शिव लिंग पर चढ़ा प्रसाद खाना चाहिए या नहीं जाने
क्यों नहीं लेते हैं शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद
श्रीगौर्या सकलार्थदं निजपादाम्भोजेन मुक्तिप्रदम्
प्रौढं विघ्नवनं हरन्तमनघं श्री ढुंढ तुन्डासिना ।
वन्देचर्म कपाल कोपकरणैवैराग्य सौख्यात्पर
नास्तीति प्रदिश्न्तमन्तविधुरं श्री काशिकेशशिवम् ।।
जब कोई भक्त, भगवान् शंकर की उपासना सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए करता है तब भगवान् शंकर उसकी समस्त कामनाओं को श्री गौरी जी के द्वारा पूर्ण कर देते हैं । यदि कोई मोक्ष की इच्छा से उपासना करता है उसको अपने चरणों की शरण में ले लेते हैं और जो विघ्न निवारण के लिए शिवजी की उपासना करता है, उसके विघ्नों को श्री गणेश जी के द्वारा निवृत्त करा देते हैं | वस्त्रों के स्थान पर केवल बाघम्बर और पात्रों के स्थान पर कपाल धारण करने वाले भगवान् शंकर का यह वेष संकेत देता है कि वैराग्य से अधिक सुख कहीं भी नहीं है । ऐसे श्री काशीनाथ की मैं वन्दना करता हूँ शिव जी का नैवेद्य नहीं खाना चाहिए ऐसा कहना सर्वथा भ्रममूलक है।
रोगं हरति निर्माल्य शोकंतु चरणोदकम् ।
अशेषपातक हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।
शिव का निर्माल्य (प्रसाद) रोग को नष्ट करता है । शरणादक शोक को नष्ट करता है और शिव जी नैवेद्य भक्षण सम्पूर्ण पापों को नष्ट करता है | (शिव पु०)
द्रष्टवापि शिवनैवेद्य यान्नि पापानि दूरतः ।
भक्ते तु शिवनैवेद्ये पुण्यान्यायान्ति कोटिशः ।।
शिव जी नैवेद्य को देखकर ही पाप दूर चले जाते हैं और शिव जी नैवेद्य को खाने से तो करोड़ों पुण्य आ जाते हैं ।
शिवदीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसादसंज्ञकम् ।
सर्वेषामापि लिङ्गानां नैवेद्य भक्षयेत् शुभम् ।।
शिव जी दीक्षा से युक्त (अर्थात् जिसने शिव की दीक्षा ली हुई ऐसा) भक्त सारे ही लिङों के नैवेद्य को खाने का अधिकारी है क्योंकि वह। नैवेद्य शिव भक्त के लिए महाप्रसाद एवं शुभदायक होता है ।
अन्यदीक्षा युत नृणां शिवभक्तिरतात्मनाम् ।
चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद् भोक्तव्यं न मानवैः ।।
जो शिव जी भिन्न दूसरे देवता की दीक्षा वाले हैं और शिव जी की भक्ति में भी जिनका मन लगा हुआ है ऐसे मनुष्यों को उस शिव नैवेद्य को नहीं खाना चाहिए जहाँ चण्ड का अधिकार होता है अर्थात् जहाँ चण्ड का अधिकार नहीं होता उसे खाने में कोई दोष नहीं है । (चण्ड - शिव जी के एक गण का नाम है) अब यह बताते हैं कि चण्ड का अधिकार कहाँ नहीं होता है ।
वाणलिङ्गे च लौहे च सिद्ध लिंगे स्वयं भुवि ।
प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोऽधिकृतो भेवत् ।।
नर्मदेश्वर अर्थात् नर्मदा से निकले हुये लिंग, स्वर्ण लिंग, किसी सिद्ध पुरूष द्वारा स्थापित लिंग, स्वयं प्रकट होने वाले लिंग में तथा शिव जी की सम्पूर्ण प्रतिमाओं में चण्ड का अधिकार नहीं होता है । अतः इन पर चढ़े हुए प्रसाद को प्रत्येक शिव भक्त खा सकता है | जिन लिंगों में चण्ड का अधिकार है वहाँ भी यह व्यवस्था है ।
लिङ्गोपरि च यद् द्रव्यं तदग्राह्य मुनीश्वराः ।
सुपवित्रं च तज्ज्ञेयं यल्लिंग स्पर्शबाह्यतः ।।६।।
हे मुनीश्वरो!शिवलिङ्ग के ऊपर जो द्रव्य चढ़ा दिया जाता है उसे ग्रहण नहीं करना चाहिए, और जो द्रव्य प्रसाद-लिंग स्पर्श से बाहर होता है अर्थात् शिवलिङ्ग के समीप में रखकर जो नैवेद्य अर्पण किया जाता है, भोग लगाया जाता है, उसको विशेष रूप से पवित्र जानना चाहिए । अतः ऐसे प्रसाद को सब ग्रहण कर सकते हैं ।
शिव लिंग पर चढ़ा प्रसाद खाना चाहिए या नहीं जाने
क्यों नहीं लेते हैं शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद