F सुखी और प्रसन्न रहना है तो धारण करो ये नीति शिक्षा,नीति श्लोक अर्थ सहित -नीति श्लोक संस्कृत में - bhagwat kathanak
सुखी और प्रसन्न रहना है तो धारण करो ये नीति शिक्षा,नीति श्लोक अर्थ सहित -नीति श्लोक संस्कृत में

bhagwat katha sikhe

सुखी और प्रसन्न रहना है तो धारण करो ये नीति शिक्षा,नीति श्लोक अर्थ सहित -नीति श्लोक संस्कृत में

सुखी और प्रसन्न रहना है तो धारण करो ये नीति शिक्षा,नीति श्लोक अर्थ सहित -नीति श्लोक संस्कृत में
सुखी और प्रसन्न रहना है तो धारण करो ये नीति शिक्षा 
सुखी और प्रसन्न रहना है तो नीति में लिखी इन बातों को जीवन में धारण करलो कभी दुखी नहीं रहोगे 
[ नीति श्लोक अर्थ सहित -नीति श्लोक संस्कृत में ]
नास्ति कामसमोग व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपः। 
नास्ति क्रोधसमो वह्निर्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम्॥
कामके समान कोई रोग नहीं, मोहके समान कोई शत्रु नहीं, क्रोधके समान कोई आग नहीं और ज्ञानके समान कोई सुख नहीं है। 
शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।
न तृष्णायाः परो व्याधिन च धर्मोदयापरः॥
शान्तिके समान कोई तप नहीं है, सन्तोषसे बढ़कर कोई सुख नहीं है, तृष्णासे बड़ी कोई व्याधि नहीं है और दयाके समान कोई धर्म नहीं है।
न च विद्यासमो बन्धुर्न मुक्तेः परमा गतिः। 
न वैराग्यात् परं भाग्यं नास्ति त्यागसमं सुखम्॥
विद्याके समान कोई बन्धु नहीं है, मुक्तिसे बढ़कर दूसरी गति नहीं है, वैराग्यसे बढ़कर भाग्य और त्यागसे बढ़कर सुख नहीं है॥ 
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति। 
रून हविषा क कृष्णवर्मेवी भूय को एवाभिवर्धते॥
कामनाओंकी इच्छा उपभोगसे कभी शान्त नही होती, अपितु घीसे आगके समान वह उपभोगद्वारा और बढ़ती ही जाती है।
धनधान्य.  प्रयोगेषु    विद्यासंग्रहणेषु      च |
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलञ्जः सुखी भवेत ||
अन्न दान के उपभोग में, विद्या पार्जन में, भोजन में और व्यवहार में लज्जा को त्याग देने वाला सुखी होता है |
सुखी और प्रसन्न रहना है तो नीति में लिखी इन बातों को जीवन में धारण करलो कभी दुखी नहीं रहोगे 

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3