भगवान नर-नारायण की उत्पत्ति
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध के चतुर्थ अध्याय में भगवान नारायण (विष्णु जी) के अवतारों का वर्णन है, इसमें नर-नारायण को भगवान नारायण का अंशावतार कहा गया है, उन्होंने तप मार्ग प्रदर्शित करने के लिए यह अवतार धारण किया। नर-नारायण नामक दो भाई हुए हैं, जिन्होंने बद्रिकाश्रम में उग्र तपस्या की। जिसके प्रतीक स्वरूप बद्रिकाश्रम में नर-नारायण नामक पर्वत है। देवी भागवत में नर-नारायण की कथा का चतुर्थ स्कध में मनोरम वर्णन है। इसके अतिरिक्त वामन पुराण (द्वितीयोध्याय), पद्म पुराण (द्वितीयोध्याय) तथा विष्णुघमोत्तर पुराण के पूर्वाद्ध में भी भगवान नर-नारायण की कथा का वर्णन है। भगवान नर-नारायण की अद्भुत कथा इस प्रकार है।श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
भगवान नर-नारायण की उत्पत्ति
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
नर-नारायण की उत्पत्ति मष्टि के आदि में भगवान ब्रह्मा ने अपने मन से 10 पुत्र उत्पन्न किये। संकल्प से अयोनिज उत्पन्न हुए, ये मानस पुत्र मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त, पुलह, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष और नारद हैं। इनके द्वारा ही आगे समस्त सृष्टि उत्पन्न हुई। इसके अतिरिक्त ब्रह्माजी के दायें स्तन से धर्मदेव तथा पृष्ठ भाग से अधर्म उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष प्रजापति का विवाह मनु पुत्री प्रसूती से हुआ। प्रसूती से दक्ष प्रजापति की 16 कन्यायें उत्पन्न हुई। उनमें से 13 कन्याओं का विवाह धर्म से हुआ तथा एक कन्या का विवाह अग्नि से, एक का पितृगण से तथा अन्य एक का विवाह शिवजी से सम्पन्न हुआ। जिनका विवाह धर्म से हुआ उनके नाम इस प्रकार हैंश्रद्धा, मैत्री, दया, शांति, तुष्टि, पुष्टि, क्रिया, उन्नति, बुद्धि, मेधा, तितिक्षा, ही (लज्जा) तथा मूर्ति। धर्मदेव अपनी सभी पत्नियों से स्नेह करते थे, परंतु सबसे छोटी पत्नी मूर्ति से उन्हें विशेषस्नेह था। समय आने पर धर्मदेव की सभी पत्नियों ने एक-एक पुत्र रत्न को उत्पन्न किया। देवी मूर्ति के दो पुत्र हुए- नर एवं नारायण। वे अपनी समस्त माताओं एवं भाईयों से समान स्नेह करते थे। नर-नारायण ने अपनी माता मूर्ति | की अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति से सेवा की। उनकी सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर माता मूर्ति ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, तो नर-नारायण ने कहा- 'हे माँ ! यदि आप सचमुच हम पर प्रसन्न हैं तो हमें वरदान दीजिए कि हमारी रुचि सदैव तप में रहें और घरबार छोड़कर हम सदा तप में निरत रहें।' माता को यह कैसे अच्छा लगता कि मेरे प्राणों से भी प्यारे पुत्र घरबार छोड़कर चले जायें, परन्तु वे वरदान देने का वचन दे चुकी थी। अतः दुःखी मन से उन्होंने अपने पुत्रों को तपस्या करने की आज्ञा दे दी। तब दोनों भाई नर-नारायण बद्रिकाश्रम में जाकर तपस्या करने लगे। उनके यहाँ रहकर तपस्या करने के कारण यह स्थान नर-नारायण या नारायणाश्रम कहलाया।
भगवान नर-नारायण की उत्पत्ति
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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