श्री राम कथा हिंदी,बाल्मीकि रामायण से,भाग-6
शुक्रवार, 10 जनवरी 2020
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✳ श्री राम कथा ✳
राम जी की ऐसी शीलता है जिसने सत्रु के हृदय को भी जीत लिया |वैरिव राम बड़ाई करहीं |
समुद्र पार जाना था दोनों लोग खड़े थे अपना भाई और शत्रु का भाई , राम जी ने पूछा कैसे समुद्र के पार जाऊं ? अपने भाई ने कहा बांणो से शोषित कर लो ! शत्रु के भाई ने कहा प्रार्थना करो , राम जी ने अपने भाई की बात नहीं मानी शत्रु के भाई की बात मान ली , तीन दिन तक बैठे रहे समुद्र सामने नहीं आया तब--चापमान स्वामित्रे
लक्ष्मण लाओ धनुष मैं इस समुद्र का शोषण करूंगा, लखन भैया ने कहा भैया तीन दिन पहले तो हमारी बात नहीं मानी, आपने तब तो शत्रु के भाई की बात मान ली | आज अपने भाई की बात याद आ रही है , आपने लड़ाई के तीन दिन सत्रु को दिए, शत्रु सावधान हो गया होगा |तो रामजी ने कहा लक्ष्मण रावण को जीतना बड़ी बात नहीं है , रावण को कभी भी जीत सकता हूं लेकिन इन तीन दिनों में मैंने विभीषण के हृदय को जीता है और यह ज्यादा महत्व देता है | हृदय पर जीत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है और स्थल , स्थल पर तो रामजी की शीलता ने दुश्मनों के हृदय पर भी जीत प्राप्त कर ली है |
मित्र के हृदय को तो जीत ही लेते हैं , विभीषण ने देखा जिस प्रभु ने अपने भाई की बात नहीं मानी मेरी बात स्वीकार कर ली है, वह विभीषण कभी श्रीराम के विमुख हो ही नहीं सकता |
नीत प्रीत परमारथ स्वारथ कोउ ना राम
सम जान निहारत |
यह सब रामजी की नीतियां हैं और प्रत्येक नीति का परिपालन राम जी ने शीलता के साथ किया है, तो महाराज यह बताइए कि शीलवान कौन है-
कोनवस्मिन्साम्प्रतंलोकेकोगुणवानकस्यवीर्यवान |
वीर्यवान कौन है, पराक्रमवान कौन है, धर्मज्ञ कौन है, धर्म के तत्व को जानने वाला कौन है, किए के उपकार को भूलने वाला कौन नहीं है |
कदाचित उपकारेण कृतेनैकेन तुष्यति न स्मरततकाराणां सतमप्यात वत्ययः |
आज आप दुनिया में सौ उपकार कर दें लोगो का भूल जाएंगे एक अपकार कर दें याद रखेंगे | और राम जी का कोई सौ अपकार कर दे भूल जाएं और एक उपकार कर दे तो जीवन भर नहीं भूलते | कृतज्ञ कौन है , सत्य वाक्य कौन है, धृडवृत कौन है, चरित्र से युक्त कौन है ?अपना ही दुनिया करती है | सर्वभूतेषु कोहित: | ऐसा कौन है, विद्वान कौन है, समर्थ कौन है,
एक प्रियललस्यन
कौन है और एक एक गुण राम जी के ब्रह्मत्व के प्रतिपालन के लिए है इसको सुना तो देवर्षि नारद ने कहा--इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामानाम जनैः श्रुतः |
यह सारे गुण इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न भगवान श्रीराम में पाए जाते हैं | महर्षि बाल्मीकि को प्रश्न का उत्तर मिला वह आए , एक दिन अपने शिष्य भरद्वाज के साथ तमसा के तट पर स्नान करने आते हैं, प्रातः काल की सुमधुर वेला है, कल-कल निनाद करते हुए तमशा की धारा प्रवाहित हो रही है , वृक्षों के घोसले से जो पक्षी के बच्चे हैं वह झांक रहे हैं बाहर की ओर, जो पशुओं का वृंद है वह पूछ उठाकर इधर उधर भाग रहे हैं , जो तमसा के तट पर लगी वृक्षाबलिया हैं और प्रातः काल के पावन पवन के प्रवाह के कारण जब उसके पत्ते हिलते हैं, उससे सुमधुर ध्वनि प्रतीत होती है , जो महर्षि बाल्मीकि के मन को मुग्ध कर रही है | ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य, ऐसी नैसर्गिक छटा...
