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Shree Rangnath Temple Story In Hindi,श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा

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Shree Rangnath Temple Story In Hindi,श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा

 Shree Rangnath Temple Story In Hindi,श्री रंगनाथ  मन्दिर के महिमा
श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा
Shree Rangnath Temple Story In Hindi
श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा  Shree Rangnath Temple Story In Hindi
श्री रंगपट्टण का प्राचीन नाम श्री रंगपुरी था, बाद मे लक्षोंध्यानपुरी कहा गया। कावेरी नदी से गिरा हुआ यह एक द्वीप है। इस नगर में श्री रंगनाथ के अतिरिक्त श्री लक्ष्मीनृसिंह, श्री गंगाधरेश्वर, श्री ज्योतिर्मानेश्वर और अन्य देवताओं के भी मन्दिर है। श्री रंगनाथ का मन्दिर सब से मुख्य हैं। इस मन्दिर के भीतरी भाग का नर्माण हंभी नाम की नर्तकी द्वारा सन 817 इसवी मे हुआ। सनु 894 इसवी मे गंगा वंशीय श्रीतिरुमलरथा ने यहाँ नवरंग मंडप का निर्माण किया एवं महाद्वार के उत्तरी भाग मे भगवान श्री वेन्कटेश के मंदिर का भी निर्माण किया। सन् 1117 इसवी में जब स्वामी श्री रामानुझाचार्य ने उसे वैष्णवतमत में दीक्षा दी और विष्णुवर्धवराय' के रूप मे नामकरण किया। उस राजा के अपार धन-सपति और आठ गाँव श्री रंगनाथ के नाम पर प्राप्त कर प्रभु उर्फ हेब्बार लोग को इस मंदिर की देख रेख के लिए स्वामी श्री रामानुजाचार्य ने नियुक्त किया। सनु 1454 इसवी में हेब्बार तिम्मना ने जो विजयनगर से संपत्ति लेकर यहाँ लौटा था, इस मंदिर का बडा प्रकार, बडा प्रवेश दूर तथा इस नगर का बाहरी दुर्गा-आदि का निर्माण किया। । बाद मे यह नगर विजयनगर के महाराजाओं के शासन मे आ गया। विजयनगर साम्राज्य के प्रतिनिधि भी रंगराय ने मन्दिर के भीतर प्राकार आदि का निर्माण किया। उसकी धर्म पत्नी अलमेलु अम्मा ने भी हर मंगलवार और हर शुक्रवार को श्री रंगनाथ की मात के अलंकार के लिए बहुत मे आभूषण भेंट किया करती थी एकवार श्रीरंगराय की पीठ पर अचानक किसी चोट के कारण इतना दर्द हुआ कि अपना राज्य कार्य चलाने में असमर्थ हो गया। उसके कोई सन्तान न थी। इसिले उस ने मैसूर के राजा वाडियार को अपना राज्य भार सौप दिया और 'तलकाडु' के समीप 'मालंगी' में अपने अन्तिम-समय तक रहा। श्री रंगराय के मरणोपरान्त भी हर मंगलवार और शुक्रवार को अलमेलु अम्मा के दिये हुए आभूषणो
। से श्री रंगनाथ माता का अलंकार किया जाता था। एकवार शुक्रवार के दिन मैसूर के महाराजा दर्शन के लिए आये, श्री रंगनाथ के अलंकार के बाद जब वे आभूषण अलमेलु अम्मा को वापस दिये जाने लगे तब मैसूर के महाराजा ने विरोध किया कि उक्त आभूषण हमेंशा मूर्ति के पास ही रहे।
श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा
