द्वादश ज्योतिर्लिंगों का महत्व एवं उनका परिचय,barah jyotirling parichay lyrics

द्वादश ज्योतिर्लिंगों का महत्व एवं उनका परिचय 
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"ज्योतिर्लिंग" शब्द ज्योति एवं लिंग का समास है । ज्योति प्रकाश का पर्याय है और लिंग चिह्न के अर्थ में प्रयुक्त - होता है। "लिंग" शब्द की व्युत्पति स्कन्दपुराण में इस तरह है -
'अकाश लिंग मित्याहुः पृथ्विी तस्य पीठिका । 
लयनात् सर्व - देवानां लिंग मित्युच्यते बुधैः' 
आकाश, लिंग और पृथ्वी उसकी यह सब देवताओं का आलय है, इसमें सभी लय प्राप्त हैं अतः इसे लिंग कहते हैं । निराकार ब्रह्म में जैसे कोई अवयव चिह्न नहीं रहता है, उसी प्रकार लिंग में भी प्रतिमा सदृश अंग-प्रत्यंग नहीं रहता । लिंग में मण्डलाकार स्वरूप पृथ्वी और लघुस्तूप स्वरूप का चिह्न है। _ अर्थात् इन ज्योर्तिलिंग के नाम जो प्रभात में उठकर कहता है उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त होता है । यह कामद लिंग सभी लिंगों की पूजा का फल होता है । हाद्रपीठ के मध्य में यह रावणेश्वर वैद्यनाथ जी हैं। _शिवपुराण के 38 वे अध्याय अर्न्तगत नदी उपपुराण में, शिवजी कहते हैं- "मैं सर्वव्यापी हूँ, किन्तु सौराष्ट्र में सोमनाथ, कृष्णतीरस्थ श्री शैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जियिनीनगर में महाकाल, ओंकार और अमरेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दक्षिण सेतुबन्ध में रामेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, दक्षिण सेतुबन्ध में रामेश्वर, वाराणसी क्षेत्र में विश्वेश्वर, गौतमी तट पर त्र्यम्वके, हिमालय के पृष्ठ पर केदारनाथ, दारुकावन में मागेश, शिवालय में घुश्मेश, डाकिनी में भीमशंकर आदि विशेष-विशेष लिंगों में विद्यमान हैं।"
सौराष्ट्रे सोमनाथ च श्री शैले मल्लिकार्जुनम् । 
उज्जयिन्यां महाकालमं ओंकारे परमेश्वरम् ॥ 
केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीम शंकरम् । 
वाराणस्यां च विश्वैशं त्र्यमवकं गौतमीतटे ॥ 
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेश दारुकावने । 
सेतुबन्धे तु रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये ॥ 
द्वादशैतानि नामानि पातरुत्थायां पठेन । 
सर्वपापैविनिर्मुक्तः सर्वसिद्धि फल लभेत् ॥
1. 'श्री सोमनाथ' - सौराष्ट्रे (गुजरात) प्रदेशातगत प्रभास क्षेत्र पश्चिम रेलवे के वेरावल नामक स्टेशन पर उतर कर तांगा या बस से प्रभास पाटन क्षेत्र में जाते हैं । वेरावल गांव से प्रभाव पाटन 4 मील की दूरी हैं । सोमनाथ मन्दिर एक गांव में हैं। 2. 'मल्लिकार्जुन' - मद्रास (तमिलनाडू) प्रान्त के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर यह ज्योर्तिलिंग है । इसे, दक्षिण का कैलाश कहा जाता है। 3. 'महाकाल' - मालवा प्रदेश के शिप्रा नदी के तट पर उज्जैन नामक नगर में स्थित है । यह मध्य प्रदेश में है। यहां मध्य रेलवे की भोपाल-उज्जैन, आगरा-उज्जैन तथा पश्चिम रेलवे का नागदा-उज्जैन एवं फतेहाबाद-उज्जैन आदि लाइनों - से यात्री आ जा सकते हैं । 4. ओंकार-अमरेश्वर' - उज्जैन से खण्डवा जाने वाली पश्चिम रेलवे की छोटी लाइन पर ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है । यहां से ओंकारेश्वर मन्दिर 7 मील दूर है । ओंकार जी पंचमुखी स्वर्ण प्रतिमा जल विहार के लिये नाव पर घुमाया जाता है । मन्दिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने कराया था। 5. श्री केदारनाथ' - उत्तर प्रदेश के उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत पर समुद्र तट से 1150 फीट ऊपर है । हरिद्वार से 150 मील तथा ऋषिकेश से 132 मील है । 6. 'भीमशंकर' - सह्य पर्वत के उस शिखर का नाम जहां इस ज्योर्तिलिंग का प्राचीन मन्दिर है । यह बम्बई प्रदेश नासिक से 120 मील दूर भीमा नदी किनारे स्थित है। 17. 'विश्वनाथ' - तीर्थो के राजा काशी विश्वनाथ को कौन नहीं जानता है । गोदौलिया चौक से गली के अन्दर मन्दिर का रास्ता है । संगमरमर की बनी एक हाथ के ऊँचे घेरे के भीतर भगवान विश्वनाथ जी विराजमान हैं। 8..'त्र्यम्बक' - बम्बई प्रान्त के नासिक पंचवटी से 18 मील दूर गोदावरी के उद्गम स्थान ब्रह्मगिरि पहाड़ी के निकट है । इसी जगह सूर्पनखा की नाक काटी गई थी। त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग एक बड़े पत्थर के अरघे में विराजमान है, भीतर जाने की अनुमति नहीं हैं। 9. 'नागेश' - बड़ौदा राज्य के अन्तर्गत । गोमती द्वारका से ईशानकोण में 12-13 मील दूर है । इसे दारुकावन भी कहते हैं। _10. 'रामेश्वरम्' - मद्रास प्रान्त के रामनाथम् या रामानंद जिले में समुद्र तट पर रामेश्वर का विशाल मन्दिर है। 11. 'घुश्मेश्वर' - हैदराबाद राज्य में दौलताबाद स्टेशन से 12 मील दूर वेरल ग्राम के पास है। 12. 'वैद्यनाथ' - पुराणों के अनुसार चिताभूमि में अवस्थित है । यहाँ सती का हृदय भी गिरा था, अतः इसे हार्द्रपीठ भी कहा जाता है । पूर्व रेलवे जसीडीह जंक्शन से उतर कर यात्री यहां आते हैं। कुछ लोग परलिग्राम (परल्यां वैद्यनाथं च....) या पंचनंद में वैद्यनाथ का अस्तित्व मानते हैं किन्तु इस विषय में वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय के विद्वान कुलपति श्री सुरति नारायण पं० श्री विष्णुकांत झा लिखित "श्री वैद्यनाथ शव प्रशस्ति पुस्तक का भूमिका (पृष्ठ 5) म लिखते है। आदि शंकराचार्य केरल में रहने वाले थे और केरल से वैद्यनाथ धाम पूर्व एवं उत्तर दिशा में है । शंकराचार्य ने अपने अल्कालिक जीवन में सम्पूर्ण भारतभूमि में तीर्थों की यात्रा की और वैद्यनाथ धाम के शिव उल्लेख करते हुए “शिव प्रणाम" में कहा। इसके अलावा 'कल्याण का शिवांक, राष्ट्रधर्म का तीर्थांक पत्रिका भी संताल परगना स्थित वैद्यनाथ शिव को द्वादशज्योर्तिलिंगान्तर्गत एक मानती है।' श्री नगेन्द्रनाथ बसु विद्यामहापार्णव लिखित विश्वकोष विंशतिभाग कहता है- 1024 ई० में सुल्तान महमूद ने गजनी आकर सोमनाथ मन्दिर तोड़ा था 1158 शाके में सुल्तान अल्तमश उज्जयिनी की महाकाल मूर्ति तोड़कर दिल्ली ले गया । औरंगजेब ने भी विश्वनाथ मन्दिर तुड़वाया, किन्तु ये ज्योर्तिलिंग सहस्रों अग्निज्वालाओं से व्याप्त है। इसका क्षय वृद्धि आदि मध्य और अन्त नहीं है । ये अनौपम्य और अव्यक्त है। - अनन्त शक्तियों की केन्द्रभूत महाशक्ति ही 'सती' और उनका ब्रह्माण्डाधीश्वर शुद्ध ब्रह्म ही 'शंकर' है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों का महत्व एवं उनका परिचय 
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