श्री राम कथा
हिंदी में ,बाल्मीकि रामायण से,भाग- 9
ramayan hindi story
हमारे आचार्यों ने अर्थ ही बदल दिया और कहा कि ए आशीर्वादात्मक मंगलाचरण है और हमारे यहां के संत तो भगवान को भी आशीर्वाद देते हैं | बाकी सब लोग मांगते हैं लेकिन हमारे संत भगवान भगवान को भी आशीर्वाद देते हैं | आप देखेंगे जो सुप्रभात आदि का गायन होता है मंदिरों में सब भगवान के लिए आशीर्वाद ही दिया गया है | एक आचार्य कहते हैं--
( काव्यं बीजं सनातनम् )
है तो रामायण के सातों कांड का बीज एक श्लोक में ही है - मा माने सीता जी, निषाद माने राम जी इन दोनों का मिलन बालकांड में हुआ तो- मानसाद शब्द से बाल कांड की कथा सूचित की गई है | प्रतिष्ठां महाराज दशरथ राम जी को अयोध्या के राज पद पर प्रतिष्ठित करना चाहते थे , लेकिन वह पिता वचन पालक के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हुए, इस प्रतिष्ठा शब्द से अयोध्या कांड का बीज रखा गया | राम जी ने सास्वती प्रतिज्ञा अरण्यकांड में की-
निसिचर हीन करहु महि भुज उठाए प्रण कीन्ह|
तो शास्वती समा शब्द से अरण्यकांड की कथा का बीज रखा गया, क्रौंच बाली भी है, यतक्रौंच मिथुनादेकं,, में आपने तारा बाली में से नर क्रौंच बाली का वध कर दिया है, इसीलिए यतक्रौन्च मिथुनादेकं से किष्किंधा कांड की कथा सूचित की गई है | क्रुन्च का अर्थ दुबला पतला कृषकाय भी होता है, जब हनुमान जी आए और जाम्बवान जी ने पूछा हनुमंत यह बताओ जानकी जी लंका में कैसी हैं ? हनुमान जी ने कहा--
सात्कृत्यैव तन्वङ्गी तर्वियोगाच्चकर्षिता |
प्रतिपद पाठशीलस्य विद्धितनुताम गताः ||
जाम्बवान जी जैसे प्रतिपदा के दिन पढ़े गए विद्यार्थी की विद्या दुर्बल हो जाती है , ऐसे ही जानकी जी लंका में दुर्बल हो गई हैं और राम जी से क्या कहा प्रभु--
ततोमयावाग्भिर दीन भाषिणी शिवाभिरिष्टा भिरभिप्रसादिता |
वाह शान्तिं मम मैथिलात्मजा तवातिशोकेन तथाति पीडिता ||
प्रभु अति शोकेन अति पीडिता- वह लंका में अति दुख में है अति पीड़ित है और आपके वियोग में दुबली पतली हो गई हैं | क्रौंच से सुंदरकांड की कथा सूचित की गई और पुनयत्क्रौन्च मिथुना देकं से युद्ध कांड की कथा , क्योंकि राम जी ने रावण का वध करके जगत मंगल किया है और शास्वती समा से उत्तरकांड की कथा सूचित की गई, जिससे राम जी के परत्व का प्रतिपादन है |इस प्रकार से एक ही श्लोक में बाल्मीकि रामायण के सातों कांडो की कथा का बीज रख दिया है |इसलिए यह विश्वकानन का प्रथम बीजाक्षर है |महर्षि बाल्मीकि सोचने लगे अहो यह मेरे मुख से क्यों प्रकट हुआ इसका मतलब क्या है , इसमें बत्तीस अक्षर हैं , चार चरण हैं, एक चरण में आठ अक्षर हैं , यह अनुष्टुप छंद का श्लोक है, यह लौकिक श्लोक हैं , यह लौकिक छन्द प्रकट हुआ
पादबद्धोक्षर समः तन्त्रीनय समन्वितः |
यदि इसको वीणा की तारों पर गाया जाए तो मधुर ढंग से इसका गान हो सकता है | अपने शिष्य भारद्वाज को बार-बार सुनाते हैं और इस पर विमर्श करते हुए , स्नानादि से निवृत्त होकर महर्षि बाल्मीकि अपनी कुटिया पर पधारे, संध्या वंदन आदि से निवृत्त होकर बैठे थे प्राची दिशा में मुंह करके सोच रहे थे कि यह श्लोक क्यों प्रगट हुआ ? उसी समय ब्रह्मा जी का आगमन हुआ !
