F महर्षि अगस्त्य की कहानी,महर्षि अगस्त्य का जीवन परिचय,maharishi agastya in hindi - bhagwat kathanak
महर्षि अगस्त्य की कहानी,महर्षि अगस्त्य का जीवन परिचय,maharishi agastya in hindi

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महर्षि अगस्त्य की कहानी,महर्षि अगस्त्य का जीवन परिचय,maharishi agastya in hindi

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महर्षि अगस्त्य की कहानी
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महर्षि अगस्त्य का जीवन परिचय महर्षि अगस्त्य की कहानी maharishi agastya in hindi

महर्षि अगस्त्य वेदोंके मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। 

इनकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें विभिन्न प्रकारकी कथाएँ मिलती हैं। कहीं मित्रावरुणके द्वारा वसिष्ठके साथ घड़ेमसे पैदा होनेकी बात आती है तो कहीं पुलस्त्यकी पत्नी विर्भके गर्भसे विश्रवाके साथ इनकी उत्पत्तिका वर्णन आता है। किसी-किसी ग्रन्थके अनुसार स्वायम्प अन्वन्तरमें पुलस्त्यतनय दत्तोलि ही अगस्त्यके नामसे प्रसिद्ध हए। ये सभी बातें कल्पभेदसे ठीक उतरती है। इनके विशाल जीवनको समस्त घटनाओंका वर्णन नहीं किया जा सकता। यहाँ संक्षेपत: दो-चार घटनाका उल्लेख किया जाता है। एक बार विन्ध्याचलने गगनपथगामी सूर्यका मार्ग रोक लिया। इतना ऊँचा हो गया कि सूयक आने-जानेका स्थान ही न रहा। सूर्य महर्षि अगस्त्यके शरणागत हए। अगस्त्यने उन्हें आश्वासन दिया और स्वयं विन्ध्याचलके पास उपस्थित हुए। विन्ध्याचलने बडी श्रद्धा-भक्तिसे उन्हें नमस्कार किया। महर्षि अगस्त्यने कहा-'भैया, मुझे तीर्थों में पर्यटन करनेके लिये दक्षिण दिशामें जाना आवश्यक है। परंतु तुम्हारी इतनी ऊंचाई लाँघकर जाना बड़ा कठिन प्रतीत होता है, इसलिये कैसे जाऊँ?' उनकी बात सुनते ही विन्ध्याचल उनके चरणोंमें लोट गया। बडी सगमतासे महर्षि अगस्त्यने उसे पार करके कहा कि अब जबतक मैं न लौटूं, तुम इसी प्रकार पड़े रहना। विन्ध्याचलने बड़ा नम्रता और प्रसन्नताके साथ उनकी आज्ञा शिरोधार्य की। तबसे महर्षि अगस्त्य लौटे ही नहीं और विन्ध्याचल उसी प्रकार पड़ा हुआ है। अगस्त्यने जाकर उज्जयिनी नगरीके शूलेश्वरतीर्थकी पूर्व दिशामें एक कुण्डके पास शिवजीकी आराधना की। भगवान् शिवने प्रसन्न होकर उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया। आज भी भगवान् शंकरकी मूर्ति वहाँ अगस्त्येश्वरके नामसे प्रसिद्ध है।
महर्षि अगस्त्य की कहानी
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एक बार भ्रमण करते-करते महर्षि अगस्त्यने देखा कि कुछ लोग नीचे मुँह किये हुए कुएँमें लटक रहे हैं। पता लगानेपर मालूम हुआ कि ये उन्हींके पितर हैं और उनके उद्धारका उपाय यह है कि वे संतान उत्पन्न करें। बिना ऐसा किये पितरोंका कष्ट मिटना असम्भव था। अत: उन्होंने विदर्भराजसे पैदा हुई अपूर्व सुन्दरी और परम पतिव्रता लोपामुद्राको पत्नीके रूपमें स्वीकार किया। उस समय इल्वल और वातापी नामके दो दैत्योंने बड़ा उपद्रव मचा रखा था। वे ऋषियोंको अपने यहाँ निमन्त्रित करते और वातापी स्वयं भोजन बन जाता और जब ऋषिलोग खा-पी चुकते तब इल्वल बाहरसे उसे पुकारता और वह उनका पेट फाड़कर निकल आता। इस प्रकार महान् ब्राह्मणसंहार चल रहा था। भला, महर्षि अगस्त्य इसे कैसे सहन कर सकते थे? वे भी एक दिन उनके यहाँ अतिथिके रूपमें उपस्थित हए और फिर तो सर्वदाके लिये उसे पचा गये। इस प्रकार लोकका महान् कल्याण
