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श्री कृष्ण चंद्र क्यों अर्जुन को इतना चाहते थे/क्यों उनके प्राण धनंजय में ही बसते थे ? geeta gyan saar hindi

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श्री कृष्ण चंद्र क्यों अर्जुन को इतना चाहते थे/क्यों उनके प्राण धनंजय में ही बसते थे ? geeta gyan saar hindi

श्री कृष्ण चंद्र क्यों अर्जुन को इतना चाहते थे/क्यों उनके प्राण धनंजय में ही बसते थे ? geeta gyan saar hindi

श्री कृष्ण चंद्र क्यों अर्जुन को इतना चाहते थे?

क्यों उनके प्राण धनंजय में ही बसते थे ? यह बात जो समझ जाए उसे श्री कृष्ण का प्रेम प्राप्त करना सरल हो जाता है ! प्रेम स्वरूप भक्तवत्सल श्यामसुंदर को जो जैसा जितना चाहता है उसे वे भी उसी प्रकार चाहते हैं | उन्हें पूर्ण काम को बल ऐश्वर्य धन या बुद्धि की चतुरता से कोई नहीं रिझा सकता | 

अर्जुन में लोकोत्तर शूरता थी, वे  आडंबर हीन इंद्र विजयी थे और सबसे अधिक यह कि सब होते हुए भी अत्यंत विनयी थे | उनके प्राण श्रीकृष्ण में ही बसते थे, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का पूरा भार श्री कृष्णचंद्र पर ही था, श्याम सुंदर ने ही अपने परम भक्त धर्मराज के लिए समस्त राजाओं को जीतने के लिए पांडवों को भेजा | 

उन मधुसूदन की कृपा से ही भीमसेन जरासंध को मार सके | 

इतने पर भी अपने मित्र अर्जुन को प्रसन्न करने के लिए युधिष्ठिर को चौदह सहस्त्र हाथी भगवान ने भेंट स्वरूप दिए | जिस समय महाभारत के युद्ध में अपनी ओर सम्मिलित होने का निमंत्रण देने दुर्योधन श्री द्वारकेश्वर के भवन में गए, उस समय श्री कृष्णचंद्र सो रहे थे दुर्योधन उनके सिरहाने तरफ एक आसन पर बैठ गए, अर्जुन भी कुछ पीछे पहुंचे और हाथ जोड़कर श्याम सुंदर के श्री चरणों के पास नम्रता पूर्वक बैठ गए | 

भगवान ने उठकर दोनों का स्वागत सत्कार किया दुर्योधन ने कहा मैं पहले आया हूं अतः आपको मेरी और आना चाहिए | श्री कृष्ण चंद्र ने बताया कि मैंने पहले अर्जुन को देखा है | लीलामय तनिक हंसकर कहा एक ओर तो मेरी नारायणी सेना के वीर सशस्त्र सहायता करेंगे और दूसरी और मैं अकेला रहूंगा, परंतु मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा | आपमें से जिन्हें जो रुचि हो ले लो किंतु मैंने अर्जुन को पहले देखा है, 

अतः पहले मांग लेने का अधिकार अर्जुन का है |

 एक ओर भगवान का बल उनकी सेना और दूसरी ओर शस्त्र हीन भगवान | एक ओर भोग और दूसरी ओर श्यामसुंदर , परंतु अर्जुन जैसे भक्तों को कुछ सोचना नहीं पड़ा उन्होंने कहा मुझे तो आपकी आवश्यकता है, मैं आपको ही चाहता हूं | दुर्योधन बड़े प्रसन्न हुए ! उसे अकेले शस्त्र हीन श्रीकृष्ण की आवश्यकता नहीं जान पड़ी |

भोग की इच्छा करने वाले विषयी लोग इसी प्रकार विषय ही चाहते हैं ! विषय भोग का त्याग कर श्री कृष्ण को पाने की इच्छा उनके मन में नहीं आती | श्री कृष्ण चंद्र ने दुर्योधन के जाने पर अर्जुन से कहा भला तुमने शस्त्र हीन अकेले मुझे क्यों लिया ?  तुम चाहो तो तुम्हें दुर्योधन से बड़ी सेना मैं दे दूं ?

अर्जुन ने कहा प्रभु आप मुझे मोंह में क्यों डालते हैं ! 

आपको छोड़कर मुझे तीनों लोकों का राज्य भी नहीं चाहिए | आप शस्त्र लें या ना लें पांडवों के एकमात्र आश्रय आप ही हैं | अर्जुन की यही भक्ति, यही निर्भरता थी, जिसके कारण श्री कृष्ण चंद्र उनके सारथी बने |

अनेक तत्ववेत्ता ऋषि-मुनियों को छोड़कर जनार्दन ने युद्ध के आरंभ में उन्हें ही अपने श्री मुख से गीता के दुर्लभ और महान ज्ञान का उपदेश किया | युद्ध में इस प्रकार उनकी रक्षा में वे दयामय लगे रहे जैसे माता अबोध पुत्रको सारे संकटों से बचाने के लिए सदा सावधान रहती है |

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