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राजेश्वरानंद रामायणी दृष्टांत प्रवचन हिंदी rajeshwaranand drishtant pravchan hindi

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राजेश्वरानंद रामायणी दृष्टांत प्रवचन हिंदी rajeshwaranand drishtant pravchan hindi

राजेश्वरानंद रामायणी दृष्टांत प्रवचन हिंदी rajeshwaranand drishtant pravchan hindi
 राजेश्वरानंद रामायणी जी 
उठ बेटा चल मेरे संग देख लिया संसार 
राजेश्वरानंद रामायणी दृष्टांत प्रवचन हिंदी rajeshwaranand drishtant pravchan hindi
राजेश्वरानंद रामायणी दृष्टांत प्रवचन हिंदी rajeshwaranand drishtant pravchan hindi
एक बालक था तो एक महात्मा जी के आश्रम में जाता सेवा करता सत्संग सुनता बड़ा सत्संगी था , एक बार वह दो दिन तक नहीं आया, जब आया तो महात्मा जी ने पूछा कहां रहे अभी तक भाई तो बोला महाराज मेरी सगाई हो गई |

महात्मा बोले बड़ा अच्छा-2 बोले लेकिन अब तुम हमसे गए , वह कुछ नहीं बोला दो महीने बाद पांच छः दिन तक नहीं आया |

जब आया महात्मा जी ने कहा अब कहां थे ? बोला मेरा विवाह हो गया , महराज ने कहा अब माता-पिता से गए, वह फिर चुप रह गया |

तीन साल बाद फिर चार दिन नहीं आया, बोले क्यों नहीं आए उसने कहा महाराज आपके सेवक के घर बालक का जन्म हुआ है, महात्मा बोले बड़ा अच्छा लेकिन अब तुम अपने आप से भी गए |

अब वो पीछे पड़ा कहा- महाराज समझ में नहीं आया आप नाराज हैं क्या ? महात्मा ने कहा नहीं नाराज क्यों नहीं हैं, बिल्कुल अच्छा है यह भी एक मार्ग है- प्रेय मार्ग है |

प्रेय मार्ग और श्रेय मार्गे दोही मार्ग हैं, कोई गलत  और सही की बात नहीं है, दोनों ठीक हैं | अरे भाई शहरों में दो सड़क होती हैं एक शहर के बीच से जाती है दूसरी शहर के बाहर से बाईपास आगे जाकर तो सड़क एक ही होती है |

तो मार्ग दो ही हैं जो विरक्त हैं, मानो वह संसार रूपी शहर के बाईपास रोड से निकल गए, जो गृहस्थ हैं वह बीच बाजार में बिचारे जाम में फंसते धक्का वक्का खाते जैसे बना वैसे किसी तरह अपनी गाड़ी निकाल कर जाते हैं |

आगे तो सड़क एक ही होनी है लेकिन भाई बड़ी बहादुरी है गृहस्थों की, बाईपास रोड तो वैसे भी खाली पड़ा रहता है चाहे कोई निकल जाए वह तो बना ही इसलिए है कि कोई झंझट ना हो,झंझट तो उनका है जो प्रवृत्ति के बाजार से निकलते हैं|
तो महात्मा जी ने कहा बुरी बात नहीं है विवाह भी ऐसा कुछ थोड़े ही है, एक आदमी कह रहा था विवाह देखो विवाह में चरित्र की प्रधानता हो विवाह में धर्म की प्रधानता हो विवाह में कर्म की प्रधानता हो कर्तव्य की प्रधानता हो प्रेम का आदर्श हो चरित्र का आदर्श हो तो विवाह है|

विवाह माने- वाह और जहां ना चरित्र ना कुछ वासना और दुनिया भर के विकृतियों से भरकर संबंध जुड़े वह विवाह नहीं होता वह विआह होता है जिसमें आह-आह ही बनी रहे |

तो महात्मा जी ने कहा भाई तुमने विवाह किया है तो बढिया है, वह बोला यह बात नहीं महाराज साफ-साफ कहो ?

