[ संत का महात्व ]
जीवन में संत का महत्व / संत का महत्व
जिन यहूदियों ने ईसा को सूली पर चढ़ाया था, जिनके दुराग्रह से उस सतपुरुष के हाथ पैरों में कीलें ठोंकी गई थी, उन अपने प्राण हर्ता लोगों को क्षमा कर देने के लिए ईसाने भगवान से प्रार्थना की |
सूली पर ईसा को चढ़ा दिया गया था उनके हाथ पैरों में किल्ली ठोक दी गई थी, उनके शरीर की क्या दशा होगी कोई कल्पना तो करके देखे |
उस दारुण कष्ट में प्राणान्त के समय, उस अंतिम क्षण में भी उस महापुरुष को भगवान से प्रार्थना करना था | यह प्रार्थना करना था कि वे भक्तवत्सल पिता उसको पीड़ित करने वालों को क्षमा कर दें|
शरीर नश्वर है, कोई भी किसको कष्ट देगा ?
शरीर को ही तो, शरीर के सुख-दुख को लेकर मित्रता शत्रुता तो पशु भी करते हैं | मनुष्य का पशुत्व ही तो है कि शरीर के कारण शत्रुता का विस्तार करता है |उतपीड़ित को उसके अन्याय का दंड देना- यह सामान्य मनुष्य की बात है | उत्पीड़क के अपराध को चुपचाप सहन कर लेना सत्पुरुष का कार्य है यह , किंतु संत संतका महत्व तो उसकी महान एकात्मता में है |
उत्पीड़क- यदि कोई समझदार हो तो क्या स्वयं अपनी हानि करेगा ? उत्पीड़क दूसरे किसी को द्वेष वस कष्ट देने वाला समझदार कहां है ?
कर्म का फल बीज वृक्ष न्याय से मिलता है , आज का बोया बीद फल तो आगे देगा, समय आने पर देगा | किंतु एक बीज के दाने से कितने फल मिलेंगे ?
आज का कर्म भी फल आगे देता है, समय पर देता है, किंतु फल तो शतगुणित होकर मिलता है, दूसरों को पीड़ा देने वाला अपने लिए उसे हजारों गुना पीडा की प्रस्तावना प्रस्तुत करता है |
बालक मन करता है, जब अग्नि पकड़ने लपकता है, भूल करता है | समझदार व्यक्ति उसे रोकता है | कोई जब अत्याचार करता है ,
जीवन में संत का महत्व / संत का महत्व
किसी पर करे, किसी पर भूल करता है, भूला हुआ है वह , वह नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है | दया का पात्र है वह |संत का महत्व इसी मे है कि वह भूले हुए की भूल को नहीं तौलता |वह तो उस भूले हुये पर दया करता है-- उसका हृदय सच्ची सहानुभूति से कहता है-- यह भूले हुए हैं,यह नहीं जानते कि हम क्या कर रहे हैं | दया मय प्रभु क्षमा करो इन्हें !!