बद्रीनाथ जी की मूर्ति के बारे में
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
भगवान श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति शालग्राम शिला की बनी हुई है। मूर्ति में मूर्तिकला का पैमाना स्पष्ट नजर नहीं आता। मूर्ति का कुछ अंश खण्डित है, जो सम्भवतः मूर्ति के नारद कुण्ड में अधिक समय तक पड़े रहने का परिणाम है। इतना अवश्य प्रत्यक्ष है भगवान पद्मासन लगाये बैठे हैं, मूर्तिकला में इस प्रकार की मुद्रा में अक्सर भगवान बुद्ध को दिखाया जाता है और इस मुद्रा को बोधिसत्व मुद्रा कहा जाता है। भगवान की मूर्ति द्विभुजी है। भगवानबहमूल्य वस्त्राभूषण तथा हरि जड़ित मकट भरण किये हैं। उनके मस्तक पर चन्दन तिलक तथा गले में हार है। भगवान श्री बद्रीनाथ जी अपने ऐसे दिव्य अलौकिक रूप का दर्शन प्रदान कर कलयुगी प्राणियों का कल्याण करते हैं। ऐसे दिव्य रूप सम्पन्न भगवान श्री बद्रीनाथ जी हमारी भी रक्षा करें। पादौ हरेः क्षेत्रपदानु सर्पणे शिरो षीकेशपदाभिवन्दने। कामंच दास्ये नतु काम काम्यया यथोत्तमश्लोकजनाश्रय।।श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
अर्थात् पैरों की सार्थकता यही है कि वे भगवान के पुण्य क्षेत्रों की यात्रा करते रहें। सिरु की सार्थकता भगवान के चरणों की वन्दना में ही है। भगवान के प्रसाद, चन्दन चढ़ी हुई माला को भाग की इच्छा से नहीं अपितु इस भावना से ग्रहण करें कि यह भगवान का प्रसाद है, जिसके द्वारा भगवत् आश्रितों को भगवत् प्राप्ति होती है, वह हमें भी हो जिससे हमारा मन मयूर भी भगवत् प्रेम में मत्त होकर नृत्य करने लगे। यही हमारी उन बद्रीक्षेत्राधिपति के चरणों में प्रार्थना है! उन्हीं श्री बद्रीनाथ जी के महान् स्वरूप का ध्यान करते हुए बोलिये
'श्री बद्रीविशाल जी की जय' .
बद्रीनाथ जी की मूर्ति के बारे में
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath