भगवान नारायण का नर को वरदान
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
बद्रिकाश्रम में नर उग्र तपस्या करने लगे उनकी तपस्या को देखकर भगवान नारायण अत्यन्त सन्तुष्ट हुए। प्रसन्न होकर उन्होंने नर से वरदान मांगने को कहा। नर ने कहा- 'मेरे लिए इससे बढ़कर और क्या वर होगा कि आप मुझ पर प्रसन्न हैं? आपकी प्रसन्नता ही मेरे लिए महान वर है।'श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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तब भगवान नारायण ने कहा- 'मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुमको वरदान देता हूँ कि मेरे तुमसे बड़ा होने पर भी तुम्हारा नाम पहले लिया जायेगा, फिर मेरा। जो तुम्हारा नाम लेकर मेरा नाम लेंगे, उन्हें असीम पुण्य प्राप्त होगा।' इसलिए जहाँ भी दोनों भाईयों के नाम लिये जाते हैं वहाँ छोटा होने पर भी नर का नाम पहले फिर नारायण का नाम लिया जाता है। यह भगवान नारायण का नर को वरदान है। नर ने एक वरदान यह भी मांगा कि आप प्रसन्न हैं तो मेरा सारथित्व स्वीकार कीजिए। यह सुनकर नारायण हंसे और बोले- 'भावना के वशीभूत होकर तुम ऐसा कह रहे हो। परन्तु इस जन्म में तो हमने तपस्वी वेष धारण किया है इसलिए इस जन्म में तो नहीं, अगले जन्म में तुम्हारी इस इच्छा को पूर्ण करेंगे।' । इसलिए अगले जन्म में नर अर्जुन हुए और नारायण ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया। महाभारत में श्री कृष्ण रूप में अर्जुन का सारथी बनकर भगवान ने नर को दिया वरदान पूर्ण किया।
भगवान नारायण का नर को वरदान
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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