बाबा वैद्यनाथ का रावण के साथ लंका नहीं जा सकने का रहस्य ?

बाबा वैद्यनाथ का रावण के साथ लंका नहीं जा सकने का रहस्य
रावण की गिनती भगवान् शंकर के भक्तों में सबसे ऊपर की जाती है । उसने अपने तप के बल पर भगवान् शंकर को खुश करके लंका ले जाने का वरदान प्राप्त कर लिया था। । भगवान् शंकर के इस निर्णय से सभी देवी देवता कांप उठे । समस्त इन्द्रपुरी में शोक व्याप्त हो गया । समस्त सृष्टि में हाहाकार होने लगा । सभी देवता और ऋषिगण मिलकर भगवान् शंकर के पास जाकर उनकी स्तुति करने लगे । भगवान् शंकर ने उनके आने का कारण पूछा तो वे सब विनती करने लगे, "हे प्रभु ! यदि आप देवता और ऋषि विरोधी दुष्ट रावण की नगरी लंका में स्थापित हो गये तो तीनों लोकों में अनर्थ हो जायेगा । आपके वहां चले जाने से रावण सर्वशक्तिमान हो जायेगा । उसके हम पर अत्याचार और बढ़ जायेंगे । इसलिए प्रभु आप कोई ऐसा उपाय करिये कि रावण की बात भी रह जाए और हम सब भी निश्चित होकर रह सकें।" भगवान् शंकर ने सबकी बात सुनकर कहा - "ठीक है ऐसा ही होगा । मैं कोई उपाय सोचता हूँ। अंत में एक योजना, बनाई गई कि रावण को सावधान किया जायेगा कि यदि तुमने शिवलिंग को रास्ते में कहीं रख दिया तो वह उस जगह से किसी से भी उठेगा नहीं । रावण इस बात पर राजी हो गया। तब भगवान् शंकर रावण से बोले - "मेरे बारह ज्योतिर्लिंग हैं । तुम इनमें से मुझे जिस रूप में ले जाना चाहो ले जा सकते हो ।" रावण ने माता पार्वती द्वारा पूजित लिंग अर्थात् बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का चयन किया।
रावण ने शिवलिंग को उठाने हेतु संकल्प लेने के लिए । जैसे ही आचमन किया तभी वरुण रावण के मुंह से आचमन के मध्यम से  उदर में प्रविष्ट कर गये । रावण वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को | उठाकर अपने पुष्पक विमान में सवार होकर लंका को चल । दिया। रास्ते में उसे हरितिकी वन में बहुत जोर से लघुशंका
लगी । विमान को उसने वन में उतारा । वहां पर उसे एक ग्वाला दिखाई दिया जो विष्णु जी का रूप था । रावण ने उस । ग्वाले से कहा तुम इस शिवलिंग को अपने हाथों में पकड़ | लो। मुझे बहुत जोर से लघुशंका लगी है । वह ग्वाला कहने लगा कि इतने भारी शिवलिंग को मैं अधिक देर तक हाथों में पकड़े नहीं रह सकता इसलिए तुम शीघ्र लघुशंका से निपट कर आ जाना । भगवान् की लीला अपरम्पार है । लघुशंका से निवृत्त होने में उसे बहुत समय लग गया । विष्णु रूपी ग्वाले ने आशुतोष वैद्यनाथ को वहीं पर चिताभूमि में रख दिया ।
रावण लघुशंका से निवृत्त होकर जब लौटा तो उसने देखा कि शिवलिंग की स्थापना धरती पर हो चुकी है । रावण ने शिवलिंग को उठाने की बहुत चेष्टा की परन्तु सब व्यर्थ रहा अर्थात् उससे शिवलिंग नहीं उठा । रावण ने क्रोध में आकर भगवान् वैद्यनाथ जी को ऊपर से अंगूठे से दबा दिया । भक्त की मर्यादा हेतु भगवान् शंकर थोड़ा नीचे को तो दब गये परन्तु वहां से टस-से-मस नहीं हुए। रावण भगवान् शंकर को लंका नहीं ले जा सका ।

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