F राधा और कृष्ण की कहानी - bhagwat kathanak
राधा और कृष्ण की कहानी

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राधा और कृष्ण की कहानी

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भगवान् श्री कृष्ण का नाम है साक्षात् मन्मथ।

(विशेष :- इस लीला को ध्यान से स्मरण करें।)

कामदेव ने भगवान् को चुनौती दी कि मैंने दुनिया को परास्त कर दिया है, अब एक बार आपको भी परास्त करना चाहता हूँ। भगवान ने कहा कि तुम मेरे साथ कमरे में लड़ना चाहते हो या खुले मैदान में। कामदेव ने कहा कि दुनिया के साथ मैं बन्द कमरे में लड़ता हूँ, पर आप से मैं खुले मैदान में लड़ना चाहता हूँ ताकि संसार देखे कि कौन हार गया और कौन जीत गया।

भगवान ने कहा कि हम कृष्णावतार लेंगे, लाखों ऋषि-मनि गोपियों का दिव्य रूप धारण करके आयेंगे । वे गोपियों के रूप में श्रीकृष्ण के लिए ही शृंगार करके यमुना किनारे एकत्रित होंगे। उस समय हमारे तुम्हारे दो-दो हाथ हो जायेंगे। दुनिया देखेगी कि कौन हारा और कौन जीता।
राधा और कृष्ण क्या हैं ?
दो चकोर और दोऊ चन्दा,
सदा मिले रहत मानो कबहुँ मिले न ।
अनन्त प्यास और अनन्त प्रीति, इन दो रूपों में विभक्त हुई है भगवान् की भक्ति। जीव जब तक इस अनन्त प्रीति को अपने हृदय में नहीं लायेगा तब तक इसके जीवन में अखण्ड शान्ति का दर्शन नहीं हो सकता। राधा-कृष्ण सदा मिले हुए हैं, लेकिन अनुभूति यह होती है कि कभी मिले ही नहीं।

संयोग में वियोग की अनुभूति होती रहे, यह प्रेम की पराकाष्ठा है। इसका ध्यान में अनुभव करो। भगवान् श्रीकृष्ण गायें चराने जा रहे हैं, कितना सुन्दर स्वरूप है। हाथ में छड़ी है, माथे पर पसीना है, कौपीन पहने हैं, नंगे पैर हैं और धूप तेज है। क्या सुन्दर स्वरूप है भगवान् का! हम नमन करते हैं।

यमुना किनारे भगवती राधा रानी मिल गई।

दोनों ने एक दूसरे को देखा। उस रूप में दोनों इस प्रकार एक हो गए अर्थात् दर्शन में तल्लीन हो गए कि उन्हें अपनी गाएँ भूल गईं और राधारानी अपनी गागर उठाना भूल गई। एक अनन्त प्यास की कल्पना कीजिए। यह अनन्त प्यास है क्या? भगवान् से जब प्रेम होता है, तब जीवन ही बदल जाता है ।

भगवान् का प्राकट्य होता है तथा दिव्य लीलाएँ होती हैं। श्री राधा-कृष्ण जी का जो यह स्वरूप दर्शन है, यह अनन्त प्यास का स्वरूप है। दोनों एक दूसरे के दर्शन करते रहने पर भी तृप्त नहीं होते। इसलिए श्रीकृष्ण प्रेम एवं उनकी कृपा चाहिए तो श्री राधा रानी जी का चिन्तन करो।

श्रीवृंदावन धाम में जय श्री राधे-राधे की ही गूंज होती रहती है।वहाँ भगवान् श्री कृष्ण मिलते हैं तीव्र चाहना करने वालों को, यह सत्य है, परन्तु साधारण जीव उन्हें जान नहीं पाते। श्री राधा रानी जी का चिन्तन करने से भगवान् श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं।

राधा और कृष्ण की कहानी

श्री राधा रानी जी विचार करती हैं कि यह भक्त मेरे प्राणेश्वर का नाम ले रहा है, इसलिए भगवती राधा जी उसके हृदय में विराज जाती हैं और जिसके हृदय, कष्ठ और जिह्वा में राधा रानी जी निवास कर गईं, श्रीकृष्ण तो उस भक्त के पीछे-पीछे दौड़ते नजर आते हैं।

