ब्रह्म और ब्रह्मवेत्ता
आत्मा से ही संपूर्ण ज्ञान होता है
आत्मा के विषय में जाने
(बृहदारण्यकोपनिषद् अध्याय २ ब्राह्मण ४) श्रीयाज्ञवल्क्यजीने कहा-अरी मैत्रेयि ! यह निश्चय है कि पतिके प्रयोजनके लिये पति प्रिय नहीं होता, अपने ही प्रयोजनके लिये पति प्रिय होता है; स्त्रीके प्रयोजनके लिये स्त्री प्रिया नहीं होती, अपने ही प्रयोजनके लिये स्त्री प्रिया होती है; पुत्रोंके प्रयोजनके लिये पुत्र प्रिय नहीं होते, अपने ही प्रयोजनके लिये पुत्र प्रिय होते हैं । धनके प्रयोजनके लिये धन प्रिय नहीं होता, अपने ही प्रयोजनके लिये धन प्रिय होता है। ब्राह्मणके प्रयोजनके लिये ब्राह्मण प्रिय नहीं होता, अपने ही प्रयोजनके लिये ब्राह्मण प्रिय होता है; क्षत्रियके प्रयोजनके लिये क्षत्रिय प्रिय नहीं होता, अपने ही प्रयोजनके लिये क्षत्रिय प्रिय होता है। लोकोंके प्रयोजनके लिये लोक प्रिय नहीं होते, अपने ही प्रयोजनके लिये लोकप्रिय होते हैं। देवताओंके प्रयोजनके लिये देवता प्रिय नहीं होते, अपने ही प्रयोजनके लिये देवता प्रिय होते हैं। प्राणियोंके प्रयोजनके लिये प्राणी प्रिय नहीं होते, अपने ही प्रयोजनके लिये प्राणी याज्ञवल्क्य प्रिय होते हैं तथा सबके प्रयोजनके लिये सब प्रिय नहीं हो ___ अपने ही प्रयोजनके लिये सब प्रिय होते हैं। अरी मैत्रेयि । यह आत्मा ही दर्शनीय, श्रवणीय, मननीय और ध्यान किये जानेयोग्य है । हे मैत्रेयि ! इस आत्माके ही दर्शन, श्रवण, मनन एवं विज्ञानसे इन सबका ज्ञान हो जाता है।
आत्मा से ही संपूर्ण ज्ञान होता है
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