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पौष संक्रांति महात्म्य,Paush Sankranti Mahatmya

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पौष संक्रांति महात्म्य,Paush Sankranti Mahatmya

 पौष संक्रांति महात्म्य,Paush Sankranti Mahatmya
पौष संक्रान्ति-माहात्म्य
 पौष संक्रांति महात्म्य  Paush Sankranti Mahatmya
 पौष संक्रांति महात्म्य
Paush Sankranti Mahatmya
सूर्य के अयन गति-पथ दो हैं-उत्तरायन एवं दक्षिणायन। विषुवत् रेखा से सुर्य के उत्तर की ओर गमन को उत्तरायन एवं दक्षिण की ओर गमन को दक्षिणायन कहते हैं।
श्रावण से पौष तक छह महीने दक्षिणायन एवं माघ से आषाढ़ तक के छह मासों को उत्तरायन कहने हैं। पौष की संक्रान्ति को उत्तरायन अथवा मकर संक्रान्ति कहते हैं, क्योंकि सूर्य इस दिन मकर राशि में प्रवेश करते हैं। उपनिषद, गीता आदि शास्त्रमतों के अनुसार उत्तरायन को देवायन पथ एवं दक्षिणायन को पितृयान पथ कहा जाता है। कहा जाता है कि उत्तरायन में मृत्यु होने से मनुष्य सांसारिक बन्धनों से छुट जाता है और दक्षिणायन में मृत्यु होने से वह आवागमन के चक्र में फस जाता है--
अग्निज्योतिरहः शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम्।
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥
घूमो रात्रिस्तथा कष्णः षण्मासा दक्षिणायनम्।
तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्येगी प्राप्य निवर्तते।।
 उस मार्ग में मरकर गये हुए ब्रह्मावेत्ता योगीजन (उपरोक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गए हुए) ब्रह्मा को प्राप्त होते हैं। तथा जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है और रात्रि-अभिमानी देवता है तथा कृष्णपक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छह महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में, (मरकर गया हुआ) सकाम कर्मयोगी (उपरोक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाया गया हुआ) चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर (स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर) वापस आता हैं।
 पौष संक्रांति महात्म्य
Paush Sankranti Mahatmya
पितृयान का पथ प्रवृत्ति का पथ है और देवयान का पथ निवृत्ति का पथ है। साधको के भी दो स्तर हैं-प्रवत्तिमार्गी एवं निवृत्तिमार्गी। प्रवृत्तिमार्गी साधक धन, सम्पदा, पुत्र-कुलत्र, स्वर्ग आदि की प्राप्ति के लिए यागायज्ञ आदि विविध अनुष्ठान करते हैं। निवृत्तिमार्गी चाहते हैं-अपवर्ग और मुक्ति। ये समस्त सांसारिक बन्धनों से विरक्त होकर ब्रह्मोपासना में लीन रहते हैं। पितृयान की अपेक्षा देवयान का मार्ग इसी कारण श्रेष्ठ है। दक्षिणायन का पथ अधंकार से पूर्ण है-कहीं से कोई प्रकाश की किरण तक नहीं दिखाई पड़ती, केवलमात्र अधंकार ही अधंकार चतुर्दिक रहता है। और देवयान का पथ पूर्वत: आलोकित है-प्रकाश ही प्रकाश-दीप्त से दीप्तचर होता हुआ आलोक। प्रथम मार्ग 'मृत्यु' की ओर ले जाता है तो द्वितीय मार्ग 'अमृत' की ओर। प्रवृत्ति-पन्थी मृत्यु के पश्चात् दक्षिणायन के अन्धकार-पथ से चन्द्रलोक जाते हैं, जहाँ स्वर्गीय मुखों की प्राप्ति होती है। परन्तु पुण्य के क्षय होने पर उन्हें फिर मृत्युमय अर्थात् नश्वर संसार मे लौट आना पड़ता है। किन्तु सगुण ब्रह्मोपासक निवृत्तिमार्गी साधक मृत्यु के बाद देवयान के आलोकित पथ से पहले सगुण ब्रह्मलोक में जाते हैं, फिर जन्म न ग्रहण कर कालक्षय होने पर कल्पान्तर में व मक्त होते हैं। जो इस जीवन में ही अद्वैत ब्रह्मज्ञान की साधना करत है। वे जीवनमुक्त कहलाते हैं-उन्हें मृत्यु के पश्चात् लोकान्तर में जाने का आवश्यकता नहीं पड़ती।
 पौष संक्रांति महात्म्य
Paush Sankranti Mahatmya
जीव का काम्य मुक्ति है। उसे दु:खों से निवृत्ति चाहिये, अमृत चाहिये और चाहिये केवल्य-ब्रह्मनिर्वाण। उत्तरायण में आनेवाली पौष की सक्रान्ति उसा दिव्य वरदान के लेकर आती है। पुण्याथी मनुष्यगण भारत के विविध प्रान्तों से गंगासागर में आ जुटते है। यह पथ दुर्गम है, फिर भी अगणित पुण्य-लोभातुर मुक्तिकामी मनुष्य आते हैं, और जाते है। किन्तु जो श्रेय वे चाहते है, वह भोग में नही योगे मे है-प्रवृत्ति में नही निवृत्ति मे छिपा है-यह अतीन्द्रिय रहस्य ही जानना होगा। गंगासागरस्नान का तुरन्त लाभ तभी तो होगा !
 पौष संक्रांति महात्म्य
Paush Sankranti Mahatmya

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