सूक्ति-सुधा-संग्रह, भक्ति उपासना

bhakti upasana in hindi
या वै साधनसम्पत्तिः पुरुषार्थचतुष्टये ।
तां विना सर्वमाप्नोति यदि नारायणाश्रयः ॥
- चारों पुरुषार्थोकी सिद्धिके लिये जिस साधनसम्पत्तिकी आवश्यकता है, उसके बिना ही मनुष्य सब कुछ पा लेता है, यदि उसने भगवान् नारायणकी शरण ली है।
_इसलिये भैया ! प्राणी अकाम हो या सकाम, निष्काम हो अथवा सर्वकामकामी, उसे एकमात्र तीव्र ध्यानयोग, भक्तियोगसे उन परम प्रभुकी ही आराधना कर कृतकृत्य हो जाना चाहिये-
अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः।
तीव्रण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥
(श्रीमद भागवत २ । ३।१०)
___ जो कुछ नहीं चाहता, जो सब कुछ चाहता है, अथवा जो केवल मोक्षकी इच्छा रखता है, वह उदारबुद्धि मानव तीव्र भक्तियोगके द्वारा परमपुरुष श्रीहरिकी आराधना करे।
- अब यहाँ इस प्रकारकी कुछ और संत-वाणियोंकी मधुरताका स्वाद लीजिये । नारदजी श्रीकृष्णसे कहते हैं
मनीषितं हि प्राप्नोति चिन्तयन् मधुसूदनम् ।
एकान्तभक्तिः सततं नारायणपरायणः ॥
(महा० शान्ति० अ० ३४३)
१-तभी तो'नाथ कृपा ही को पंथ चितवत दीन हौं दिन रात । होइ धौ केहि काल दीन दयाल जानि न जात ।।औरपासना कबहि देखाइ हौ हरिचरन' तथाकबहुँ ढरेंगे राम आपनि ढरनि' —की मधुर आशा लगी रही।
अनन्य भक्तिसे युक्त हो भगवान् नारायणकी शरण लेकर सदा उन मधुसूदनका चिन्तन करता रहता है, वह मनोवाञ्छित वस्तुको प्राप्त कर लेता है।
यदुर्लभं यदप्राप्यं मनसो यनगोचरम् ।
तदप्यप्रार्थितं ध्यातो ददाति मधुसूदनः ॥
(गरुड० पूर्व० २२२ । १२)
जो दुर्लभ है, जो अप्राप्य है, जो कभी मनकी कल्पनामें नहीं आ सकती, ऐसी वस्तुको भी, यदि भगवान् मधुसूदनका ध्यान किया जाय, तो वे बिना माँगे ही दे देते हैं।
मार्कण्डेयजी--
हृदि कृत्वा तथा कामानभीष्टं द्विजपुङ्गवाः ।
एक नाम जपेद्यस्तु स तत्कामानवाप्नुयात् ॥
(विष्णुधर्मो० ३ । ३४१ । ३८)
विप्रवरो ! जो हृदयमें कामनाएँ रखकर अपनेको प्रिय लगनेवाले किसी एक भगवन्नामका जप करता है, वह उन सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता है।
सप्तर्षिगण ध्रुवसे--
यद् भूनर्तनवर्तिन्यो सिद्धयोऽष्टौ नृपात्मज ।
तमाराध्य हृषीकेशमपवर्गोऽप्यदूरतः ॥
(स्कन्दपु. काशीखं० १९ । ११५)
राजकुमार ! आठों सिद्धियाँ जिनके भ्रूभङ्गमात्रके अधीन हैं, उन भगवान् हृषीकेशकी आराधना करनेपर मोक्ष भी दूर नहीं रह जाता।
महर्षि वाल्मीकि--
यश्च रामं न पश्येत्तु यं हि रामो न पश्यति।
निन्दितः स भवेल्लोके खात्माप्येनं विगहति ॥
जो श्रीरामको नहीं देखता, अथवा जिसे श्रीराम नहीं देखते, वह संसारमें निन्दित होता है । उसे अपनी आत्मा भी धिक्कारती रहती है।
सम्यगाराधितो विष्णुः किं न यच्छति देहिनाम् ।
ते धन्याः कृतपुण्यास्ते तेषां च सफलो भवः ।
यैर्भक्त्याराधितो विष्णुः हरिः सर्वसुखप्रदः ॥
(विष्णुधर्म)
यदि भगवान् विष्णुकी उत्तम रीतिसे आराधना की जाय तो वे देहधारी जीवोंको क्या नहीं दे देते हैं। जिन्होंने सम्पूर्ण सुखोंके दाता सर्वव्यापी श्रीहरिकी ___ भक्तिभावसे आराधना की है, वे धन्य हैं। वे पुण्यात्मा हैं और उनका जन्म सफल है।
चिन्त्यमानः समस्तानां क्लेशानां हानिदो हि यः।
समुत्सृज्याखिलंचिन्त्यं सोऽच्युतः किं न चिन्त्यते॥
जो ध्यानमें आते ही समस्त क्लेशोंका नाश कर देते हैं, सम्पूर्ण चिन्तनीय विषयोंको त्यागकर केवल उन्हीं भगवान् अच्युतका चिन्तन क्यों नहीं किया जाता ?
रूपमारोग्यमांश्च भोगांश्चैवानुषङ्गिकान् ।
ददाति ध्यायतो नित्यमपवर्गप्रदो हरिः ॥
मोक्षदाता श्रीहरि सदा ध्यान करनेवाले भक्तको रूप, आरोग्य, मनोवाञ्छित धन आदि तथा आनुषङ्गिक भोग भी देते हैं (फिर अन्तमें उसे मोक्ष प्रदान करते हैं)। _
अतिपातकयुक्तोऽपि ध्यायेन्निमिषमच्युतम्।
भूयस्तपस्वी भवति पङ्क्तिपावनपावनः ॥
अत्यन्त पातकोंसे युक्त होनेपर भी यदि मनुष्य पलभरके लिये श्रीअच्युतका चिन्तन कर ले तो वह फिर पंक्तिपावनोंको भी पवित्र करनेवाला तपस्वी हो जाता है।
सूक्ति-सुधा-संग्रह, भक्ति उपासना
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