बद्रीनाथ से बद्रीविशाल जी
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
भगवान बद्रीनाथ की बद्रीपुरी 'विशालापरी' कहलाती है। पुराणों में विशाला के अनेकश्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
बताये गये हैं। स्कन्द पुराण में लिखा है कि नदी क्षेत्र में तीर्थों, देवताओं एवं ऋषियों का वास है इसलिए इसे विशाला कहा गया। किन्तु बद्रीनाथ जी की विशालापुरी सचमुच ही विशाला है। यहाँ की अद्भुत छटा, दिव्य सुगन्धयुक्त पत्र-पुष्प और कल-कल बहती भगवती अलकनन्दा, जिसके किनारे पर विशालापुरी बसी है, इस स्थान को और रमणीय बना देती है। परन्तु वाराह पुराण में बद्रीपुरी के विशालापुरी कहलाने का दूसरा ही कारण बताया गया है। इस संबंध में एक कथा है। वाराह पुराण के 48वें अध्याय में कल्कि द्वादशी के व्रत के संग में राजा विशाल की कथा है-- सूर्यवंश में विशाल नाम के राजा हुए हैं। एक बार युद्ध में उनके शत्रुओं ने उनका राजपाट छीन लिया। युद्ध में पराजित होने और राज्य छिन जाने से वे बहुत दु:खी हुए। दु:ख से मुक्ति के लिए तपस्या करने वे गन्धमादन पर्वत पर आ गये। पुराणों में नर-नारायण पर्वत को गन्धमादन पर्वत कहते हैं क्योंकि यहाँ की प्रत्येक घास, फूल-पत्ती में विशेष प्रकार की बड़ी उत्कृष्ट मादक गन्ध आती है। यहाँ गन्धमादन पर्वत की एक गुफा में राजा विशाल तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या से सन्तुष्ट होकर भगवान उनके सामने प्रकट हुए। भगवान ने प्रकट होकर कहा'राजन् ! हम तुम्हारी तपस्या से सन्तुष्ट हैं, तुम जो चाहो वरदान मांगो।'
बद्रीनाथ से बद्रीविशाल जी
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
राजा ने भगवान को प्रणाम किया और उनकी पूजा करके विनीत भाव से कहा- 'भगवन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरा गया हुआ राज्य मुझे फिर से मिल जाए, जिससे मैं विधिवत् यज्ञों द्वारा आपकी पूजा कर सकूँ और राज्य सुख भोगू। भगवान ने कहा- 'राजन् ! तुम भूल कर रहे हो। यहाँ आकर तो फिर लौटना नहीं होता। राज्य की इच्छा छोड़ो और यहाँ तपस्या करो।" राजा ने आग्रह -किया- 'नहीं भगवन् ! मेरा इच्छा अभी राज्य करने की है। मुझे ऐसा है। वरदान दीजिये।' तब भगवान ने कहा- 'अच्छी बात है, राज्य तो तम्हें मिल ही जाएगा साथ ही हमारी यह पुरी तम्हारे नाम से विख्यात होगी और हमारे नाम के साथ तुम्हारा नाम भी जुड़ा रहेगा। जो हमारे नाम के साथ तुम्हारा नाम लेंगे उन्हें अक्षय पुण्य होगा।' इस प्रकार भगवान की पुरी 'विशालापुरी' और भगवान श्रीबद्रीनाथ', बद्रीनाथ से 'श्रीबद्री विशाल जी' कहलाये। भगवान श्री बद्रीविशाल जी दया के सागर, पूर्णकाम तथा भक्तवत्सल हैं। वे अपने भक्तों से अत्यधिक प्रेम करते हैं और अपने नाम के साथ उनका नाम जोड़कर उन्हें विशेष आदर देते हैं। आज भी भगवान श्री बद्रीविशाल जी का बद्रीक्षेत्र तीनों लोकों में दुर्लभ है। इसका सच्चे मन से स्मरण करने मात्र से महापातकी मनुष्य भी पाप रहित होकर मृत्यु के पश्चात् मोक्ष के भागी बन जाते हैं। स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में अनेक तीर्थ हैं, परंतु बद्रीनाथ तीर्थ के समान दूसरा कोई तीर्थ न हुआ है, न होगा।
बहुनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसासु च।
बदरी सदृशं तीर्थ न भूतं न भविष्यति।।
(स्कन्द पुराण)
तप, योग और समाधि से तथा सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह बद्रीविशाल भगवान के भली-भांति दर्शन मात्र से मिल जाता है।
बद्रीनाथ से बद्रीविशाल जी
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath