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भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

bhagwat katha sikhe

भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

( कीर्तनीयः सदा हरिः )

भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

सब में भगवान को देखने वाला तथा उनके नाम गुण का कीर्तन करने वाला भक्त कितना और कैसा विनम्र और सहिष्णु होता है, उसका स्वरूप श्री चैतन्य महाप्रभु ने बतलाया है--
तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना |
अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः ||
तिनका सदा सब के पैरों के नीचे पड़ा रहता है, वह कभी किसी के सिर पर चढ़ने की आकांक्षा नहीं करता, हवा जिधर उड़ा ले जाए उधर ही चला जाता है | 

पर भक्त तो अपने को उस नगण्य तृण से भी बहुत नीचा मानता है, वह जीव मात्र को भगवान समझ कर उनकी चरण धूलि लेता है , उन्हें दंडवत प्रणाम करता है और उनकी सेवा में उनके इच्छा अनुसार लगा रहता है | 

वृक्ष कड़ी धूप सहता है आंधी और घनघोर वर्षा का आघात सहता है, काटने जलाने वाले को भी छाया देता है, स्वयं कटकर लोगों के घरों की चौखट किवाड, शहतीर, खंभे बनकर उनको आश्रय और रक्षा देता है, जलकर भोजन बनाता है , यज्ञ संपन्न करता है, मरे हुए को भी जलाकर उसकी अंत्येष्टि संस्कार में अपने को होम देता है , सभी को अपने पुष्पों की सुगंध ही देता है, पत्थर मारकर चोट पहुंचाने वालों को पके फल देता है |

भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

 इसी प्रकार संत भक्त भी अपना उपकार करने वाले को अपना सर्वस्व देकर लाभ पहुंचाता है | मान मीठा विष है, इसे बड़े चाव से प्रायः सभी पीते हैं, संसार के पद परिवार और धन संपत्ति का परित्याग करने वाले भी मान के भूखे रहा करते हैं | 

परंतु भक्त स्वयं अमानी रहकर जिनको कोई मान नहीं देता उनको भी माने देता है |
सदा कीर्तन करने योग्य कुछ है तो वह भगवान का नाम गुण ही है , भक्त सदा कीर्तन करता है और उस कीर्तन के प्रभाव से उसमें उपर्युक्त दैन्य के प्रभाव से ही वह सदा कीर्तन करने योग्य होता है | दोनों में अन्योन्याश्रय है |
 इस चित्र में देखिए--

भक्तों के लक्षण,जानें भक्तों के अंदर क्या गुण होना चाहिए

भक्त- नगण्य तृण को भी अपने पैरों से बचाकर उसका सम्मान कर रहा है |
वृक्ष- घाम, वर्षा सहकर, कटकर और पत्थर मारने वाले को भी मधुर फल देकर भक्तों का आदर्श उपस्थित कर रहा है |
भक्त- स्वयं अमानी होकर मानहीन को मान दे रहा है और भक्त- श्री हरि के कीर्तन रंग में मस्त होकर नृत्य रहा है |

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