श्री राम कथा,बाल्मीकि रामायण श्री राम चरित्र,ramayan katha in hindi -12

☀ श्री राम कथा ☀
बालमीकि रामायण श्री राम चरित्र
श्री राम कथा,बाल्मीकि रामायण
ramayan katha in hindi
तपसा लब्धचक्षुस्मान प्रादवत यत्र मैथिली |
महर्षि बाल्मीकि को बंद आंखों में रोती बिलखती करुण क्रंदन करती हुई मां जानकी दिखी और कहां दिखाई पड़ी उन्हीं के आश्रम के पास, झरने के पास आंसू से दूसरा झरना बहाती हुए बंद आंखों में जानकी जी दिखाई थी |

महर्षि बाल्मीकि की जब आंखे खुल गई तो क्या देखा सारे लोग रोते बैठे हैं कोई कुछ कह पाए महर्षि वाल्मीकि ने कहा मैंने सब देख लिया है कुछ मत कहो और दौड़ लगा दी |

एक ऋषि को अपनी ओर दौड़ते आते हुए जब मां जानकी नहीं देखा तो जानकी जी और हिचकियां में रोने लगी कि कहीं महर्षि बाल्मीकि घर से कैसे आई यह पूंछ लिया तो एक स्त्री अपने मुंह से कैसे कह पाएगी कि मेरे पति ने मेरा परित्याग किया है |

यह सोच कर के और पीड़ा हो गई और वह आंसू तेजी से बहने लगे लेकिन महर्षि बाल्मीकि ने दूर से ही कहा कि बेटी मत रो मैं मुझे सब कुछ पता है मैं सब जानता हूं ,मैंने अपने बंद आंखों से सब देख लिया है और सामने खड़ी जानकी जी को जब देखा रोते हुए इस पीड़ा को तो आज महर्षि बाल्मीकि जोर जोर से रोने लगे |
श्री राम कथा,बाल्मीकि रामायण
ramayan katha in hindi
कहने लगे मैंने किसी स्त्री के जीवन में इतनी पीड़ा नहीं देखी क्या कोई इतनी वेदना को लेकर भी जीवन धारण कर सकती हैं , यदि हां तो वह एकमात्र जनकललना हो सकती है, वह एकमात्र जगदीश्वरी जानकी हो सकती है  |

वरना इतनी वेदना को आत्मसाद करके कोई जीवन धारण कर सके यह संभव ही नहीं है और यह जीवन धारण भी उसी के लिए है जिसने जीवन में इतनी वेदना का प्रगटीकरण कर दिया इतनी पीडा जिसने जीवन में दी है |

महर्षि बाल्मीकि जब रो पड़े तो जानकी जी अपना रोना भूल गई और देखा मेरी पीड़ा को लेकर एक महात्मा रोने लगे पास में आकर उनके आसुओं को पोंछते हुए कहती हैं महर्षि आप मत रोयें मैं तो वह सीता हूं जो जीवन में केवल और केवल पीड़ा पाई है |सूरदास जी ने एक पद लिखा है--
सीता जी ने कहा➡ मेरो एको परो न पूरो |
महर्षि मेरी एक भी कामना पूर्ण नहीं हुई, मेरी मां ने जब मुझे डोली पर बिठाकर विदा किया था तो कहा था--
सास-ससुर गुरु सेवा करहू | 
पति रुख लख आयसु अनुसरहूं ||

सास ससुर की सेवा करना जाओ तुम्हें दूसरे माता-पिता मिलेंगे, मैं सोची थीआयेध्या में रहकर के सास-ससुर की सेवा करूंगी लेकिन महर्षि मैं सेवा नहीं कर पाई, मैं पति की सेवा करने वन को गई लेकिन पति की सेवा की भी कामना पूरी नहीं हुई उस दुर्दांत दुष्ट रावण ने मेरा अपहरण कर लिया, मैंने सोचा था लंका से आकर रानी बनकर आयोध्या की प्रजा की सेवा करूगीं लेकिन मेरी यह कामना पूरी भी नहीं हुई, मैं पुनः वन को भेज दी गई |

मैंने जीवन भर पीडा सही है ,मैं इसको भी सहकर जी लूंगी लेकिन आप अगर मेरे लिए रोओगे तो आप मेरी पीडा को सहन नहीं कर पाओगे |

इसलिए महर्षि आप मत रोवे, मां जानकी के हृदय की इस स्थिति को देखा तो और महर्षि बाल्मीकि ने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया |

जानकी जी चुप कराने लगी महर्षि बाल्मीकि ने रोते हुए कहा जनक और महाराज दशरथ दोनों से मेरे अच्छे संबंध हैं, तुम चाहो तो पिता का घर समझकर मेरे आश्रम में रह सकती हो , तुम चाहो तो ससुर का घर समझकर मेरे आश्रम में रह सकती हो |

मां जानकी महर्षि वाल्मीकि के चरणों में गिर पड़ी, ऐसी स्त्री को दुनिया में कोई आश्रय नहीं देता समाज ने जिस पर कलंक लगा दिया हो और पति ने जिसका परित्याग कर दिया हो , ऐसी स्त्री को भी कोई आश्रय देने की क्षमता रखता है तो वह कोई संत और महात्मा ही हो सकते हैं और दुनिया में कोई नहीं हो सकता |

महर्षि बाल्मीकि ने कहा बेटी आओ मेरे आश्रम पर चाहो तो पिता के घर की तरह रहो और चाहो तो एक ससुर के घर की तरह और महर्षि वाल्मीकि जानकी जी की उंगली पकड़कर आश्रम में लेकर आए |

आश्रम किसे कहते हैं जहां आकर जीवन का सारा श्रम समाप्त हो जाए ,सारी क्रांतता समाप्त हो जाए, सारी पीड़ा समाप्त हो जाए उसी को आश्रम कहा जाता है |

आज अपने आश्रम में लेकर महर्षि बाल्मीकि आए श्री जानकी जी को कुटिया में बिठा दिया बाहर लेखनी लेकर बैठे हैं, श्री जानकी जी के आंसू बह रहे हैं, ऐसी भी कथा आती है कि पीडा  केवल जानकी जी को हि नहीं |

राम जी ने भेज तो दिया सीता जी को राजधर्म का पालन करते हुए लेकिन राम जी ने पति धर्म भी निभाया है जब जानकी जी चली गई तो राम जी कभी पलंग पर शयन नहीं किए |

रामजी जमीन पर सोते थे, रामजी कंद मूल फल का आहार लेते थे, सीता के वियोग में जितने यज्ञ किए हैं , तो सीता जी की स्वर्णमयी प्रतिमा बनाकर यज्ञ को पूरा किया है |

यह राम जी के जीवन की पीड़ा थी, लेकिन ऐसी परिस्थिति है इधर राम जी हृदय से रो रहे हैं , इधर जानकी जी की आंखें और हृदय दोनों रो रहे हैं  |
श्री राम कथा,बाल्मीकि रामायण
ramayan katha in hindi
योगियों के जीवन की स्थिति अलग होती है अद्भुत होती है | श्री सूरदास जी ने ब्रज की गोपियों की पीड़ा को भी अभिव्यक्त दिए-- किसी के जीवन में दऋतुयें आती हैं जाती हैं बदलती रहती है लेकिन वियोगियों के तो जीवन में एक ही ऋतु रहती है, उस ऋतु को पावस ऋतु या वर्षा ऋतु कहते हैं |

यह बादल कहीं ऊपर नहीं बनते हृदय में ही जब वेदना घनीभूत होती है तो उसी के द्वारा बादल बनते हैं और वर्षा कहीं और नहीं होती आंखें ही बरसती रहती हैं, दुनिया नहीं भीगती अपना शरीर ही भीगता रहता है |

कभी शरीर के वस्त्र सूखते नहीं, आंखों का काजल जब धुलकर नीचे आता हैं तो पूरे कपोल को-पूरे मुख मंडल को ही काला कर देते हैं | ऐसे वियोग में डूबी प्रियतमा यदि कदम बढ़ाना चाहे तो अपने ही आंसू के पंक में उनके पांव फंस जाते हैं | सूरदास जी ने लिखा है--
निस दिन बरसत नैन हमारे 
सदा रहत पावस ऋतु हम पर 
जब से श्याम सिधारे 
सूरदास अब व्रज डूबत है 
काहे ना लेतो उबारे ||
वियोगियों की ऐसी ही दसा रहती है इनके जीवन मे हमेसा वर्षा ऋतु ही रहती है, इनके आंख बरसते ही रहते हैं और श्रीरामवियोगिनी श्री जानकी जी की आंखों से आंसुओं की बरसात निरंतर होती रही है |

कुटिया में बैठकर के श्री जानकी जी रोती रहती हैं, लेकिन जानकी जी के आंख के आंसू को व्यर्थ नहीं जाने दिया महर्षि बाल्मीकि उनको रख रहे हैं अपने कमंडलु में रख रहे हैं |

कौन सा कमण्डलु कहा जो यह बाल्मीकि रामायण है ना यह महर्षि वाल्मीकि का काव्य कमण्डलु है-और जी के संपूर्ण के आसुओं के अपने कमंडलु मे भर रखा है |

ब्रम्हा जी ने नारायण के चरण प्रच्छालित जल को कमण्डलु मे रख करके गंगा की धारा बहायी थी और महर्षि बाल्मीकि ने अपने काव्य कमंडल में सीता जी के आसुओं को लेकर के रामायण कथा की यह दूसरी गंगा बहा दी |

और यह और कुछ नहीं है बाल्मीकि रामायण जानकी जी की आंसुओं की एक नई गंगा है, इसके जो अक्षर है यह काले अक्षर नहीं है यह जानकी जी के अश्रुबिंदु हैं बाल्मीकि रामायण के एक-एक अक्षर में मां जानकी की वेदना समाई हुई है- जो पांच सौ सर्ग, सात कांड और चौबीस हजार श्लोकों में महर्षि वाल्मीकि ने परिकंठित करके रखा है |
श्री राम कथा,बाल्मीकि रामायण
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