आजगाम ततो ब्रम्ह लोककर्ता स्वयं प्रभू
लोक कर्ता स्वयं प्रभु- ब्रह्मा जी का विशेषण है, लोग कर्ता ब्रह्मा जी का मतलब किसी को कर्ता बनाना हो तो कर्ता को हि आना चाहिए , महर्षि बाल्मीकि को ग्रंथ कर्ता बनाने के लिए लोक कर्ता स्वयं ब्रह्मा जी आए और ब्रह्मा जी ने कहा- क्या विचार कर रहे हो, कहा हे महाराज ये श्लोक हमारे मुख से क्यों प्रकट हुआ उन्होंने कहा नहीं पता चला---
मछन्दादेव ते ब्रम्ह प्रवृत्तेयं सरस्वती
मछन्दा देव माने मेरी प्रेरणा से सरस्वती प्रकट हुई | तो क्या सरस्वती ब्रह्मा जी की प्रेरणा से चलती हैं ? तो श्री गोविंद राज जी ने भूषण टीका मे इसका अर्थ किया है--
मह्यंमत्कल्याणार्थं प्रादुर्भावो संकल्पो यस्य स मछन्दः |
माने महर्षि जिनके संकल्प से निराधि प्रादुर्भाव होता है , उस भगवान श्री राघवेंद्र की प्रेरणा से आपके हृदय सेमानसाद • यह श्लोक रूपी सरस्वती प्रकट हुई है , क्यों ? क्योंकि सरस्वती जी तो राम जी की प्रेरणा से ही चलती हैं , मानसकार ने लिखा है-- सरस्वती तो कठपुतली है, दारुनारी है नचाने वाले तो श्री राघवेंद्र हैं---
सारद नारद दारू सम स्वामी राम सूत्रधर अंतर्यामी |
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी कवि उर अजिर नचावहिं बानी ||
और आपके ह्रदय से भी आपके हृदय आंगन से भी यदि मानसाद रूपी सरस्वती का प्रकटीकरण हुआ है तो उसके सूत्रधार भी रामजी हैं, अच्छा किसी पर राम जी की कृपा हो जाए और उसको वाणी मिले, उसको कला मिले, उसको साहित्य मिले तो उसका उपयोग कैसे करना चाहिए ?आपमें भी काव्य स्फुरणा आ जाए , आप में भी कविता की छमता आ जाए तो सरस्वती का उपयोग किसमें करना चाहिए, किसी नेता की चालीसा लिखने में करना चाहिए अपनी वाणी का उपयोग, किसी सांसारिक व्यक्ति की प्रशंसा में खर्च करनी चाहिए, किसी प्राकृतिक जन के गुणगान में करना चाहिए , कहा नहीं
कीन्हे प्राकृत जन गुण गाना
सिर धुनि गिरा लगत पछिताना |
सरस्वती भी सिर पीट पीट कर कहती हैं , प्रभु आपने कहा भेज दिया हमें इस व्यक्ति ने तो दुनिया की चापलूसी में , चाटुकारिता में मुझे विनष्ट कर दिया, सिर पीटती हैं सरस्वती इसीलिए जब भगवत कृपा से जीवन में, वाणी में सरस्वती मिले, कला मिले, संगीत मिले, साहित्य मिले तो उसका श्रेष्ठ उपयोग है - उसका सदुपयोग भगवत गुणानुवाद में ही करना चाहिए , यही वाणी की सफलता है, यही सरस्वती की उपयोगिता है |इसलिए आप भी रामायण की रचना करें महाराज | आप भी रामायण नामक महाकाव्य की रचना करें तो महर्षि बालमीकि ने कहा- मुझे राम जी के विषय में बहुत कुछ पता नहीं है, ब्रह्मा जी ने कहा चिंता मत करिए--
मछन्दादेव ते ब्रन्हन्प्रवृत्तेयं सरस्वती |
तच्चाप विदितं सर्वं विदितं ते भविष्यति ||
जो अविदित चरित्र हैं मैं आशीर्वाद देता हूं महर्षि आपको राम जी के सारे चरित्र विदित हो जाएंगे | और एक बात और सुन लो--
न ते वाग्नता काव्ये काचिदत्र भविष्यति |