महर्षि बाल्मीकि के हृदय को प्रफुल्लित कर रही है |
कभी प्रवाहित होते तमसा के जल को देखते, कभी पक्षियों के मधुर कलरव को सुनते , कभी फुदकते हुए पशुओं को देखकर खुश होते, जिधर भी दृष्टि जा रही थी बहुत मनोरम दृश्य था | उसी समय एक वृक्ष के ऊपर दृष्टि गई देखा एक क्रौंच पक्षी आपस में प्रेमालाप कर रहे हैं , मिथुनावस्था में हैं, जैसे महर्षि बाल्मीकि की दृष्टि गई सहसा एक सनसनाता हुआ तीर आया और नर क्रोन्च के हृदय को भेद कर दिया |देखते ही देखते वह नर क्रौंच धड़ाम से धरती पर नीचे गिर गया, कुछ देर तडफा उसके बाद उसकी मौत हो गई, अपने क्रौंच को मरते देख करके वह क्रोंची जोर-जोर से विलाप करने लगी , जोर-जोर से रुदन करने लगी उसके करुण विलाप को सुनकर के महर्षि बाल्मीकि के हृदय से सहसा एक शोक प्रकट हुआ और यह शोक ही दुनिया का प्रथम श्लोक बन गया |
[ शोकं श्लोकम् ]
मानसादप्रतिष्ठां त्वमगमः शास्वतीसमा |
यत् क्रौन्च मिथुनादेकं अवधीकाममोहितम् ||
यह दुनिया का प्रथम श्लोक है, वेद की ऋचाओं के बाद दुनिया का प्रथम प्रकट होने वाला यह श्लोक है | संपूर्ण काव्य कानन का प्रथम बीजाक्षर है यह श्लोक, जैसे एक बीज में अनंत वृक्ष और उन अनंत वृक्षों में अनंत बीज- उन अनन्त बीजों में अनेकों वृक्ष छिपे होते हैं |वैसे ही दुनिया के इस प्रथम सनातन काव्य बीज में अनेकसः काव्य वृक्ष छिपे हुए हैं | इसी को आधार मानकर संसार के सारे काव्य प्रकट हुए, उन समस्त काव्यों का जो सनातन बीज है, वह यह प्रथम श्लोक है |(मानसाद प्रतिष्ठां•)
इसी को लेकर सुमित्रानंदन पंत ने लिखा है--
वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा कान
उमड कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान |
दुनिया की पहली कविता तो पीड़ा से ही प्रगट हुई होगी , और सच है कविता का प्रकटीकरण और काव्य का सुप्रण हो या कहीं से कोई रचना प्रगट होती है, तो वह बिना पीड़ा के , बिना वेदना के प्रगट नहीं हो सकती | वेदना से ही काव्य का प्रकटीकरण होता है |एक संत कह रहे थे- जीवन में वेद नहीं है तो बहुत घबराने की बात नहीं है , लेकिन यदि वेदना ना हो तो जीवन मुश्किल हो जाएगा | जीवन में वेदना का होना आवश्यक है और बाल्मीकि रामायण की जो उपलब्धि है वह हृदय में वेदना को प्रकट करती है |
बाल्मीकि रामायण की कथा हृदय को सम्बेदित बना देती है, और हमारे यहां कहा जाता है- तपस्या भी पाषाण तप हो तो उसका भी कोई मतलब नहीं है यदि हृदय में वेदना ना हो | वेदना से ही हृदय का दृवीकर होता है और व्यक्ति भक्त बनता है | जैसे--
भक्त को भात को संस्कृत में भक्त कहते हैं |
चावल की कठोरता खत्म हो जाए तो भात बनता है, वैसे ही हृदय की जब कठोरता खत्म होती है वेदनाओं से वह सच्चे अर्थ में भक्त बनता है और बाल्मीकि रामायण की कथा की उपलब्धि यह है , जीवन की कठोरता को खत्म करके हृदय की पाषाणता को खत्म करके उसको संबेदित करके सच्चे अर्थों में हमें भक्त बनाती है |और भक्त होना ही वह पात्रता है जो सहजता से हमें परमात्मा की उपलब्धि करा दे | विष्णु सहस्त्रनाम में भगवान को काव्य कहा गया है भगवान का एक नाम ही काव्य है , और--
काव्य का प्रकटीकरण बेदना से होता है,
इसका मतलब परमात्मा को प्रगट करना हो तो हृदय में बेदना का होना आवश्यक है,और यह काव्य प्रगट हुआ|यह बाल्मीकि रामायण वेद का अवतार है और महनीय महारग महान ग्रंथ है, इस दुनिया का प्रथम महाकाव्य है | इसके पूर्व केवल वैदिक वांग्मय हमारे जीवन में था , यह विश्व वांग्मय का प्रथम महाकाव्य कहलाया और महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के नाम से अभिहित हुए |
गोस्वामी जी ने भी जो रामायण जी लिखी है उसमे आरती लिखी है, उसमें लिखा- व्यास आदि कवि वर्ज बखानी ! आदि कवि वर्य कौन है ? कहा आदि कविवर्य महर्षि बाल्मीकि हैं, और यदि महर्षि बाल्मीकि नहीं होते तो आज हमारे जीवन में इस रूप में रामकथा नहीं होती |
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