हुआ। एक बार जब इन्द्रने वृत्रासुरको मार डाला तब कालेय नामके दैत्योंने समुद्रका आश्रय लेकर ऋषिमुनियोंका विनाश करना शरू किया। वे दैत्य दिनमें तो समुद्रमें रहते और रातमें निकलकर पवित्र जंगलोंमें रहनेवाले ऋषियोंको खा जाते। उन्होंने वसिष्ठ, च्यवन, भरद्वाज-सभीके आश्रमोंपर जा-जाकर हजारोंकी संख्या में ऋषि-मुनियोंका भोजन किया था। अब देवताओंने महर्षि अगस्त्यकी शरण ग्रहण की, तब उनकी
नास और लोगोंकी व्यथा और हानि देखकर उन्होंने अपने एक चुल्लूमें ही सारे समद्रको पी लिया। बताने जाकर कुछ दैत्योंका वध किया और कुछ भागकर पाताल चले गये।
महर्षि अगस्त्य की कहानी
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एक बार ब्रह्महत्याके कारण इन्द्रके स्थानच्युत होनेके कारण राजा नहुष इन्द्र हुए थे। इन्द्र होनेपर अधिकारके मदसे मत्त होकर उन्होंने इन्द्राणीको अपनी पत्नी बनानेकी चेष्टा की, तब बृहस्पतिकी सम्मतिसे रत्राणीने एक ऐसी सवारीसे आनेकी बात कही, जिसपर अबतक कोई सवार न हुआ हो। मदमत्त नहषने सवारी ढोनेके लिये ऋषियोंको ही बुलाया। ऋषियोंको तो सम्मान-अपमानका कुछ खयाल था ही नहीं।
आकर सवारी में जुत गये। जब सवारीपर चढ़कर नहुष चले तब शीघ्रातिशीघ्र पहुँचने के लिए हाथ में कोड़ा लेकर 'जल्दी चलो! जल्दी चलो! (सर्प, सर्प)' कहते हुए उन ब्राह्मणोंको विताड़ित करने लगे। यह बात महर्षि अगस्त्यसे देखी नहीं गयी। वे इसके मूलमें नहुषका अध:पतन और ऋषियोंका कष्ट देख रहे थे। उन्होंने नहुषको उसके पापोंका उचित दण्ड दिया। शाप देकर उसे एक महाकाय सर्प बना दिया और इस प्रकार समाजकी मर्यादा सुदृढ़ रखी तथा धनमद और पदमदके कारण अन्धे लोगोंकी आँखें खोल दीं।
महर्षि अगस्त्य की कहानी
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भगवान् श्रीराम वनगमनके समय इनके आश्रमपर पधारे थे और इन्होंने बड़ी श्रद्धा, भक्ति एवं प्रेमसे उनका सत्कार किया और उनके दर्शन, आलाप तथा संसर्गसे अपने ऋषिजीवनको सफल किया। साथ ही ऋषिने उन्हें कई प्रकारके शस्त्रास्त्र दिये और सूर्योपस्थानकी पद्धति बतायी। लंकाके युद्ध में उनका उपयोग करके स्वयं भगवान् श्रीरामने उनके महत्त्वकी अभिवृद्धि की। प्रेमलक्षणा भक्तिके मूर्तिमान् स्वरूप भक्त सुतीक्ष्ण इन्हींके शिष्य थे। उनकी तन्मयता और प्रेमके स्मरणसे आज भी लोग भगवान्की ओर अग्रसर होते हैं। लंकापर विजय प्राप्त करके जब भगवान् श्रीराम अयोध्याको लौट आये और उनका राज्याभिषेक हुआ तब महर्षि अगस्त्य वहाँ आये और उन्होंने भगवान् श्रीरामको अनेकों प्रकारकी कथाएँ सुनायीं। वाल्मीकीय रामायणके उत्तरकाण्डकी अधिकांश कथाएँ इन्हींके द्वारा कही हुई हैं। इन्होंने उपदेश और सत्संकल्पके द्वारा अनेकोंका कल्याण किया। इनके द्वारा रचित अगस्त्यसंहिता नामका एक रामोपासना-सम्बन्धी बड़ा सुन्दर ग्रन्थ है।

महर्षि अगस्त्य की कहानी
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