श्रीगर्गाचार्यजी की कहानी,Story of Shrigargacharyaji

श्रीगर्गाचार्यजी की कहानी
Story of Shrigargacharyaji
श्रीगर्गाचार्यजी की कहानी,Story of Shrigargacharyaji
श्रीगर्गाचार्यजी यदुवंशियोंके पुरोहित थे और थे बड़े तपस्वी थे।
'गर्गः पुरोहितो राजन् यी सुमहातपाः॥'
श्रीवसुदेवजीने इन्हें अपने पुत्रोंका नामकरण-संस्कार करनेके लिये गोकुल भेजा श्रीगर्गाचार्यजीका दर्शनकर श्रीनन्दबाबाके हर्षका ठिकाना नहीं रहा। उनके चरणोंमें साष्टांग दण्डवत प्रणामोपरान्त श्रीनन्दजीने विधिपूर्वक आचार्यचरणका पूजन किया और उनके शुभागमनसे अपना अहोभाग्य माना। तत्पश्चात् अपने दोनों बालकोंको मुनिके चरणोंमें प्रणाम कराकर इनका नामकरणादि संस्कार करनेकी प्रार्थना की। मुनि तो इसी निमित्त आये ही थे। परंतु कंसको कहीं यह आभास न हो जाय कि वसुदेवजीके पुरोहितने नन्दात्मजका समयोचित संस्कार कराया है, अतः हो न हो, ये वसुदेव-पुत्र ही हैं, वह दुष्ट इनके अनिष्टका उद्यम करने लगेगा, अतः श्रीगर्गजीने एकान्त गोशालामें स्वस्तिवाचनपूर्वक बालकोंका द्विजाति-समुचित संस्कार कर दिया। इसी व्याजसे श्रीगर्गाचार्यजीने श्रीबलराम-कृष्णके ऐश्वर्यका भी वर्णन कर दिया, जिससे कि आगेकी लोकोत्तर लीलाओंमें किसी प्रकारका सन्देह न हो। भगवान्के अतिमानुषी चरित्रोंको देखकर श्रीगर्गजीके वचनोंको याद कर लेनेपर सहज ही सन्देहका समाधान हो जाता था।
श्रीगर्गाचार्यजी की कहानी
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श्रीगर्गजीका श्रीकृष्ण-लीलामें बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। समस्त नन्दव्रजकुमारिकाएँ श्रीकृष्णको ही पतिरूपमें प्राप्त करनेके लिये श्रीकात्यायनीदेवीका पूजन कर रही थीं। परंतु उनके माता-पिता तो लोकव्यवहारके अनुसार अपनी कन्याओंको अन्यत्र ही व्याहना चाहते थे। बड़ी कठिन समस्या थी। श्रीगर्गाचार्यजीने इसको बड़ी बुद्धिमानीसे सुलझाया। जिस समय श्रीब्रह्माजी मोहवश गोप-बालक-वत्सोंको हर ले गये थे और स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ही अनेक-अनेक बालक और वत्स बनकर विविध विनोद कर रहे थे, उस समय श्रीगर्गाचार्यजीने लीलाके अनुकूल परिस्थिति विचारकर ब्रजमें आकर सबको यह चेतावनी दी कि ग्रहस्थितिके अनुसार अगले बारह वर्षों तक विवाह-मुहूर्त नहीं मिलनेवाले हैं, अत: इसी वर्ष कुमारकुमारियोंका विवाह-संस्कार सम्पन्न हो जाना चाहिये। सब लोगोंने श्रीगर्गजीकी बात मानकर उपर्युक्त वरोंके साथ अपनी कन्याओंका विवाह कर दिया, जो कि वस्तु-तस्तु अनेक रूपमें श्रीकृष्ण ही थे। इस प्रकार सभी गोपियाँ श्रीकृष्णकी स्वकीया ही हुईं। श्रीगर्गाचार्यजीने स्वरचित 'गर्ग-संहिता' में भगवान् श्रीकृष्णकी अति मधुर रसमयी लीलाओंका बड़ी मधुरताके साथ वर्णन किया है।
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