जत बर्बाद कर देने वाले बेटे को मारने दौड़ते हैं, उसका स्वागत सत्कार और आज का तिरस्कार,उपेक्षा लेकिन संसार ने उसका स्वागत किया कब था ?
संसार तो सफलता का स्वागत करता था ! मनुष्य संसार के सम्मान के धोखे में पडा रहे उसी का तो अज्ञान है |