motivational-story ऐ दिल अपने भीतर से तू आप जाग |

motivational-story ऐ दिल अपने भीतर से तू आप जाग |
motivational-story ऐ दिल अपने भीतर से तू आप जाग 

 अपना पर्दा आप ही-

सच है जब तक अपने आपको स्वयं लेक्चर नहीं दोगे , दिल की तपन क्यों बुझने की है ?
तो खुद हिजाबे-खुदी ए दिल ! अज मियां बर खेज | अपना आवरण तू आप बना हुआ है, अतएव ऐ दिल अपने भीतर से तू आप जाग |
हम बगल तुझसे रहता है , हर आन राम तो |
बन पर्दा अपनी वस्ल में हायल हुआ है तू ||
अपने हाथों से अपना मुंह कब तक ढाँपोगे?
 बर चेहरा-ए तो नकाब ता के |
बर चश्मा ए-खोर साहब ताके ||
तेरे चेहरे पर पर्दा कब तक रहेगा, सूर्य पर बादल कब तक रहेगा ?

 एकमेवाद्वितीयम

रो-रोकर रुपयों को इकट्ठा करना और उससे जुदा होते समय फिर रोना, यह रुपए के पीछे पागल बनना अनुचित है | अपने स्वरूप के धन को संभालो | बात-बात में लोग क्या कहेंगे हाय- अमुक व्यक्ति क्या कहेगा - इस भय से सूखते जाना, औरों की आंखों से हर बात का अंदाजा लगाना , केवल जनता की सम्मति से सोचना, अपनी निजी आंख और निजी समझ को खोकर मूर्ख और पागल बना अनुचित है | मिटाओ द्वैत का नाम और चिन्ह और अपने आप को संभालो | दिवाल घड़ी के पेंडुलम के अनुसार दुख और सुख में थरथराते रहना हताश कर देने वाला पागलपन है ,

इसे जाने दो अपने अकाल स्वरूप में स्थित हो जाओ |

 धन में, भूमि में, संतति में, मान में और संसार की सैकड़ों वस्तुओं में प्रतिष्ठा ढूंढने वालों तुम्हारे सैकड़ों उत्तर सब के सब अशुद्ध हैं | एक ही ठीक उत्तर तब मिलेगा जब अहंकार को छोड़ देह और देहाध्यास के भाव को ध्वंस कर और द्वैत भिन्न दृष्टि को त्याग कर सच्चे तेज और प्रताप को संभालोगे | इस प्रकार और केवल इस प्रकार अन्य का नाम नहीं रहने पाता , द्वैत और ननात्व का चिन्ह बाकी नहीं रहता , परम स्वतंत्र - परम स्वतंत्र एकमेवाद्वितीयम्, एकमेवाद्वितीयम् |

क्लेश और दुख क्या है ?

 पदार्थों को परिछिन्न दृष्टि से देखना , अहंकार की दृष्टि से पदार्थों का अवलोकन करना , केवल इतनी ही विपत्ति संसार में है और कोई नहीं | संसारी लोगो विश्वास करो दुख और क्लेश केवल तुम्हारा ही बनाया हुआ है अन्यथा संसार में वस्तुतः कोई विपक्ति नहीं है | संसार के बगीचे में पुष्प से इतर कुछ नहीं, अपना भ्रम छोड़ो यही एक कांटा है |मैं स्वतंत्र हूं, मैं स्वतंत्र हूं शौक से नितांत दूर हूं |संसार रूपी बुढ़िया के नखरे और हाव-भाव से में नितांत मुक्त और परे हूं | यह संसार रूपी बुड़िया यह सुन नखरे वखरे मत कर, तुझसे मेरा चित्त आसक्त नहीं | ईश्वर में रहकर कर्म कीजिए
सफलता प्राप्त करने के लिए , समृद्धि शाली बनने के लिए आपको अपने काम से, अपने जीवन के दैनिक व्यवहार से, अपने शरीर और पुट्ठों को कर्मयोग की प्रयोगाग्नि में भस्म कर देना होगा , दहन कर देना होगा | आपको अवश्य ही उनका प्रयोग करना होगा, आपको अपना शरीर और मन खर्च करना पड़ेगा , उन्हें जलती हुई अवस्था में रखना पड़ेगा , अपने शरीर और मन को कर्म की सलीबपर चढ़ाओ , कर्म करो, कर करो और तभी आपको भीतर से प्रकाश प्रदीप्त होगा | शरीर निरंतर काम में लगा रहे और मन अराम और प्रेम में डूबा रहे, तो

  आप यहीं इस जीवन में पाप और ताप से मुक्ति पा सकते हैं |

 ईश्वर आपके द्वारा काम करने लगे फिर आपके लिए कर्तव्य जैसी कोई चीज ना रहेगी, ईश्वर आप के भीतर से चमकने लगे , ईश्वर आपके द्वारा प्रगट हो , ईश्वर में ही रहिये-सहिये, ईश्वर को खाइए और ईश्वर को ही पीजिए, ईश्वर से स्वास लीजिए और सत् का साक्षात कीजिए | शेष काम अपने आप होते रहेंगे | राम आपसे कहता है अपना कर्तव्य करो, पर ना कोई प्रयोजन हो और ना कोई इच्छा , अपना काम भर करो,  काम में ही रस लो क्योंकि काम स्वयं सुख रूप है , क्योंकि ऐसा काम ही साक्षात्कार का दूसरा नाम है |अपने काम में जुट जाओ क्योंकि काम तो तुम्हें करना ही होगा काम ही तुम्हें साक्षात्कार पर पहुंचा देगा इसके सिवा काम का कोई हेतु ना होना चाहिए |, ,
श्री स्वामी रामतीर्थ परमहंस

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