Shree Rangnath Temple Story In Hindi
किन्तु बीच में कुछ आभूषण अलमेलु अम्मा को वापस दिये गये, महाराजा ने उसको भी वापस लेना चाहा। जब अलमेलु अम्मा इसे इनकार करके अपने घोडे पर 'तलकाडु' की तरफ भाग गयी, तब महाराज के सिपाइयों ने उसका पीछा किया। तब उन्होंने मालंगि के पास कावेरी नदी में अपना शरीर छोडते हुए यहा शाप दिया कि तलकाडु की भूमि उसर बनेगी, मलंगी का जल गहरा होता जायेगा और मैसूर के राजाओ की कोई सन्तान नही होगी। उक्त शाप का प्रभाव अब भी देखा जा सकता हैं। शाप के बारे में सुनकर मैसूर महाराजा को पश्चाताप हुआ और अपने महल में अलमेलु अम्मा की प्रतिमा की स्थापना करके पूजा करने लगे। आज भी नवरात्रि के दिनो बडे पैमाने पर यह पूजा की जा रही है। श्री रंगनाथ के मन्दिर मे द्वार के पास श्री रंगराय और श्रीमती अलमेलु - अम्मा की प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं। अलमेलु अम्मा के दिये हुए आभूषणो मे नथनी आज भी तेखी जा सकती हैं। पहले यह नीबू जैसा बडे आकार का था किन्तु आजकाल यह छोटा होता जा रहा हैं। सन 1760-61 इसवी मे हैदर अलि, मैसूर-राजा, श्री ईम्मडी कृष्णराज वाडियार का सेना-नायक था। यहा कहा जाता है कि हैदर अलि श्री रंगनाथ का बडा भक्त था और अपने आप भगवान के साथ बात करता था। कोई भी मुख्य-कार्य करने के पहले, वह भगवान की अनुमति प्राप्त करता था। इस संबन्ध में एक कहानी आज भी प्रचलित है कि -एकभार गोदावरी किनारे जब हैदरअली ने श्रीरंगनाथ से अपनी रक्षा के लिये प्रार्थना की, तब गोदावरी नदी का पानी बहुत कम हो गया और सही-सलामत अपनी सेना के साथ श्रीरंग पट्टण वापस आगया। तब दुश्मन की सेना पीछे ही रह गयी। कुछ समय बाद बडी सेना से हैदर अली ने उसी दुश्मन पर हमला किया और विजय पाई। यह कहानी हैदर अली की भक्ति-भावना पर अच्छा प्रकाश डालती है। प्रति वर्ष, धनुर्मास में (दिसंबर जनवरी) इक्कीसवें दिन से कोठारोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इस उत्सव के प्रत्येक दिन क्षत्रियों की तरफ से पूजा की जाती हैं। नौवें दिन महाराजा की तरफ से पूजा होती है, भगवान का 'मोहिनि' अलंकार किया जाता हैं। उस दिन प्रसिद्ध गायक और नर्तकियाँ एवं गायन एवं नृत्य करती है। इस उत्सव पर दर्शन के लिए बडी संख्या में भीड जमा बोती है। सन 1774 इसवी मे कोठारोत्सव के दौरान आग के कारण कुछ नुकसान हुआ यह जानकर महाराजा को बडा दुःख हुआ। हैदर अली ने ऐसी दुर्घटनाओ के निवारण के लिए पत्थरो से एक 'पाताल-मण्डप' का, एक ही दिन मे निर्माण कराया। आज भी यह उत्सव उसीं पाताल-मण्डप में मनाया जाता हैं।
श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा
Shree Rangnath Temple Story In Hindi
