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अलकनंदा गंगा के बारे में जानें,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-16

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अलकनंदा गंगा के बारे में जानें,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-16

अलकनंदा गंगा के बारे में जानें,श्री बद्रीनाथ जी की कथा,Story of Shri Badrinath,part-16
अलकनंदा गंगा के बारे में जानें
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
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सा गन्ध मादन लता कृसुमौध लक्ष्मी: 
सा दिव्य तुंग हिमवन्नम शृंग पंक्तिः । 
गंगा च पुष्प सलिला किमुयस्त्ररभ्यं 
त्वामागतोऽस्मिशरणं बदरीवनेऽस्मिन्।।
श्री बद्रीधाम की रमणीय पर्वत श्रेणियों के मध्य पुण्य सलिला भगवती अलकनन्दा चपला बाला सी चंचल क्रीड़ायें करते हुए बहती है। नर नारायण पर्वतों के मध्य हर-हर शब्द का अखंड कीर्तन करते-करते दौड़ने वाली तीव्र धारा अलकनन्दा ही है। अलकनन्दा गंगा बद्रीधाम से होकर ही क्यों बहीं इसकी पौराणिक कथा है
कहा जाता है कोई एक राक्षस था, जिसने तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके यह वरदान मांगा कि मेरी मृत्यु किसी से न हो, यदि हो भी तो ऐसे मनुष्य द्वारा जिसका सिर घोड़े का तथा धड़ मनुष्य का हो। ऐसा कोई मनुष्य तो संसार में है नहीं। अतः वह राक्षस अपने मद में चूर होकर सभी प्राणियों को सताने लगा। देवता भी उससे परेशान होकर भगवान नारायण के पास गए और अपना दुःख बताया। भगवान कहने लगे कि अब फिर मुझे कोई नवीन लीला रचनी पड़ेगी।
एक दिन भगवान शेष शैय्या पर लेटे हए थे। उनकी चारों पत्नियाँ श्रीदेवी (लक्ष्मी), भूदेवी (पृथ्वी), वृन्दादेवी (तुलसी) और गंगा देवी अपने कर कमलों द्वारा उनके सुकोमल चरण दबा रही थीं। लक्ष्मी जी को यह अहंकार था कि भगबान मुझसे सबसे अधिक स्नेह करते हैं, अतः मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। आज भगवान को उनके इसी अहंकार को नष्ट करना था। इसलिए वे तुलसी जी और गंगा जी की ओर देखकर प्रेमवश हंस पड़ते और लक्ष्मी जी की ओर देखते तक नहीं थे। तुलसी जी और गंगा जी भी हंस देतीं। भगवान को तुलसी जी व गंगा जी के साथ कहकहे मारकर जोर-जोर से हंसते देखकर लक्ष्मी जी को क्रोध आ गया। क्रोध ने उनके विवेक को नष्ट कर दिया और वे भगवान से कहने लगीं-"आप बार-बार ही-ही करके घोड़े की तरह हंसते है और मेरी ओर देखते भी नहीं, । इसलिए मैं शाप देती हूँ कि आपका सिर घोडे का हो जाए। गंगे! तुम मुझ पर हँसती हो, तुम पृथ्वी पर नदी होकर बहो और तुलसी तुम वृक्ष बनो।" सबको शाप देकर जब लक्ष्मी जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने भगवान से अपने अपराध प्रति क्षमा मांगी। तब भगवान ने कहा कि यह मेरी ही लीला है, तुमने मेरी इच्छानुसार ही यह कार्य किया है। इस प्रकार भगवान का ह्यग्रीवावतार हुआ और उन्होंने उस राक्षस का वध किया। इधर जब गंगा जी नदी रूप में पृथ्वी पर जाने लगी तो उन्होंने भगवान से प्रार्थना की-"हे प्रभु! जब मैं पृथ्वी पर नदी रूप में जाऊंगी तो आपके चरण कमलों के दर्शन मुझे कहाँ होंगे?" तब भगवान ने कहा-"गंगे! तुम सदा हमारे हृदय में वास करती हो। फिर भी जब हम धर्म के घर नर-नारायण रूप में अवतीर्ण होंगे तब तुम हमेशा हमारा दर्शन करोगी।" इसलिए गंगा जी बद्रिकाश्रम से होकर निकली। यहाँ ये अलकनन्दा कहलायी। समस्त पुराणों में "विष्णु-पदी गंगा" अलकनन्दा को ही कहा गया है। इन्हें ही आदि गंगा कहते हैं। अलकनन्दा नदी में स्नान करने का बहुत महत्व है। कहते हैं इसके दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसी विष्णुपदी पाप नाशिनी त्रिपथगामिनी पुण्य सलिला गंगा जी के चरणों में प्रार्थना करते हैं
विष्णुपादाब्ज संभूते! गंगे! त्रिपथगामिनी!
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श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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