बद्रीनाथ के अग्नि तीर्थ या तप्त कुण्डों के बारे में जाने
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
बद्रीधाम में श्री आदिकेदारेश्वर के मंदिर से कुछ सीढ़ियाँ नीचे उतरने पर गर्म जल से भरा हुआ अग्नि तीर्थ या तप्त कुण्ड है। यह परम पवित्र तीर्थ है। इसके महात्म्य के विषय में पुराणों में कहा गया है, जिस प्रकार सोने में कितना भी मैल क्यों न हो, अग्नि में तप कर वह पूर्ण पवित्र हो जाता है, उसी प्रकार से कितना ही पापी प्राणी क्यों न हो इस कुण्ड में स्नान करके पवित्र हो जाता है। वहाँ स्नान का महत्व बताते हुए यहाँ तक कहा गया हैश्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
चान्द्रायण सहसैस्तु कृच्छैः कोटि भिरेव च।
यत्फलं लभते मर्त्यस्तत्स्नानात् वन्हितीर्थतः।।
(स्कन्द पुराण)
अर्थात् हजारों चन्द्रायण व्रतों से तथा करोड़ों कृच्छ व्रतों से जो फल मिलता है वह फल अग्नि-तीर्थ में स्नान करने से मिलता है। कहते हैं तप्त कुण्ड में अग्निदेव का वास है। यही कारण है कि यहाँ का जल अत्यधिक गर्म है। यहाँ अग्निदेव का वास किस प्रकार हुआ, इसकी स्कन्द पुराण में कथा है--महर्षि भृगु की पत्नी पर कुमारावस्था से ही क राक्षस आसक्त था। पहले भृगु ऋषि की पत्नी की राक्षस से विवाह की बात चली थी. तभी से वह उनकी ताक में था। एक दिन मृगु ऋषि की अनुपस्थिति में जब केवल अग्निहोत्र की अग्नि आश्रम में थी तब राक्षस ने आश्रम में प्रवेश किया। राक्षस ने अग्नि से पूछा-" इस स्त्री से सगाई की बात हुई थी ना" सरल स्वभाव की अग्नि ने "हाँ" कह दी। अतः वह राक्षस अग्नि को साक्षी मानकर गर्भवती ऋषि पत्नी को उठाकर ले गया। मार्ग में उनका गर्भ च्यवित (प्रसव) हो गया और महर्षि च्यवन हुए। महर्षि च्यवन के ब्रह्म तेज से वह राक्षस तत्काल भस्म हो गया। उधर भृग ऋषि आश्रम में आए तो अपनी पत्नी को वहाँ न पाकर उन्होंने अग्निदेव से पूछा। अग्निदेव ने सब वृतान्त कह सुनायो कि किस प्रकार वह राक्षस आपकी पत्नी को ले गया। यह सुनकर महर्षि भृगु को क्रोध आ गया और उन्होंने अग्नि को सर्वभक्षी होने का शाप. दे दिया। इससे अग्निदेव बहुत घबरा गए और शाप-मुक्ति का उपाय सोचने लगे। एक बार तीर्थराज प्रयाग में ऋषि-मुनियों का महासम्मेलन हुआ। भगवान व्यास जी इसके सभापति थे। अग्निदेव ने यहाँ आकर समस्त ऋषि-मुनियों से प्रार्थना की-"मुझे सर्वभक्षी होने के शाप से मुक्ति का उपाय बताइए।" यह सब सुनकर व्यास जी बोले- "हे अग्निदेव! तुम दुःखी मत हो। तुम कृपासिन्धु, भगवान श्री बद्रीविशाल जी के बद्रिकाश्रम में चले जाओ। वहाँ तुम्हारे सब दोष दूर हो जायेंगे।" ___ व्यास जी की आज्ञा शिरोधार्य करके अग्निदेव बद्रिकाश्रम चले गए और भगवान की आराधना करने लगे। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा तो अग्निदेव बोले-“हे प्रभु! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे सर्वभक्षी होने के शाप से मुक्त कीजिए।" भगवान ने हंसकर कहा-"तुम्हारा सर्वभक्षी होने का शाप तो इस क्षेत्र के दर्शनमात्र से दूर हो गया था। अब तुम यहीं वास करो और यहाँ आने वालों को पाप मुक्त करो।" । तभी से अग्निदेव तप्त जलधारा के रूप में बद्रिकाश्रम में निवास करने लगे। यही तप्त जलधारा "तप्त कुण्ड" के नाम से विख्यात है। बद्रिकाश्रम के हिमशिखरों के मध्य तप्त जल की
यहाँ के प्राकृतिक वातावरण को सन्तलित सी है। तप्त कुण्ड के उबलते हुए जल को लगता है कि इसमें उतरते ही जल जायेंगे। परन्त जब भगवान श्री बद्रीविशाल जी के श्री चरणों का ध्यान करके एक बार कुण्ड में उतर पड़ते हैं तो स्वर्गिक आनन्द की प्राप्ति होती है, यह दिव्य आनन्द भाग्यवान लोग ही प्राप्त करते हैं। कुण्ड में स्नान करने से सारी शारीरिक थकान दूर हो जाती है। तप्त कुण्ड में स्नान, जप, होम, सन्ध्या, देवार्चना करने से भी अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। यात्रीगण श्री बद्रीविशाल जी के दर्शनों से पूर्व तप्त कुण्ड में अवश्य स्नान करते हैं।
नारद कुण्ड
तप्त कुण्ड के नीचे अलकनन्दा के बीच में बने नारद कुण्ड का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। भगवान श्री बद्रीविशाल जी की दिव्य मूर्ति इसी कुण्ड से निकाली गयी थी। नारद कुण्ड में जाने का रास्ता बहुत निकट है। यहाँ सीढ़ियों में फिसलन है, अतः जंजीर पकड़कर ही कुण्ड में उतरना सम्भव होता है। प्रायः यात्रीगण नारदकुण्ड में स्नान नहीं करते। कार्तिक में अलकनन्दा का जल घट जाने पर तथा धारा की तीक्ष्णता कम होने पर यात्रीगण इसमें स्नान करते हैं। बैशाख, ज्येष्ठ में आने वाले यात्रियों को नारद कुण्ड के दर्शन भी दुर्लभ होते है।
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