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शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान,shiva ji mahima

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शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान,shiva ji mahima

शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान,shiva ji mahima
|| शिवाय नमः ।। 
शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान  
शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान,shiva ji mahima
शिवेति परमात्मेति शङ्करेति हरेति च । 
पार्वति प्राणनाथेति भज जिहे निरन्तरम् ।। 
सुख करोतीति शङ्कर: - जो सबको सुख प्रदान करने वाले हैं वह शंकर हैं । शेते सर्वमस्मिन्निति शिवः - संपूर्ण विश्व जिसमें शयन करता है अर्थात् जो सम्पूर्ण विश्व का अधिष्ठान है वह शिव तत्व है ।
शिवेति मङ्गलं नाम यस्य वाचि प्रवर्तते ।
भस्मी भवन्ति तस्याशु महापातकराशयः ।।
शिव ऐसा मङ्गलमय नाम जिस मनुष्य की वाणी से अनायास ही निकल जाता है, उसके महापातक समुदाय (सम्पूर्ण पापों की राशि) तत्काल भस्म हो जाते हैं। श्री सती जी ने अपने पिता से कहा -  
यद व्यक्षरं नाम गिरेरितं नृणां सकृत् प्रसङ्गादघमाशु हन्ति तत् । 
पवित्र कीर्ति तमलच्य शासनम् भवानहो द्वेष्टि शिवं शिवेतरः ।।
जिनका 'शिव' यह दो अक्षरों का नाम है प्रसङ वश एक बार भी मुख से निकल जाने पर मनुष्य के समस्त पापों को तत्काल नष्ट कर देता है, और जिनकी आज्ञा का कोई भी उल्लघंन नहीं कर सकता है अहो उन्हीं पवित्र कीर्ति भगवान् शंकर से आप द्वेष करते हैं अवश्य ही आप अमङल रूप है । 
यद् पादपदम् महता मनोलिभिः निषेवितं ब्रह्मरसाय वार्थिभिः। 
लोकस्य यद् वर्षति चाशिषोऽर्थिनः तस्मै भवान् द्रुह्यति विश्व बन्धवे ।।
महापुरूषों के मन मधुकर ब्रह्मानन्दमय रस का पान करने के इच्छा से जिनके चरण कमलों का निरन्तर सेवन किया करते हैं और जिनके चरणारविन्द सकाम पुरूषों को उनके अभीष्ट भोग भी देते हैं उन विश्वबन्धु भगवान् शिव से आप वैर करते हैं । श्री ब्रह्मा ने स्तुति करते हुये यह कहा - 
जाने त्वामीशं विश्वस्य जगतो योनि बीजयोः । 
शक्तेः शिवस्य च परं यत्तद् ब्रह्म निरन्तरम् ।।
हे देव मैं जानता हूँ आप सम्पूर्ण जगत् के स्वामी हैं क्योंकि विश्व की योनि शक्ति अर्थात् प्रकृति और उसके बीज शिव अर्थात् पुरूष इन दोनों से परे जो एकरस परब्रह्म है वह आप ही है ।
त्वमेव भगवन्नेतिच्छिव शक्त्योः सरूपयोः । 
विश्वं सृजसि पास्यत्सि क्रीडन्नूर्णपटोयथा ।। 
भगवन् आप ही मकड़ी के समान अपने स्वरूपभूत शिव शक्ति के रूप में क्रीड़ा करते हुये लीला से ही संसार की रचना पालन और संहार करते रहते हैं । भगवान् श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए शिवलिङ्ग की स्थापना की जो रामेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है । भगवान् श्री राम ने कहा - 
त्वदीयो रावणश्चैव सर्वथा दुर्जयो नृणाम् । 
धर्मे च पक्षपातोवै त्वया कार्य: सदाशिव ।।
हे सदाशिव ! रावण आपका भक्त है और मैं भी आपका भक्त हूँ अब मेरा रावण के साथ युद्ध होने वाला है । मनुष्य के लिए रावण पर विजय प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है । आप न मेरा पक्ष लें न रावण का, आप तो सदैव धर्म का ही पक्ष करेंगे । जिसकी विजय होने से धर्म की रक्षा होती है, आप उसी की विजय करायें । भगवान् शिव की कृपा से श्री राम ने विजय प्राप्त की ।
शिव नाम की महिमा जाने-सती का दक्ष को ज्ञान  

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