Barha Peedam Shloka - बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं श्लोक अर्थ,

bhagwat katha sikhe

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Barha Peedam Shloka - बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं श्लोक अर्थ,

Barha Peedam Shloka

वेणू गीत- बर्हापीडं• (Barha Peedam)

Barha-Peedam
बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं श्लोक अर्थ

barhapidam shlok

वेणु गीत की कथा➡ शुकदेव जी राजा परीक्षित से वर्णन कर रहे हैं इस सुंदर गीत को जिसे हम  वेणूगीत कहते हैं | शरद ऋतु का पावन अवसर चल रहा है उस शरद ऋतु में श्री बाल कृष्ण अपनी मित्र मंडलियों और गाय बछड़ों के साथ वृंदावन में प्रवेश करते हैं उस समय भगवान की बड़ी दिव्य शोभा होती है, जिसका वर्णन बर्हापीडं• इस श्लोक में दर्शाया गया है, इस श्लोक की बड़ी भारी महिमा बताई गई है | 
भागवत कथा से प्रगट श्लोक जिसका अनुसंधान करने से अनेक प्रकार के संकट दूर हो जाते हैं यानी यदि किसी व्यक्ति को डर लगता है या किसी जंगल या निर्जन स्थान में अकेले हैं चाहे हिंसक व्यक्तियों या हिंसक जीवों से भयभीत रहता हो या भय की अनुभूति होती है तो इस मंत्र का जप करने से मानव रक्षित होता है वह मंत्र  और 

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Barha Peedam Shloka श्लोक है➡

बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं
बिभ्रद् वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् |
रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन गोपवृन्दैः-
वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः ||

शब्दार्थ:➡ बर्ह-( मोर पंख ),अपीड-( मुकुट )>बर्हापीडं➡ जिनके सिर पर मोर मुकुट है |
नट-( नाटक दिखाने वाले या लीला करने वाले ),वर-( उत्तम या  श्रेष्ठ पुरुष ),वपु:-( सर्वांग सुंदर )>

नटवरवपुः➡ सुंदर लीला करने वाले, पुरुषों में उत्तम भगवान पुरुषोत्तम, जिनका सुंदर स्वरूप है | कर्णयोः-( दो कान द्विवचन का रूप है यह)  कर्णिकारं-( एकवचन का रूप माने- एक कान में )>

कर्णयोः कर्णिकारं➡ भगवान श्री कृष्ण दो कानों में से किसी एक कान पर कनेर का पुस्तक धारण करते हैं, यह पुष्प गोपियों के लिए संकेत होता है कि आज हम किस दिशा की ओर गौ चरण के लिए जाएंगे | बिभ्रद् वासः कनककपिशं- ( स्वर्णमय पीतांबर या अंबर )>

बिभ्रद् वासः कनककपिशं➡ जैसे अग्नि में तपाया हुआ स्वर्ण (कनक) चमचमाता है, वैसे ही भगवान श्री कृष्ण का पितांबर चमक रहा है या भगवान का शरीर सोने की कांति के समान देदीप्यमान हो रहा है | वैजयन्तीं च मालाम्-( वैजयंती माला )>

वैजयन्तीं च मालाम्➡  भगवान श्री कृष्ण के गले में सुंदर वैजयंती की माला शोभायमान हो रही है | रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन-( वेणु के रंध्र से उसे रस सुधा से पूरित कर रहे हैं )>

रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन➡ भगवान श्री कृष्ण वेणु वादन कर रहे हैं उस वेणु को अपने मुख से लगा कर के अपने अधरामृत रस सुधा से उसे पूरित कर रहे हैं | गोपवृन्दैः वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः-( गोप गायें के साथ ब्रज में प्रवेश )>

गोपवृन्दैः वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्तिः➡ भगवान श्री कृष्ण गोप ग्वाल गायों के साथ वृंदावन में प्रवेश कर रहे हैं और सभी सखा गण उनके कीर्ति का गुणगान कर रहे हैं उनकी जय-जयकार कर रहे हैं, उस समय भगवान श्री कृष्ण की बड़ी दिव्य शोभा हुई |

Barha Peedam Shloka

अर्थ➡ यानी जो बर्ह (मोर पंख) का अपीड (मुकुट) धारण किए हैं अर्थात जो मोर के पंख का मुकुट पहने हैं तथा जो संसार में नाचते हैं और स्वयं संसार के लोगों को नचाने का भी कार्य करते हैं ऐसे नाचने वालों में जो श्रेष्ठ नट हैं, जिनके कानों में सुंदर कुंडल है तथा गले में वैजयंती की माला है जो सुंदर वंशी लिए हुए हैं और वंशी के छिद्रों से जो आवाज निकलती है उससे सारे गोप एवं गोपी आकृष्ट होकर सब आनंदित हो जाते हैं वे सुन्दर वेणू की तान के साथ वृंदावन में प्रवेश कर रहे हैं सभी ग्वाल बाल उनकी कीर्ति का गान कर रहे हैं |

Barha Peedam Shloka



बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं श्लोक अर्थ

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नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके संस्कृत के बेहतरीन और चर्चित श्लोकों की लिस्ट [सूची] देखें-
नीति श्लोक व शुभाषतानि के सुन्दर श्लोकों का संग्रह- हिंदी अर्थ सहित। }

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