श्री शंकराचार्य द्वारा श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापना,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-9

श्री शंकराचार्य द्वारा श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापना
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
आज से लगभग 1200 वर्ष पूर्व एक दिव्य ज्योति आदि श्री शंकराचार्य के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई। श्री शंकराचार्य अभूतपूर्व प्रतिभा सम्पन्न एवं असाधारण बुद्धि के स्वामी थे। इनके पाण्डित्य से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके शिष्य बन गये। 12 वर्ष की अल्पायु में ही सम्पूर्ण भारत में शास्त्र में दिग्विजयी होकर श्री शंकराचार्य जी 10,244 फीट की ऊंचाई पर बद्रीक्षेत्र में तीन महीने की दुर्गम यात्रा के पश्चात् अपने शिष्यों सहित पहुंचे। आचार्य शिष्यों के साथ तप्तकुण्ड में स्नान कर श्री बद्रीविशाल के मन्दिर में गये, किन्तु सतयुग में ऋषियों द्वारा प्रतिष्ठित चतुर्भुज नारायण का विग्रह तो मन्दिर में था ही नहीं उसके स्थान पर शालग्राम शिला को भगवान मानकर पूजा होती थी। यथाविधि पूजादि कार्य सम्पन्न कर आचार्य भारी मन से मन्दिर से बाहर आये उनके दर्शन के लिए मन्दिर के पुजारी उनके समीप आये। उन्हें संबोधित कर आचार्य ने कहा- 'हे पूज्य अर्चकगण मन्दिर नारायण विग्रह से शून्य क्यों है ? मैंने तो यही सुना था कि इस पुण्य क्षेत्र में भगवान चारों युगों में निवास करते हैं।' पुजारियों ने उत्तर दिया- 'महात्मन् ! चीनी दस्युओं के अत्याचार से हमारे पूर्व पुरुषों ने निकटवर्ती किसी कुण्ड में श्री विग्रह को छिपाकर रख दिया था किन्तु बाद में सैंकडों प्रयास करने पर भी विग्रह की खोज नहीं की जा सकी, अतः उस अवधि से आज तक शालग्राम शिला को ही भगवान मानकर पूजादि कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं।' पुजारियों की बात सुनकर चिन्तित चित्त से आचार्य ध्यानमग्न हो गये। ध्यानमग्न होकर गंभीर स्वर में उन्होंने पुजारियों से पूछा- 'यदि विग्रह का उद्धार सम्भव हो तो उस विग्रह की पुनः प्रतिष्ठा कर यथाविधि पूजा करने के लिए क्या आप लोग तैयार हैं ?' आचार्य के श्री मुख से यह बात सुनते ही सभी आनन्द विभोर हो एक साथ बोल उठे'हम धन्य हो जायेंगे, भगवान के श्री विग्रह की आदर सहित प्रतिष्ठा करके पूजा करेंगे।' तब आचार्य उठकर शान्तचित्त से धीरे-धीरे नारद कुण्ड की ओर चले। शिष्यगण, पुजारी तथा यात्री सभी उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। कुण्ड के किनारे आकर स्तब्धभाव से कुछ क्षण खड़े रहकर आचार्य कुण्डजल में उतर पड़े। यह देखकर पुजारी विचलित होकर कहने लगे'यतिवर इस कुण्ड में मत उतरिये। कुण्ड के साथ अलकनन्दा का संयोग है। अतः स्रोत आपको नदी गर्भ में खींच ले जाएगा। अनेक व्यक्ति इसी प्रकार से अपने प्राणों से हाथ धो बैठे हैं। आप निकल आइये, कृपया आप निकल आइये।'श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
श्री शंकराचार्य द्वारा श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापना
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
श्री शंकराचार्य ने मानो कुछ भी नहीं सुना। वे कुण्ड के जल में डुबकी लगा गये एवं थोडी देर में चतुर्भुज नारायण की एक मूर्ति हाथ में लिए जल के ऊपर आ गये। किन्तु देखने पर पता चला कि विग्रह तो खण्डित था। दक्षिण हस्त की कुछ अंगुलियाँ टूट जाने से विग्रह की अंग हानि हो गयी थी। यह देख उन्होंने उस खण्डित मूर्ति को पास बहती अलकनन्दा में विसर्जित कर दिया एवं पुनः कुण्ड में उतर गये। इस बार भी वे एक नारायण की मूर्ति हाथ में लेकर ऊपर आये। किन्तु कितनी अद्भुत बात है। इस बार भी पहले वाला ही भग्न विग्रह था। इस विग्रह को भी नदी स्रोत में विसर्जित कर श्री शंकराचार्य ीसरी बार कुण्ड के जल में उतरे और एक विग्रह पुनः हाथ में लिए ऊपर उठे। उन्होंने देखा तो वही भी भग्नविग्रह था। स्तम्भित हो त हाथ में लिए श्री शंकराचार्य सोचने लग- यह क्या देवी माया है।' तब आकाशवाणी हुई- 'शंकर, तुम दुविधा में मत पड़ो। कलियुग में इस भग्नविग्रह की ही पूजा होगी।' यह सुनकर शंकराचार्य अत्यन्त श्रद्धाभाव से भगवान श्री नारायण को अपने कन्धे पर लेकर बाहर निकल आए। उनके बाहर आते ही चारों दिशाएं जय ध्वनि से गुंजित हो गईं। सभी लोग इस अलौकिक घटना को देखकर स्तम्भित हो गये। आचार्य शंकराचार्य जी ने यथाविधि अभिषेक कार्य सम्पन्न कर स्वयं श्री नारायण विग्रह की शत युगों के लिए मन्दिर में प्रतिष्ठा की तथा अपने संगी एक नम्बूद्री ब्राह्मण को भगवान की सेवा पूजा का भार सौंप दिया। आज भी भगवान की पूजा अर्चना का कार्य नम्बूद्री जाति के ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार श्री शंकराचार्य जी द्वारा श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति तथा मन्दिर की पुनः प्रतिष्ठा की गयी। आज भी शतशः सहस्रशः यात्री कितनी उत्कण्ठा, लालसा और श्रद्धा से हिमशिखर पर विराजमान श्री बद्रीविशाल के दर्शनों को नियमित जाते हैं। - प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास से श्री भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर तथा उनके दर्शन पाकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।
श्री शंकराचार्य द्वारा श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापना
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath