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श्री बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जाने,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-11

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श्री बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जाने,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-11

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श्री बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जाने 
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
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यं भाग्यवन्त मनुकम्पयसेऽनुकम्पा, 
सम्पात रम्य नयनान्त महान्तरायान्। 
निर्धूयतेऽसुलभ दर्शन माप्नुवन्ति, 
त्वामागतोऽस्मि शरणं बदरीवनेऽस्मिन्। 
हे बद्रीविशाल ! आप जिस भाग्यवान के ऊपर अपनी अनुकम्पा कर देते हैं। वहीं बड़े-बड़े विघ्नों को पार करके आपके देव दुर्लभ दर्शनों को प्राप्त कर लेता है, इसलिए हे कमलनयन ! मैं आपके इस बद्रीवन में आया हूँ।
बद्रीवन में भगवान श्री बद्रीनाथ जी का भव्य मन्दिर है। जैसा कि पूर्व पृष्ठों में बताया गया है कि बद्रीधाम पौराणिक काल से ही तीर्थ स्थल के रूप में अस्तित्व में आ गया था। तब मन्दिर का स्वरूप क्या था इसका पता लगाना कठिन है, परन्तु तब से आज भी बद्रीधाम में श्री बद्रीनाथ जी की पूजा उतनी ही श्रद्धा एवं विश्वास से की जाती है। भगवान श्री बद्रीनाथ जी का वर्तमान मन्दिर अधिक प्राचीन नहीं है। प्रसिद्ध है कि इस मन्दिर का निर्माणपन्द्रहवीं शताब्दी में श्री रामानुजीय सम्प्रदाय के स्वामी बरदराचार्य जी की प्रेरणा से गढ़वाल नरेश ने करवाया था। मन्दिर बन जाने के अनन्तर इन्दौर की सुप्रसिद्ध महारानी अहिल्याबाई ने अपने धन से गढ़वाल नरेश के प्रबंध में एक स्वर्ण कलश छतरी बनाई, जो भगवान श्री बद्रीनाथ जी को भेंट चढ़ाई गयी। - भगवान श्री बद्रीनाथ का मन्दिर अलकनन्दा के दक्षिण तट पर स्थित है। मंदिर के तीन भाग है-सिंहद्वार, सभा मंडप तथा गर्भगृह। तराशे हुए पत्थरों से बना यह मंदिर 50 फीट ऊँचा मंदिर भव्य एवं कलात्मक है। महापंडित बल इसे मुगल शैली में बना बताते हैं। श्री नदीनाथ जी के मंदिर का मुख्य द्वार सुन्दर चित्रात्मक है, इसे ही सिंहद्वार कहते हैं। सिंहद्वार तक पहुंचने के लिए सीढ़ियाँ हैं। सिंहद्वार पर एक विशाल घंटा लगा हुआ है, जिसे गढ़वाल राइफल्स द्वारा चढ़ाया गया है। सीढ़ियां चढ़कर मन्दिर के सभामंडप. में आते हैं, जिसे सन् 1978 की योजना के अंतर्गत बड़ा बनाया गया है, जिसमें एक साथ अधिक यात्री पूजा एवं दर्शन कर सकते हैं। गर्भगृह अपनी प्राचीन स्थिति में है। गर्भगृह बाहर से 17 फीट 5 इंच तथा 15 फीट चौड़ा है तथा अन्दर से 13 फीट लम्बा तथा 8 फीट 10 इंच चौड़ा है। गर्भगृह की दीवारें मोटी है। हिमालय की सुगन्धित जड़ी बूटी एवं पुष्पहारों से सम्पूर्ण गर्भगृह को सुसज्जित किया जाता है। यहाँ ही नारद जी. के इष्टदेव, चराचर जगत के स्वामी भगवान श्री बद्रीनाथ जी पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं।
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