 सनु 1782 इसवी मे हैदर अली के मरणोपरान्त उस का बेटा टिपू सुलतान सेनानायक बना। उस ने बगावत की ओर मैसूर-महाराजाओं का अधिकार न माना। उस समय का महाराजा 'मुम्मडि कृष्णराज वाडियार केवल पाँच ही वर्ष का था, उसकी रक्षा इसी मन्दिर के गोपुर के पाँचवे तल्ले में की गयी। टिपू का सहायक मीर सादिक बडा ही क्रूर था। वह मन्दिरों को लटने ओर नष्ट-भ्रष्ट करने लगा। हिन्दु-जनता अपने ही घरो के आकार मे मन्दिर बनाकर भगवान की मूर्तियो की रक्षा करने लगी। वैसा ही एक मन्दिर आज इस नगर के पूर्णय्या मार्ग मे देखा जा सकता है, जहाँ श्रीजनार्दन स्वामी विराजमान हैं। । छोटे छोटे मन्दिरो को पूजारियों ने श्री रंगनाथ के मन्दिर मे प्रतिष्ठा की और पूजा करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण, श्रीपट्टाभी राम और वशीधर श्रीवेणुगोपाल कृष्ण की मूर्तिया आज भी इस मन्दिर मे देखी जा सकती है। ये मूर्तियाँ सबके आँखो की दबाई है ओर सबका मनमोह लेती है। हैदर अली श्री रंगनाथ का बडा भक्त था, इसलिए कोई भी विधर्मा इस मन्दिर को क्षति नही पहूँचायी। ____ अंग्रेजी ने जब टिप्पू को हरा दिया तो अंग्रेजी को किश्त देने के लिए कुछ किमती गहनों को टिप्पू ने इस मंदिर मे से लेकर दिया था, जो कि बाद मे फ्रेंच लोगो के हस्तगत हुए कहा जाता है कि अब क्रेमलिन मे रुसियो के पास वे गहने रखे है। टिप्पू ने भगवान श्री रंगनाथ की दिवान पूर्णय्या सलाह पर गहने भेट किये थे। सनु 1799 इसवी मे अंग्रेजो के शासन मे मुम्मडि श्री कृष्णराज वाडियार ने मैसूर को अपनी राजधानी बनाकर श्रीपूर्णय्या को अपने दिवान के रूप मे नियुक्त किया। उसने भी कोठारोत्सव के नौवें दिन अपनी सेवा की, अपने जन्म-स्थान मे एक मण्डप का निर्माण किया और भगवान का वहाँ तक जुलूस भी निकाल, चौथ कृष्णराज वाडियार ने अपने पिता को यादगार मे श्रीचामराजेन्द्र सराय निर्माण किया और कावेरी नदी के किनारे स्नान-घाट का भी निर्माण करवाया, इस घाट को 'राजघाट' कहते है। मुम्मडि कृष्णराज वाडियार ने पहले यहाँ मंडप और उध्यान मे भगवान की अर्चना के लिये तुलसी और फूल आदि पाने के लिये पेड पोधो को भी लघाया था। आषाढ महीने मे भगवान का जुलूस उस मण्डप से निकाला जाता हैं। इस उत्सव को 'शर्करा अन्न उत्सव' के रूप मे कहा जाता हैं। श्री जयचामराज वाडियार के शासन-काल मे सनु 1953-54 इसवि तक ये उत्सव पडी धूमधाम के साथ मनाये जाते थे मुम्मडि कृष्णराज वाडियार के स्मति दिवस मे विद्वानो, कलाकारो और दरबारियों को सम्मानित किया जाता था। । आज भी यह नगर बडा तीर्थ-स्थान है और प्रतिवर्ष हजारों यात्री भगवान् के दर्शनार्थ आते है। यहा कहा जाता है। कि स्वामी श्री रंगनाथ प्रारंभ में पूर्व दिशा की और मुँह किये हुए थे हाथ ओर शिरके बीच थोडासा अन्तर था जो अभी परिवर्तित दिशा मे हैं। यह वे लोग जानते हे जो गरुजन हो या शास्त्रों की जानकारी रखते हो। प्रत्येक हिन्दू का यह परम-कर्तव्य है कि यहाँ आकर कावेरी नदी में स्नान करे तथा श्री रंगनाथ की सेवा कर 'आत्मा-ज्ञान' प्राप्त कर इसलोक और पर लोक में सुख के भागी हो।
श्री रंगनाथ मन्दिर के महिमा
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