आप जो लिख दोगे वह कभी असत्य नहीं हो सकता, आपके रामायण का एक अक्षर भी गलत नहीं हो सकता ऐसा मैं आशीर्वाद देता हूं | ऐसा कह कर के ब्रह्मा जी चले गए, अब थोड़ी गंभीरता से पढेगें, महर्षि बाल्मीकि अपने आश्रम पर बैठकर के नेत्र बंद कर लिए और राम जी का चलना उठना बोलना राम जी की जीवन की क्रियाएं, राम जी के जीवन व्रत को लिखना चाहते हैं, लेखनी उठा कर बैठे हैं रामायण की रचना करने लेकिन एक अक्षर भी लिखने में समर्थ नहीं हो पाए |बाल्मीकि रामायण की रचना कब हुई कुछ लोग कहते हैं राम जी के जन्म से पहले हो गई, यह गलत है बाल्मीकि रामायण में स्वयं लिखा है--
( प्राप्तरामस्य राजस्य )
जब राम जी राजा बनकर अयोध्या के सिंहासन पर बैठ गए , सियाजू महारानी बनकर बैठी, उसके बाद बाल्मीकि रामायण की रचना हुयी | इसको भी जाना चाहिए-- महर्षि वाल्मीकि ने प्रयास किया लेकिन एक अक्षर लिखने में समर्थ नहीं हो सके, क्यों नहीं हो सके ? क्योंकि बाल्मीकि रामायण राम चरित्र नहीं है, बाल्मीकि रामायण सीता चरित्र हैं |
काव्यं रामायणं कृत्स्नं सीतायां चरितं महत |
महर्षि बाल्मीकि ने स्वयं संकल्प किया है इस काव्य का नाम रामायण रख रहा हूं, लेकिन इसका मतलब यह मत समझना कि इसमें रामचरित की प्रधानता है |ramayan hindi story
( सीतायाश्चरितं महत )
इसमें सीता चरित्र की महत्ता है , यह महत सीता चरित्र की विवेचना है, इसमें महान सीता चरित्र है . या आज के शब्द में कहें तो गोस्वामी जी की रचना श्रीरामचरितमानस है और महर्षि बाल्मीकि की रचना सीता चरित मानस है | आज के शब्दों में इसको समझना चाहिए और सीता जी का चरित्र लिखना इतना आसान नहीं है | भगवान श्री राम स्वयं चाह रहे हैं कि जानकी जी की चरित्र की रचना हो तो राम जी ने मन वचन कर्म तीनों से प्रयास किया, राम जी के मन ही नारद हैं |भागवत में आप लोगों ने सुना है कन्हैया के मन में बात आई कि कंस का वध करें तो जो मन में बात आई है वह नारद जी करते हैं | कंश के यहां जाकर पूछे क्या हाल-चाल है , कंस ने कहा महाराज बिल्कुल ठीक नहीं है जितने को भेजा एक भी जिंदा वापस नहीं आए, नारद जी ने कहा किसी को भेजो मत उन्हीं को यहां बुलाकर खत्म कर दो और उधर कन्हैया से आकर कहते हैं, नाच कूद और बंसी ही बजेगी या दुष्ट का उद्धार भी होगा, कन्हैया ने कहा क्या करूं जिसको भेजता है उद्धार कर देता हूं , ना स्वयं आता है ना मुझे बुलाता है |
नारद जी ने कहा महाराज ऐसी व्यवस्था बनाया हूं कि स्वयं निमंत्रण भेजेगा आप जाकर उद्धार कर देना, तो जो कन्हैया के मन में बात आती है वह नारद जी करते हैं |
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सभी क्रूर को भेजा गया एक भी कृष्ण को नहीं ला पाए लेकिन पहली बार अक्रूर गए और कृष्ण को लेकर आ गए | क्रूर भगवान को नहीं ला सकते भगवान को तो कोई अक्रूर ही ला सकता है,
भगवान को लाने के लिए अक्रूरता चाहिए जीवन में | तो भगवान के मन में जो बात आई उसको पूर्ण नारद जी करते हैं , तो महर्षि बाल्मीकि के पास सबसे पहले भगवान ने नारद जी को भेजा, नारदजी से पहले 16 प्रश्न पूछे और उत्तर दिलवाए | फिर भी श्री रामायण की रचना नहीं हो पाई, राम जी ने अपनी वाणी को भेजा भगवान की वाणी सरस्वती है और अपनी सरस्वती को भी भेजा तो भी रामायण की रचना नहीं हो पाई, तो राम जी ने अपने कर्म को भेजा, कर्म कौन हैं ?भगवान ब्रह्मा जी हैं अच्छा भगवान को भी एक बेटा पैदा हुआ लोग पेट से पैदा होते हैं ब्रह्मा जी भी पेट से पैदा हो गए, भगवान की नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुई तो ब्रह्मा जी भगवान के बेटे हैं | भगवान के मन में बात आती है--
( एकोहं बहुस्यामः )
मैं एक से बहुत हो जाऊं, अनेकों हो जाऊं तो सबसे पहले ब्रह्मा जी को पैदा करते हैं और ब्रह्मा जी सब सृष्टि करते हैं | तो भगवान के कर्म हैं ब्रह्मा जी तो भगवान श्रीराम ने ब्रह्मा जी को भेजकर स्पष्ट आदेश दिया कि आप रामायण की रचना करिए, आप सीता चरित्र की रचना करिए फिर भी जानकी चरित्र की रचना नहीं हो पाई | राम जी मन वचन कर्म तीनों से प्रयास किया पर वाल्मीकि रामायण की रचना नहीं हो पाई, तब राम जी ने कहा क्यों नहीं हो पा रही है-- ? कहा सीताजी करुणामई हैं, और करुणामई जानकी जी के चरित्र को वही लिख सकता है जिसके हृदय में करुणा हो , तो किसी ने कहा प्रभु करुणा नहीं आई क्या ? अध्यात्म रामायण के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म भले ही ब्राह्मण कुल में हुआ था, लेकिन आचरण से सूद्र हो गए थे |
जन्म मात्र द्विजत्वन्तु शूद्राचाररतः सदा |
ऐसा अध्यात्म रामायण में लिखा है, कहा जाता है किसी को मारने काटने में एक क्षण भी नहीं लगता था महर्षि वाल्मीकि को, लेकिन एक ऐसा महात्मा कभी जिसको किसी को मारने काटने में एक क्षण भी नहीं लगता था आज एक पक्षी को मरते देख कर उसका हृदय रो उठा , क्या यह करुणा नहीं है ? क्या यह बेदना नहीं है ? जो जानकी जी के चरित्र को लिखने में समर्थ हो , तो राम जी ने कहा इतनी करुणा से कोई करुणामई जानकी के चरित्र को नहीं लिख सकता | एक बार तो बाल्मीकि रामायण में जानकी जी ने हनुमान जी की बड़ी कठोर परीक्षा ली |ramayan hindi story
( नर बानरहूं संग कहू कैसे )
बंदर मनुष्य की मित्रता होती है क्या ? यहां तक कह दिया तुम रावण हो जो बंदर बनकर आए हो, हनुमान जी रो पड़े नहीं मां मैं हनुमान हूं मैं असली बंदर हूं मैंने राम जी के चरण दबाए हैं, अच्छा तो बताओ मेरे स्वामी के चरण कैसे हैं , राम जी का शरीर कैसा है, राम जी का मुख्य मंडल कैसा है हनुमान जी के नेत्र भर आये कहा-
राम: कमल पत्राक्ष: पूर्णचंद्र विभावन: |
राम जी की आंखें कमल की तरह हैं, उनका मुख मंडल पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह है, एक-एक अंगो का वर्णन किया तब जानकी जी ने हनुमान जी पर विश्वास किया बाल्मीकि रामायण में |लेकिन मानस में तो बस एक शब्द का प्रयोग कर दिया और मां जानकी ने विश्वास कर लिया , एक शब्द का प्रयोग किया--
राम दूत मैं मातु जानकी
अतिशय प्रिय करुणानिधान की |
माता जी मैं उस करुणानिधान की शपथ खाता हूं की मां मैं राम जी का दूत हूं, हनमान हूं तब माता जानकी को विश्वास हो गया |