[ श्री गीता सार ]
हमें सत्य मार्ग पर चलने के लिए भगवत गीता का ज्ञान और सदगुरु के आज्ञा का पालन करना ही होगा, श्री पद्मनाभ भगवान जी के श्री चरणों में मिलने का साधन भी यही है, यह सत्य वचन है |
श्रीमद भगवत गीता का ज्ञान इस प्रकार है-
हमें सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण जी को अपने जीवन का सारथी बनाना है, सारथी का अर्थ है कि हमें भगवान श्री कृष्ण जी के इशारे ( संकेत ) पर चलना है |इस प्रकार प्रार्थना करनी है-
हे नाथ ! जिस प्रकार आप अर्जुन के रथ के सारथी बने, उसी प्रकार मेरे जीवन के सारथी आप बनें | मेरे शरीर की इंद्रियां रूपी घोड़े मेरे अंकुश ( नियंत्रण ) में न रहें तो, हे प्रभु इन्हें आप अंकुशित कर देना और इस जीवन ( शरीर रूपी रथ ) को सकुशल भवसागर रुपी रणक्षेत्र से पार कर देना | मैं आपकी शरण में हूं और आप की वंदना करता हूं | भगवान को सारथी बनाने से साधक - जीव उनकी शरण में आ जाता है | ऐसा साधक हर पल भगवान को पुकारता है | भगवान अपने शरणागत साधक भक्त के संशयों- भ्रांतियों का निवारण करते रहते हैं और उसकी भाव भक्ति के अनुसार प्रकट हो जाते हैं |साधक स्वयं निर्णय नहीं ले पाता कि सत्य क्या है ?
असत्य क्या है ? कर्तव्य क्या है और अकर्तव्य क्या है ? पाप पुण्य क्या है ? सत्य को प्रकट करने के लिए भगवान सदगुरुदेव के रूप में प्रकट हो जाते हैं, संतों का प्राकट्य करा देते हैं | यह सदगुरुदेव जी की कृपा का फल है जो प्रकट रूप से उनका आगमन हो रहा है | सद्गुरु कृपा के बिना मन की निवृत्ति नहीं है |सदगुरु ही मन का निरोध कराते हैं | हम परम गुरुदेव जी को श्री कृष्ण को नमन करते हैं उन्हें हमारा कोटिशः प्रणाम है |संशयो भ्रान्तियों का निवारण होने के बाद ही साधक को वास्तविक ज्ञान होता है |
वह इस बात पर विचार करता है कि भगवान ने मुझे अपने कल्याण के लिए चौरासी के चक्कर से मुक्त करके इस साधक के रूप में भेजा है | अब मुझे अपना कल्याण करना है | साधक परम गुरुदेव भगवान जी की शरण में आता है और सिद्ध मूर्ति सदगुरुदेव भगवान साधक भक्त एवं शिष्ष का कल्याण एवं मार्गदर्शन के लिए दिव्य रूप में प्रकट होते हैं |
साधक सदगुरुदेव भगवान जी की शिक्षा एवं आज्ञा को ग्रहण करता है इससे साधक शिष्य एवं भक्तों को सत्य का ज्ञान हो जाता है |
साधक के हृदय में सतगुरु भगवत स्वरूप में प्रकट होकर लीला करने लगते हैं, भगवान अपने स्वरूपों का ज्ञान करा देते हैं प्रभु की प्रभुता यही है, सदगुरुदेव भगवान की कृपा से साधक को भगवत स्वरूप का ज्ञान हो जाता है , सर्व स्वरूप भगवान ही हैं | सब के मालिक सब के पालनहार और सब के भर्ता ( भरतार ) भगवान ही हैं |भगवान अपने स्वरूप का महत्व बताकर भक्तों के मन का विश्लेषण करा देते हैं उसे अपनी ओर मोड़ लेते हैं , इससे भक्तों का मन संसार से निवृत्त होकर सत्य स्वरूप भगवान में लग जाता है |देखो अब साधक के हृदय में अंतः करण में सदगुरु प्रवेश हो जाते हैं, कभी भगवान सदगुरुदेव रूप में प्रकट होते हैं और कभी सदगुरुदेव भगवत स्वरूप में प्रकट होने लगते हैं | भगवान कभी विरक्त संतो के साथ प्रकट हो जाते हैं यह भगवान की दिव्य लीला है | वह साधक को भक्ति का ज्ञान कराते हैं, इससे भक्त साधक के अनंत जन्मों के कोटि कोटि अपराध पापों का क्षय हो जाता है, शुद्धिकरण हो जाता है इससे साधक को भक्ति योग में प्रवेश मिलता है |संसार की जड़ता से संबंध विच्छेद ( टूटता ) है |
उसकी अविद्या की ग्रंथी टूट जाती है |
साधक के अंतः करण में सत्य का प्रकाश हो जाता है |भगवान के दर्शन उसके हृदय में होने लगते हैं , ऐसा होने पर भगवान और साधक का सानिध्य हो जाता है , हर पल भगवान साधक के लिए और साधक भगवान के लिए प्रगट रहते हैं | अदृश्य नहीं होते सत्य बात तो यही है |अर्जुन पापों से मुक्ति चाहता था उससे छूटना चाहता था इसलिए उसने भगवान श्री कृष्ण जी का आश्रय लिया, जिससे कि वह पापों से मुक्त हो गया | भगवान जी ने उसे शरणागति का रहस्य समझाया | ईश्वर शरणागति में मनुष्य साधक मोक्ष के साथ-साथ भगवान के परम प्रेम ( अनन्त रस ) एवं भक्ति को प्राप्त कर लेता है , शरणागति द्वारा साधक भगवान के अद्वैत स्वरूप को पाता है उसे परम गुरुदेव भगवान जी की आध्यात्मिक प्रेरणाओं में प्रवेश मिल जाता है |
इससे उसे भगवान के गुप्त से गुप्त रहस्यों का ज्ञान हो जाता है |
भगवान और भक्त का मिलन हो जाता है |भगवत शरणागति से साधक का अहं नष्ट हो जाता है , अनंत रस का कुंड उसके अंतः करण में बन जाता है और यह साधक का गुणातीत स्वरूप है | शरणागति से साधक की दृष्टि भगवान के श्री चरणों में स्थिर हो जाती है ,इस अवस्था में कुछ करना पाना शेष नहीं रहता सादर प्रणाम गुरुदेव भगवान जी की असीम कृपा से कृतकृत्य हो जाता है ,साधक पद्मनाभ भगवान जी के दर्शन करता है यह दर्शन ही साधक का विश्राम स्थल है उसके जीवन का लक्ष्य है | इसके बाद आवागमन नहीं रहता जन्म मृत्यु नहीं होती, साधक केवल भगवत आज्ञा स्वरूप रहता है |