भगवान नारायण के उरू से उर्वशी की उत्पत्ति
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
Story of Shri Badrinath
भगवान नर-नारायण बद्रिकाश्रम में घोर तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या के तेज तथा प्रभाव से इन्द्र घबरा गये कि कहीं मेरा इन्द्रासन न छिन जाए। अतः वे भगवान नर-नारायण के पास आये और मधुर वाणी में उनसे कहने लगे- 'ओ तपस्वियों ! मैं तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ। तुम मुझसे जो चाहो वरदान माँग लो।'श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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परन्तु भगवान नर-नारायण ने उनकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। तब इन्द्र और भी घबरा गये और उन्होंने भगवान के तप में विघ्न डालने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने कामदेव, बसन्त और अप्सराओं को भगवान नर-नारायण की तपस्या में विघ्न डालने के लिए जा। बसन्त ने वहाँ का वातावरण मादक बना दिया और अप्सरायें गीत एवं नृत्य आदि कामोद्दीपक हाव-भाव से भगवान को मोहित करने का प्रयास करने लगीं। गाने, बजाने तथा नाचने की ध्वनि सुनकर भगवान ने नेत्र खोले। उनकी तेजमय दृष्टि देखकर अप्सरायें भयभीत हो गयीं कि कहीं ये महर्षि अपने तपोबल से हमें भस्म न कर दें। 7 उन्हें भयभीत देखकर भगवान ने अत्यन्त मधुर वाणी में कहा- 'आप भयभीत न हों। मेरे आश्रम में पधारकर मेरा आतिथ्य स्वीकार कीजिए।'
भगवान नारायण ने उन अप्सराओं का मान मर्दन करने के लिए आम्र की डाली से अपनी जंघा को चीरा, जिसमें से सैंकड़ों देवांगनायें निकलीं। जो देवलोक की अप्सराओं से कई गुना सुन्दर थीं। सभी महर्षि की इस सामर्थ्य और तप को देखकर लज्जित हुए।
भगवान नारायण के उरू से उर्वशी की उत्पत्ति
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तब भगवान नारायण ने कहा- 'इनमें से आप उर्वशी को लेकर देवलोक जाइये और इन्द्र को इन्हें हमारी ओर से उपहार स्वरूप दीजिए।' साथ ही भगवान ने अन्य अप्सराओं को भी कोई वरदान मांगने को कहा। अप्सरायें भगवान के त्रिभुवन कमनीय रूप लावण्य को देखकर उन पर आसक्त हो गयीं और बोली- 'हे प्रभु । यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो हमें वरदान दीजिए कि हम सदा आपकी दासी बनी रहें।' अब भगवान असमंजस में पड़ गये और सोचने लगे कि मैंने इन्हें वरदान मांगने को क्यों कहा ? भगवान को क्रोधित देखकर भगवान नर ने उन्हें क्रोध शांत करने को कहा। तब भगवान नारायण अप्सराओं से बोले- 'हे देवियों ! यह अवतार मैंने तप मार्ग प्रदर्शित करने के लिए लिया है अतः इस जन्म में नहीं, किन्तु कृष्णावतार में मैं तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करूंगा।' - दूसरे जन्म में वे नोपियाँ हुईं और भगवान ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। - इस प्रकार भगवान नर-नारायण ने तप मार्ग प्रदर्शित किया और तपोव्रत धारण कर जीवन व्यतीत किया। बद्रिकाश्रम में भगवान नर-नारायण प्रतीक स्वरूप नर-नारायण पर्वत है।
भगवान नारायण के उरू से उर्वशी की उत्पत्ति
श्री बद्रीनाथ जी की कथा
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नारायण पर्वत पर भगवान श्री बद्रीविशाल जी का भव्य भवन है और नर पर्वत पर आवासीय भवन है। श्री बद्रीविशाल जी के मन्दिर से कुछ आगे जाने पर भगवान नर-नारायण की माता मूर्ति का मन्दिर विद्यमान है, जो उक्त पौराणिक कथा की सत्यता की पुष्टि करता है। भाद्रपद की पावन द्वादशी को प्रतिवर्ष यहाँ भव्य मेले का आयोजन होता है। कहा जाता है जब भगवान नर-नारायण तपस्या के लिए जाने लगे तब माता मूर्ति ने आँखों में आंसू भरकर कहा- 'देखना पुत्र ! ऐसे निर्मोही मत बन जाना, कभी-कभी अपनी माता समझकर मुझे दर्शन देते रहना।' भगवान ने हाँ तो कह दिया, किन्तु तपस्या और परिजनों के ममत्व में घोर विरोध है। अतः भगवान तपस्या में मग्न होकर अपने माता-पिता को भूल गये। परन्तु उनके माता-पिता अपने हृदय के टुकड़ों को कैसे भूल सकते थे, अतः वे अपने पुत्रों से मिलने बद्रिकाश्रम आये। भगवान नर-नारायण की बड़ी-बड़ी जटायें देखकर माता मूर्ति रोने लगी तब भगवान नारायण ने माता को धैर्य बधाया और कहा- 'हे माता ! मैं हर वर्ष भादों को द्वादशी को आपसे मिलने आया करूंगा।' यह सुनकर माता मूर्ति अत्यधिक प्रसन्न हुई। - यही कारण है कि प्रतिवर्ष भाद्रपद की पावन । द्वादशी को माता मूर्ति के मन्दिर के प्रांगण में | मेले का आयोजन होता है और रावल द्वारा पूजा, भी की जाती है।
भगवान नारायण के उरू से उर्वशी की उत्पत्ति
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