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मंदिर में बद्री दर्शन,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-12

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मंदिर में बद्री दर्शन,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-12

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मंदिर में बद्री दर्शन 
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
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मंदिर के भीतर दिव्य मंजुल कांतिवान भगवान श्री बद्रीनाथ की मूर्ति है। भगवान बहुमूल्य वस्त्राभूषण एवं हीरे जड़ा चमकता मुकुट धारण किये हैं। उनके मस्तक पर चन्दन तिलक और गले में हार है, ऊपर स्वर्ण कलश का छत्र है। इस प्रकार भगवान श्रृंगारिक मुद्रा धारण किये हैं। भारतीय दर्शन एवं संस्कृति में शृंगार मुद्रा को बहुत महत्व दिया गया है। भगवान के शृंगारिक रूप में दर्शन कर भक्तों की भक्ति भावना और भी प्रबल हो जाती है।
भगवान के समीप ही धनपति कुबेर हैं और नीचे वीणा धारण किये भगवान के अर्चक नारद जी बैठे हैं। समीप में उधव जी (उत्सव मूर्ति) चतुर्भुज नारायण हैं, जोशीमठ में शीतकाल के 6 महीने तक इनकी पूजा होती है। इनकी बगल में दाईं ओर भगवान नर-नारायण दोनों भाई हैं। श्री देवी, भूदेवी इनके आसपास हैं। जो भगवान की चार पलियों (लक्ष्मी, गंगा, श्रीदेवी, भूदेवी) में से हैं। इस समूह को बद्री पंचायत कहा जाता है। पूजा के समय धूप, दीप एवं वेद मन्त्रोच्चारण से पूरा वातावरण देदीप्यमान हो जाता है और मतगण भावविह्वल होकर इसी वातावरण में बैंकण्ठ की कल्पना करने लगते हैं और स्वयं को धन्य-धन्य मानते हैं।
मंदिर की परिक्रमा में देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें हनुमान, गणेश, लक्ष्मी, धारा, कर्ण आदि की मूर्तियाँ हैं। पीछे और बाईं ओर शंकराचार्य जी, हनुमान, घंटाकरण की मूर्तियाँ हैं, मुख्य द्वार पर गरुड़ जी की मूर्ति है। लक्ष्मी मंदिर के बगल में भोगमण्डी है, जहाँ भगवान का भोग पकता है और भोग लगाने के पश्चात् प्रसाद बांटा जाता है। सामने मंदिर का कार्यालय है जहाँ शंकराचार्य जी की गद्दी है। संगमरमर की शंकराचार्य जी की सुन्दर मूर्ति है। गद्दी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित है। यहाँ पर भेंट चढ़ाकर रसीद प्राप्त की जाती है।
मंदिर में बद्री दर्शन 
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath

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