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आदि केदार जी के बारे में जाने,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-15

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आदि केदार जी के बारे में जाने,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-15

आदि केदार जी के बारे में जाने,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-15
आदि केदार जी के बारे में जाने 
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
श्री बद्रीकेदार जी मंदिर के सिंहद्वार से तप्त कुण्ड की ओर नीचे सीढियाँ उतरने पर दाहिनी ओर श्री शंकराचार्य का मंदिर है, यहाँ लिंग रूप में श्री शंकराचार्य जी प्रतिष्ठित हैं। श्री शंकराचार्य मंदिर से कुछ सीढियाँ और उतरने पर श्री आदि केदारनाथ का मंदिर है। भगवान शिव अंश रूप में बद्रिकाश्रम की पवित्र भूमि पर वास करते हैं। शिवजी बद्रिकाश्रम में आकर क्यों बसे? इस विषय पर एक पौराणिक कथा है। स्कन्द पुराण में शिवजी अपने पुत्र स्कन्द जी को अपने बद्रिकाश्रम में वास करने के विषय में बताते हुए कहते हैं कि प्राचीन काल में जब ब्रह्मा जी अपनी रूप यौवन सम्पन्न पुत्री सरस्वती के सौंदर्य पर मुग्ध हो गए, तो मैंने क्रोध में आकर उनका सिर काट दिया। वह सिर मेरे हाथ से चिपक गया। कपाल के हाथ से चिपकने के कारण मैं 'कपाली' कहलाया। ब्रह्मा जी का वध करने के कारण मुझे ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के लिए मैंने अनेक तीर्थ स्थानों की यात्रा की, किन्तु न तो मैं ब्रह्म हत्या से मुक्त हुआ और न ही कपाल (सिर) मेरे हाथ से गिरा। सब तीर्थों में घूमते-घूमते जब मैं बद्रिकाश्रम पहुंचा तो मैं ब्रह्महत्या से मुक्त हो गया तथा वह कपाल भी मेरे हाथ से अलग होकर अलकनन्दा के समीप जा गिरा। तब से मैं भी यहीं रहने लगा। स्कन्द जी द्वारा बद्रिकाश्रम के श्री आदिकेदार का महात्म्य पूछे जाने पर शिवजी कहते हैं--- बदरी क्षेत्र में मैं अपनी सम्पूर्ण कला से स्थित रहता हूँ। वहाँ मेरे श्री विग्रह (लिंग) में पंद्रहों कलाएं विद्यमान हैं। केदारलिंग के भक्ति भाव से दर्शन स्पर्श तथा पूजन करने पर कोटि-कोटि जन्मों के पाप तत्काल भस्म हो जाते हैं। केदारक्षेत्र में मेरे लिंग के पूजन से मनुष्यों को मुक्ति मिलती है और वे पुनर्जन्म के भागी नहीं होते।  वहाँ कोमल कमल की कान्ति से सुशोभित मुखमंडल वाले शिवभक्त हाथ में जयमाल तथा मन में शान्ति सन्तोष धारण करके मेरी वन्दना कर मुक्ति प्राप्त करते हैं। इसलिए श्री बद्रीनाथ जी के दर्शन से पूर्व श्री आदिकेदार भगवान के दर्शनों का बहुत महात्म्य है। कहा जाता है जो लोग श्री आदिकेदार भगवान के दर्शन नहीं करते, भगवान बद्रीनाथ उन पर प्रसन्न नहीं होते। _बद्री क्षेत्र में श्री आदिकेदार के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा और भी है। उत्तराखण्ड का सम्पूर्ण क्षेत्र "केदारखण्ड" नाम से प्रसिद्ध है। कहते है पहले केदारखण्ड पर शिवजी का आधिपत्य था। जब भगवान नारायण यहाँ आये तो उन्हें यह क्षेत्र बहुत पसन्द आया। तब यहाँ शिवजी देवी पार्वती के साथ निवास करते थे, भगवान नारायण ने यहाँ रहने का निश्चय किया और उन्होंने नन्हें शिशु का रूप धारण कर लिया और शिवजी के द्वार पर रोने लगे। उस समय शिवजी देवी पार्वती के साथ तप्तकुण्ड में स्नान करने जा रहे थे। जब देवी पार्वती ने द्वार पर नन्हे शिशु को रोते देखा तो शिवजी से उसे आश्रय देने की प्रार्थना की। शिवजी के मना करने पर भी दयामूर्ति माँ पार्वती ने अपने भवन में शिश को आश्रय दिया और उसे भवन में सुलाकर शिवजी के साथ तप्तकुण्ड में स्नान करने चली गयीं। वापिस आने पर उन्होंने अपने भवन पर श्री नारायण का आधिपत्य देखा तो वे दूसरे स्थान पर ले गए और शिवजी श्री आदि केदारेश्वर रूप में अंश रूप यहाँ निवास करने लगे। उपरोक्त कथा "श्री बद्रीविशाल जी की कथा" में "बद्रिकाश्रम-प्राचीन शिवभूमि" प्रसंग में पूर्व पृष्ठों में दी गयी है।
आदि केदार जी के बारे में जाने 
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath

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