राधा रानी उनकी हैं और वे राधा जी के हैं।

प्रीति का सिन्धु राधा-कृष्ण हैं। जो उद्वेलित (खींच वाला) प्रेम है, जो तरंगित हो रहा है, वह एकदम छलछलाता हुआ आनन्द है। हमें इसी आनन्द को तो प्राप्त करना है। जो साधक, भक्त प्रभु के रंग में रंग जाते हैं, उनकी तो बातें ही निराली होती हैं।

प्रभु से प्रेम करके तो देखो! भगवान् की कृपा का अनुभव किसी-किसी को होता है। उस समय श्री वृन्दावन धाम में जितनी गोपियाँ-गोप थे, पक्षी आदि थे वे सबके-सब ऋषि-महर्षि थे। भगवान् की लीलाओं का आस्वादन करने के लिए, भगवान् की बांसुरी की मधुर तान श्रवण करने के लिए वे दिव्य सिद्धयोगी, ऋषि-मुनि वृन्दावन में आ गए।

प्रभु की ये रास लीलाएँ कोई काम-क्रीड़ाएँ नहीं हैं, अपितु ये दिव्यानन्द का स्रोत केन्द्र हैं। आत्मानन्द का स्वरूप जब किसी के हृदय में छलकता है, तो उसकी सारी इन्द्रियाँ उस अलौकिक आनन्द में थिरक उठती हैं। श्री राधाकृष्ण बीच में होते हैं और गोपियाँ चारों ओर नाचती हैं।

वे नाचती हैं अपने सुख के लिए नहीं, बल्कि श्याम सुन्दर को प्रसन्न करने के लिए। इसका रहस्य समझो। आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मा हृदय में भक्ति और बुद्धि के साथ स्थिर रहती है और इन्द्रियाँ इसके चारों तरफ नाचती हैं। इन्द्रियाँ जो काम करती हैं, मानो वे नाचती रहती हैं।

आत्मा को सुखी बनाने के लिए इन्द्रियाँ काम करती हैं।

भगवत्प्राप्ति करनी है तो मनइन्द्रियों से भगवान् का ही चिन्तन करो और उन्हीं का ध्यान करो। सच्चे सन्त, महापुरुष एवं सद्गुरुजन अपने शिष्यों, भक्तों एवं अनुयायियों से कहते हैं कि जो प्रभु के दर्शन और दिव्य आनन्द हमें प्राप्त हुआ है, वह कृपा हम तुम सब पर करने आए हैं। जगत् के जीव जो माया में भटक रहे हैं, वे एक बार प्रभु की शरण में आ जाएँ।

सद्गुरुदेव भगवान् की कृपा से वे प्रभु के इस अनन्त आनन्द में ऐसे डूब जाएँ कि उन्हें संसार की सुध-बुध ही न रह जाए अर्थात् वे माया के चक्कर से सदा के लिए मुक्त हो जायें।परमात्मा मनुष्यों की तरह लीला इसलिए करते हैं ताकि उन जीवों का कल्याण हो।

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भगवान् ने सोचा कि सांसारिक जन विषयों की चर्चा करते, सुनते स्वयं को भूल जाते हैं तो मैं स्वयं भी ऐसी रसमयी क्रीडा करूँ जिससे कि जगत् के प्राणी मेरी ओर तथा मेरी दिव्य लीलाओं की ओर आकष्ट होकर सत्य-पथ पर आ जाएँ और मुझे प्राप्त कर लें। ईश्वर जीव का कल्याण करना चाहते हैं।

गोपियाँ भगवान का संस्पर्श पाकर परम सुख का अनुभव करता है।





जब कोई जीव सगुण-साकार ब्रह्म के संस्पर्श का अनुभव करेगा तो उसे भी अनन्त सुख की प्राप्ति होगी। कामकेलि का सुख क्षणिक, नाशवान और दु:खदायी है, परन्तु ईश्वर के संस्पर्श के आनन्द की कोई सीमा नहीं। भगवान् के सिमरण, ध्यान, पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान तथा नेक कर्मों का आनन्द व्यक्ति के जीवन में नित नवीन सुख-शान्ति और स्फूर्ति लाता है

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