dharmik pravachan in hindi

dharmik pravachan in hindi

आध्यात्मिक जीवन जीना है तो परमात्मा की ही शरण रहो

भगवान् की शरण ही जीव को कलिकाल के प्रभाव से बचा सकती है। जिस साधक का मन भगवान् में लग गया है या भगवान् ने उसके मन को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है, तो वही प्राणी भगवान् को प्राप्त कर सकता है। हमें प्रभु की स्मृति में रहना है। उन्हीं का आश्रय लेना है। भगवान् केवल भक्त के आशय (इच्छा) को ही देखते हैं, हृदय के पवित्र भावों को ही देखते हैं। उसके दोषों को नहीं देखते। जब साधक भगवान् की शरण में आ जाता है, तब भगवान् स्वयं उसके दोषों को, विकारों को दूर कर देते हैं। ऐसे प्रभु-आश्रित साधक, भक्त भगवान् की गोद में ही रहते हैं। ईश्वरीय भाव में रहने से आध्यात्मिक प्रगति तथा मन के भीतर जागृति हो जाती है। भगवद्-भजन, ध्यान, स्मरण तथा सत्संग से आन्तरिक भाव जागृत होकर प्रभु से प्रेम होता है। जो भक्त आन्तरिक प्रेम में तन्मय रहता है,

वह भगवान् के दिव्य आनन्द का अनुभव करता है।

भगवान् की ओर से उसे दिव्य-चक्षु प्राप्त होते हैं। वह भौतिक संसार से ऐसे निर्लिप्त रहता है, जैसे मक्खन पानी पर तैरता रहता है। भगवद्-भाव से साधक, भक्त का अंहकार नष्ट होता है, उसमें संसार के प्रति निर्लिप्तता आती है और विभूतियाँ (सिद्धियाँ) उसे आकर्षित नहीं कर पातीं। लंकापति रावण का भाई विभीषण चाहता था कि उसे लंका का राज्य मिले, इसलिए वह भगवान् श्री राम जी की शरण में गया तथा भक्तराज हनुमान जी से मित्रता की। उसने विचार किया कि ऐसे मुझे राज्याभिषेक होगा और प्रभु की कृपा से मेरा उद्धार भी होगा। भगवान श्री राम जी के दर्शन के बाद विभीषण को राजकाज पसन्द नहीं आया। भगवान श्री राम जी ने भक्त विभीषण से कहा-'दूसरों को शिक्षा देने के लिए तम राज्य करो। नहीं तो लोग कहेंगे कि विभीषण ने भगवान् राम की सेवा की उसे मिला क्या? तुम्हें राज्य करता देख उन्हें भी सन्तोष होगा और उनकी वृत्ति भी परम पिता परमात्मा में लगेगी। भगवान ने विभीषण को शिक्षा भी दी और उसे राज्य भी दिया। संसार के कर्तव्य भी करो और साथ-साथ आध्यात्मिक साधना भी, जिससे परमात्मा के प्रति विशुद्ध प्रेम जागृत हो। स्वभाव से बच्चों की तरह सरल होने पर सहज ही ईश्वर को लोग पा सकते हैं।

सरल स्वभाव का होने पर व्यक्ति में अहंकार नहीं रहता।

इससे सद्गुरुदेव का उपदेश तथा उनकी कृपा भी शीघ्र प्राप्त हो जाती है। व्यक्ति को प्रेम और भक्ति-भाव से अपने सद्गुरुजनों की सेवा-अर्चना करनी चाहिए। इससे भगवान् प्रसन्न होते हैं। भगवान् के साकार और निराकार दोनों रूप सत्य हैं। देहधारियों के मन में निराकार रूप अधिक समय तक स्थिर नहीं रहता। इसलिए व्यक्ति को सर्वप्रथम भगवान् के साकार रूप का ही आश्रय लेकर रहना चाहिए। देखो. चिड़ियाँ जब ऊपर उड़ती हुई थंक जाती हैं, तब वृक्ष की डाल पर आकर विश्राम करती हैं। निराकार के बाद साकार का ही आश्रय लिया जाता है। भगवान् पर विश्वास करना और उनकी शरण में रहना-इन दोनों बातों का होना आवश्यक है। जीवन का लक्ष्य है-ईश्वर-प्राप्ति । परमात्मा को पराया (दूसरा) मानोगे तो जीव और ब्रह्म की एकता कैसे होगी? परमात्मा 'पर' (दूसरे) नहीं अपितु वे तो 'स्व'(अपने) हैं। इसलिए उनसे भय नहीं अपितु उनसे आत्मीयता (अपनापन) हो। भगवान् की शरण में जाने से साधक, भक्त सदा के लिए अभय हो जाता है। परमात्मा में खिंचाव हुए बिना जीव का संसार के प्रति आकर्षण सर्वथा नहीं मिटता।
कर्मयोगी में त्याग का बल होता है,
ज्ञानयोगी में विवेक का बल का होता है,

पर भक्त में भगवान् के विश्वास का बल होता है।

भक्त इस विश्वास के बल पर बहुत शीघ्र विकारों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं को पार कर लेता है। जब कोई व्यक्ति व्याकुल होकर परमात्मा को पुकारता है तो वह प्रभु-दर्शनों का अधिकारी बन जाता है और परमानन्द को प्राप्त करता है। ईश्वर प्रेम-रस के समुद्र हैं। ईश्वर से मन लगाओ। उनके प्रेम-समुद्र में बिना संकोच कूद पड़ो। व्रज की गोपियों ने भी यही किया और प्रभु को पाया। सच्चिदानन्दसमुद्र में कूदने से भय नहीं है। वह तो अमृत का समुद्र है। उसमें डुबकी लगाने से जीव, भक्त अमर हो जाता है। जिस प्रकार अभ्यास करके गाना-बजाना, नाचना-कूदना सीखते हो, उसी प्रकार ईश्वर में मन लगाने का अभ्यास करना होता है। पूजा, अर्चना, जाप, सिमरन तथा ध्यान -इन सबका नियमित रूप से अभ्यास करना पड़ता है। ईश्वर और मृत्यु को सदा याद रखो। इससे मन परमात्मा में लगेगा और संसार से वैराग्य होगा। मन ईश्वर में रखो, सद्गुरुजनों, सच्चेसन्तों तथा महापुरुषों का संग करो और उनके द्वारा प्रदत्त तत्त्वज्ञान का श्रवण, मनन करते रहो। ईश्वर स्मरण, चिन्तन से मन शुद्ध होगा, फिर कोई डर नहीं।

भगवान् एक ही हैं केवल उनके नाम का भेद है।

जो ब्रह्म है, वही आत्मा है और वहां भगवान है। ब्रह्मज्ञानियों के लिए ब्रह्म, परमात्मा है और भक्तों के लिए भगवान हैं। शान और अज्ञान से परे हो जाओ, तभी ईश्वर को जान सकोगे।

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close