F थोलिंग मठ में बद्रीविशाल जी,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-10 - bhagwat kathanak
थोलिंग मठ में बद्रीविशाल जी,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-10

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थोलिंग मठ में बद्रीविशाल जी,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-10

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थोलिंग मठ में बद्रीविशाल जी
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
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भगवान श्री बद्रीविशाल जी को लामा लोग आदि बद्रीनाथ कहते हैं। इस विषय में एक किवदन्ती प्रचलित है। तिब्बत में भारतीय सीमा से लगा हुआ थोलिंगमठ नामक बहुत बड़ा धार्मिक स्थान है। कहते हैं पहले भगवान श्री बद्रीनारायण का मन्दिर यहीं था और भगवान यहाँ निवास करते थे। तिब्बतवासी हिन्दू धर्म के अनुयायी थे और लामा लोग भगवान की पूजा करते थे। कालान्तर में बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ने पर लामा लोग बौद्ध दर्शन के प्रभाव में आने लगे और माँस खाने लगे। उनका यह आचरण भगवान श्री बद्रीनारायण को अच्छा नहीं लगा। अतः भगवान थोलिंगमठ की छत फाड़कर निकले और माणा ग्राम तक श्यामकर्ण नामक घोड़े पर सवार होकर आये। आज भी माणा ग्राम के सामने वाले पहाड़ में घोडे की स्पष्ट आकृति है, जिसे माणावासी श्यामकर्ण घोड़ा कहते हैं, जिस पर बैठकर भगवान यहाँ तक आये थे। यहाँ पर भगवान घोड़े को छोड़कर पैदल ही चलकर बद्रिकाश्रम में आ बसे।-थोलिंग में बद्री विशाल जी -49 थोलिंगमठ के उसी मन्दिर में इस समय भगवान बुद्ध की बहुत बड़ी मूर्ति है। यह मन्दिर दो मंजिल का है। मूर्ति का शरीर निचली मंजिल में, धड़ ऊपरी मंजिल में तथा सिर छत से बाहर है। थोलिंगमठ में भगवान बुद्ध की मूर्ति का सिर छत से ऊपर होना वहाँ से भगवान श्री बद्रीनारायण का छत फाड़कर भाग जाने का सांकेतिक प्रतीक है। आज भी यह मठ तिब्बत में अपने इसी रूप में उपस्थित है।
थोलिंग मठ में बद्रीविशाल जी
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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इसी दन्त कथा में यह भी कहा गया है कि जब भगवान बद्रीनारायण थोलिंगमठ के लामाओं से रुष्ट होकर चले गये तो उन्हें अपनी गलती का अनुभव हुआ। वे बहुत घबरा गये और भगवान को मनाकर लाने के लिए उनके पीछे गये। उधर श्री बद्रीनारायण नारायण पर्वत पर पहुंच गये। उस समय पर्वत पर वृक्ष नहीं थे। तब भगवान छोटा सा रूप धारण करके पर्वत शिखर पर घास चरने वाली चंवरी गाय (याक) की पूंछ के नीचे छिप गये। लामाओं ने उन्हें बहुत खोजा किन्तु चंवरी गाय की पूंछ के नीचे छिपे प्रभु किसी को नहीं दिखे। बहुत खोजने पर जब लामा लोग निराश होकर चले गये तब भगवान ने चंवरी गाय के उपकार से अभिभूत होकर उसकी पूंछ को पवित्र माने जाने का वरदान दिया, तभी से चंवरी गाय की पूंछ से चंवर बनाए जाते हैं। वे इतने पवित्र माने जाते हैं कि आज भी मन्दिरों में देवताओं के ऊपर डुलाये जाते हैं। लामा लोग भगवान श्री बद्रीनाथ जी के प्रति अनन्य भक्ति रखते हैं। अभी तक तिब्बत के लामाओं की ओर से प्रतिवर्ष बद्रीनाथ की भेंट के लिए चाय, चंवर और ऊनी कपड़ा आदि आते हैं तथा यहाँ से उन्हें प्रसाद भेजा जाता है।
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