geeta saar in hindi
गीता सार इन हिंदी
( प्रथम अध्याय,पार्ट-1)
अर्जुन विषाद योग नामक प्रथम अध्याय
श्री भगवान कृष्ण के मुख से निकली यह पावन गीता जिसके श्रवण से अनेकों भक्तों ने अपने आपको कृतकृत्य और पावन किया और अनादि काल तक गीता जी का सानिध्य प्राप्त कर अपने आप को धन्य करते रहेंगे |
आज हम अपने इस भागवत कथानक- bhagwatkathanak.in website जो सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने वाली देश की उत्कृष्ट वेबसाइट है | इसमे क्रमशः एक से लेकर अठारह अध्यायों की संपूर्ण गीता के सार गर्भित अर्थ को जानेंगे |
दोनों सेनाओं के प्रधान प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन➡1-11
श्रीमद भगवत गीता के प्रथम अध्याय के एक से ग्यारह श्लोक तक महाभारत के विभिन्न योद्धाओं का परिचय है, जिसे हम संक्षेप में जानेंगे |
महाराज धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि- युद्ध भूमि पर खड़े मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया बताओ ? तब संजय बोलते हैं - महाराज सुनिए महाभारत युद्ध के विषय में मैं आपको बतला रहा हूं , सर्वप्रथम आप के जेष्ठ पुत्र दुर्योधन पांडवों की व्यूह रचना युक्त विशाल सेना को देखकर गुरुदेव द्रोणाचार्य के पास पहुंचा और उनसे कहा--
कि हे आचार्य श्रेष्ठ व्यूहाकार खड़ी हुई पांडवों के इस विशाल सेना को देखिए, इस सेना में बड़े बड़े योद्धा है जो धनुष विद्या में परम निपुण हैं | जैसे- भीम, अर्जुन के ही समान सूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान, काशीराज, पुरजित, कुंतीभोज, शैब्य, युधामन्यु, उत्तमौजा, सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु एवं द्रोपदी के पांचों पुत्र आदि सभी महान योद्धा हैं |
पांडवों की सेना के योद्धाओं के बारे में परिचय कराने के बाद, दुर्योधन द्रोणाचार्य जी से कहता है कि हे ब्राह्मण श्रेष्ठ , अब अपनी सेना में जो प्रधान योद्धा हैं उनको भी आप समझिए मैं आपको उनके बारे में बता रहा हूं |
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हमारी विशाल सेना में जो प्रधान हैं- आप (द्रोणाचार्य) पितामह भीष्म तथा कर्ण, संग्राम विजयी कृपाचार्य और इन्हीं के समक्ष योद्धा हैं, अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा |आचार्य श्रेष्ठ और भी बलशाली योद्धा है जो मेरे लिए जीवन का मोह छोड़ युद्धभूमि पर अनेकों प्रकार के शस्त्रों से सुसज्जित अपने आप को युद्ध रूपी अग्नि में झोंकने को उतावले हो रहे हैं |
दुर्योधन श्री द्रोणाचार्य से कहता है कि ब्राह्मण श्रेष्ठ हमारी वह सेना की टुकड़ी जिसके संरक्षक व नायक पितामह भीष्म हैं, वह भीम के नेतृत्व वाली सेना को जीतने में सुगम है | दुर्योधन कहता है कि है ब्राह्मण श्रेष्ठ आप सभी महान योद्धा पितामह भीष्म की सब ओर से रक्षा करें |
दोनों सेनाओं की शंख ध्वनि का कथन➡ 12-19
अब रणांगण में स्थित वीर अपने अपने विभिन्न प्रकार के शंखों को बजाते हैं, सर्वप्रथम पितामह भीष्म जो कौरवों की सेना में सबसे वयोवृद्ध हैं, उन्होंने सिंह की दहाड़ के समान भयंकर गर्जना करते हुए शंखनाद किए | उस शंख की ध्वनि सुनकर दुर्योधन का ह्रदय हर्ष से भर गया वह बड़ा प्रसन्न हुआ |
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इसके पश्चात विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र बजे जैसे शंख, नगारा, ढोल, मृदंग और नरसिंह आदि बाजे एक साथ बजने लगे, तो पितामह भीष्म के शंख ध्वनि और इन वाद्य यंत्रों का स्वर एक साथ हुआ वह स्वर बड़ा भयंकर हुआ |
इसके पश्चात सुंदर सफेद घोड़ों से युक्त रथ पर आरूढ़ भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये- श्री कृष्ण महाराज ने अपना दिव्य पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त और बलवान भीमसेन ने अपना पौड्रक नामक महाशंख बजाया |
कुंती पुत्र महराज युधिष्ठिर ने अपना दिव्य अनंत विजय नामक शंख को बजाया और वीर नकुल ने अपना सुघोष नाम का शंख बजाया, तथा सहदेव ने अपना मणि पुष्पक नामक दिव्य शंख बजाया|
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और भी महारथी जैसे श्रेष्ठ धनुष वाले काशीराज और महारथी शिखंडी एवं धृष्टद्युम्न तथा महान राजा विराट और जिसे जीता न जा सके ऐसा योद्धा सात्यकि , राजा द्रुपद एवं द्रोपती के लाडले वीर पांचों पुत्र, अजानबाहू सुभद्रा पुत्र वीर अभिमन्यु इन सभी ने सब ओर से अलग-अलग शंख बजाए |
इस प्रकार सब बातें संजय ने महाराज धृतराष्ट्र को बताया और उनसे कहा कि हे महाराज धृतराष्ट्र पांडव पक्ष के अनेकों वीर अपने-अपने शंखो को एक साथ बजाए तो ऐसी तीव्र ध्वनि उत्पन्न हुई आकाश और पृथ्वी को गुजांते हुए आपके पक्ष वाली सेना के योद्धाओं के हृदय विदीर्ण कर दिए |
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