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राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा-एक सच्ची घटना-rajendra das ji maharaj ke pravachan

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राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा-एक सच्ची घटना-rajendra das ji maharaj ke pravachan

राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा-एक सच्ची घटना-rajendra das ji maharaj ke pravachan
राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा
rajendra das ji maharaj ke pravachan
राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा  rajendra das ji maharaj ke pravachan
एक सच्ची घटना- राजेंद्र दास जी महाराज कहते हैं एक घटना हम सुनाते हैं, सौराष्ट्र (गुजरात) में एक सुरेंद्रनगर जिला है ,उस जिले में एक तहसील है लख्तर वहीं लख्तर की यह घटना है, अब तो नर्मदा जी की नहर वहां पहुंच गई है तो पानी मिलने लगा सबको नहीं तो जल की बहुत समस्या थी |

पानी भी बरसात में कम बरसता था तो उस लख्तर शहर में बड़ा कस्बा है (तहसील है) उसमें एक ब्राम्हण देवता का कुआं है ,वह कुआं में ही जल मीठा था पूरा शहर नगर उसी से पानी पीता था भर के |

लेकिन पता नहीं कैसे वह जल बिगड़ गया खारी हो गया और खारी के साथ-साथ कड़वा हो गया कोई पी भी ले तो उसकी तबीयत बिगड़ जाए, कुल मिलाकर पीने का क्या कहें वह कुल्ला करने लायक तक नहीं रह गया |

उस कुएं का जल और हमारे महाराज जी यानी- गुरुदेव गणेश दास भक्त माली जी महाराज की कथा हो रही थी हम लोग सब थे वहां ,तो महाराज जी ने शबरी जी की कथा को कहा तो वह ब्राह्मण देवता ने सुना तो उन्होने सोचा जब शबरी के रज से चरण कमल से सरोवर का जल शुद्ध हो गया तो महाराज जी भी उच्च कोटि के संत हैं तो इनके चरण रज से हमारा कुआं का भी शुद्धीकरण हो ही जाएगा |
राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा
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कथा के बाद शाम रात का समय था वह परांत लेकर आया, महाराज जी से बोला चरण धोएंगे महाराज जी हम, शीतकालीन का समय था महाराज जी ने मोजा पहन रखा था, हमने बोला रहने दो भाई ठंडी का समय है क्यों परेशान करते हो |

महाराज जी बोले उनकी जिसमें प्रसन्नता हो कर लेने दो, उन्होंने मोजा उतार दिया उसने महराज जी के चरणों को धुल लिए और धोकर जैसे ही कुआं में डाले चरणामृत और सुबेरे जैसी उसका पानी निकला एकदम मीठा पानी हो गया |

अभी भी वह कुआं है जिसका कुल्ला करने लायक जल नहीं था वह ठीक हो गया एकदम मीठा , सुबह मेला इकट्ठा हो गया महाराज जी के सामने बात आई तो महाराज जी बड़े उदास हो गए , बोले देखो पंडित जी (हमसे पंडित जी कहते थे) झूठी प्रशंसा मत करो हमको प्रिय नहीं है मेरे पैर की कोई महिमा नहीं है यह एक ब्राह्मण के सरल श्रद्धा की महिमा है |

मेरे पैर में चमत्कार होता तो हमने कुछ कमा लिया होता इन पैरों से, हमारे पैरों की विशेषता नहीं यह तो ब्राह्मण के भाव की विशेषता है, ऐसी उनमें नम्रता थी |

तो भैया हमारे पुराणों और शास्त्रों में जो लिखा है वह झूठ नहीं है सत्य है |
राजेंद्र दास महाराज की भक्तमाल कथा
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