कहानी हिंदी-hindi story
बुराई छोड़ अच्छाई को धारण करना ही बुद्धिमानी है
नमस्कार मित्रों आप सभी का स्वागत है भागवत कथानक वेबसाइट पर आज हम आपके समक्ष एक नई कहानी के साथ उपस्थित हुए हैं | इस कहानी का शीर्षक है➡ बुराई छोड़ अच्छाई को धारण करना ही बुद्धिमानी है ,जी हां मित्रों बुराई को त्यागना ही बुद्धिमानी है तो आइए शुरू करते हैं कहानी को-
सहस्रबाहु दसबदन आदि नृप बचे ना काल बली ते |
बड़े-बड़े रावण सहस्त्रबाहु आदि राजा जो अपने आप को सबसे महान व बली मानते थे वह भी नहीं बचे काल से | हम सबको दो बातों को नहीं भूलना चाहिए--दो चीज तो अटल सत्य है जो इस पृथ्वी पर आया है उसे तो जाना पड़ेगा चाहे वह रंक हो या राजा, सहस्त्रार्जुन का आपने नाम सुना होगा यह बड़ा पराक्रमी वीर था लेकिन इसने बुरायी को धारण किया जिसका परिणाम भी बुरा हुआ | रावण से भी बढ़कर प्रतापी था कार्तिकेय सहस्त्रबाहु अर्जुन रावण को उसने खेल-खेल में पकड़ लिया और खूटें में लाकर इस भांति बांध दिया जैसे कोई कुत्ते को बांध देता है | रावण को पकडकर उसके दसों सिरों के दीवट बनाकर उसने दीपक जला दिए थे,उसके पास हजार भुजाएं थी जिनमें पामच सौ धनुष एक साथ चढ़ाकर युद्ध कर सकता था |भगवान दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त हो गई थी, शारीरिक बल तो था ही योग के बल से अनेक सिद्धियां मिल गई जिसकी कहीं तुलना नहीं थी, सहस्त्रार्जुन का बल क्या काम आया | वहां युद्ध स्थल में भगवान परशुराम जी के तरफ से उसकी हजीर भुजाएं वृक्ष की टहनियों के समान बिखरी पड़ी रह गई , सदा गर्व से उन्मत्त रहने वाला मस्तक छिन्नभिन्न हो गया | सहस्त्रबाहु अर्जुन भी मृत्यु का ग्रास बना | जिसके दस मस्तक और बीस भुजाएं थी वह रावण अमर नहीं हुआ, जिसने रावण को भी बांध लेने वाला बल और हजार भुजाएं पाई वह सहस्त्रबाहु अर्जुन अमर नहीं हुआ उनको भी मरना पड़ा | तो एक सिर और दो हाथ का अत्यंत दुर्बल मनुष्य अरे भाई भूल मत कि तुझे भी मरना है, सबको मरना है केवल यही जीवन का सत्य है, इसे भूल मत और भगवान को स्मरण कर | मित्रों सहस्त्रबाहु की कहानी से हमें यही शिक्षा प्राप्त होती है कि हमें कभी भी बुराई नहीं अपनाना चाहिए और दो बातों को स्मरण रखना है- कि मौत एक ना एक दिन आनी है और जिसने हमें भेजा है वह भगवान पर श्रद्धा और विश्वास |