आप कह रहे थे हमसे गये, माता पिता से गए, अपने आप से गए ऐसा क्यों बोला आपने |

महात्मा जी बोले निंदा थोड़े की थी मैंने यह कहा था सगाई हो गई माने अब तुम हमारे रास्ते में नहीं आओगे हमसे गए तुम्हारा मार्ग अलग है अब |

सादी होने पर कहा माता-पिता से गए तो माता-पिता का जितना ध्यान देते थे अब कम ही दे पाओगे क्योंकि यह भी जिम्मेदारी आ गई है |

जब बेटा हुआ यह बोले अपने आप से गये क्यों कि अब अपनी फिक्र कम करोगे बेटे की ज्यादा करोगे, बेटे के लिए यह हो जाए बेटे के लिए वह हो जाए |

बोला महाराज आप तो महात्मा हो इसीलिए ऐसा कहते हो संसार में कितना लोग किसको चाहते हैं मुझसे पूछो महात्मा बोले तू संसार में ही रह बोला नहीं-नहीं सच मे मेरा परिवार मेरे लिए जान भी दे सकते इतना प्यार करते |

महात्मा बोले समय आने पर पता लगेगा,वह बोला अच्छा ठीक है, कई वर्ष बीत गए आया पूंछा तो महात्मा बोले कभी बताएंगे |

फिर कई वर्ष बीत गए एक दिन पीछे पड़ा महाराज बताएं, महात्मा बोले तुम इतने दिन से हमसे योगाभ्यास सीख रहे हो , योगाभ्यास कर रहे हो ?

बोला हां महाराज कर रहा हूं बोले सांस तो रोक लेते होगे बोला हां अन्दर-अन्दर सांस चलती रहती है लोग समझते हैं बंद है |

ऐसा अभ्यास मैंने कर लिया है महात्मा बोले बस यही योग करना तू घर में जाकर कल |

उसने ऐसा ही किया हल्ला मच गया क्या हो गया क्या हो गया ,माता-पिता सब रोने लगे कई उपचार करने वाले आए पता ही ना चले क्या हुआ अंत में बोले इसके गुरु जी को बुलाओ |

साधु लोग तो ऐसे मौके पर याद आते हैं, बुलाए गए संत जी आए अब तो संत जी की पूरी योजना थी सबने पूंछा क्या हुआ महाराज बोले यह तो गया |

सब ने कहा महाराज जी इसे बचा लो किसी तरह संत ने कहा भाई मामला तो गंभीर है, लेकिन एक कटोरा दूध मगाया चीनी डाला उसमें बढ़िया अब मोहल्ले के लोग भी तमाशा देखने आ गए |

महात्मा जी ने वह चीनी डाला हुआ दूध का कटोरा ऐसे घुमाया गोल गोल घेरा देकर कुछ ऐसे ही मुंह चलाए जैसे मंत्र पढ़ रहे हों |

बोले बस एक ही उपाय है यह दूध का कटोरा जो पी लेगा वह मर जाएगा पर यह बच जाएगा, बोलो कौन तैयार है पिता ने रोते हुए कहा महाराज हम इसे चाहते तो बहुत हैं पर इतना भी नहीं चाहते |

अब उसकी उम्र पूरी हो गई है तो चला गया अब किसी के प्रारंभ से क्यों छेड़छाड़ करें |

मां बोली मैं तो पी लेती महाराज लेकिन मेरे जाने के बाद मेरे पति की सेवा कौन करेगा धर्म बिगड़ जाएगा |

पत्नी से कहा बहु तू पी लो, उसने कहा भगवान का बिधान है उसमें कोई क्या कर सकता है मैं अपने माता-पिता के घर चली जाऊंगी |

अब सब मोहल्ले वालों ने सोचा खिसको नहीं बाबा हम को दूध का कटोरा दिखाएगा बोलेगा पिओ, मना करते भी अच्छा नहीं लगता |

तो महात्मा जी ने कहा हम पीलें सभी ने कहा अरे महाराज संत तो परोपकार के लिए होते हैं परोपकार वचन मन काया संत स्वभाव- आप पी लो आपके आगे पीछे कोई है भी नहीं रोने वाला!

आप तो मरकर भी अमर हो जाएंगे हम आपकी समाधि बनवाएंगे और हर साल आपके यहां समाधि में मेला लगाएंगे |

अब महात्मा जी तो जानते थे कि कुछ होने वाला तो है नहीं अब तो वह सब सुन ही रहा था पडी पडा  |

पीकर दूध संत ने लीनी एक डकार यही बोले 
उठ बेटा चल मेरे संग देख लिया संसार |

बेटा देख लिया संसार ?

जिन्हें हम हार समझे थे हम गला अपना सजाने को |
वही अब नाग बन बैठे हैं हमारी कायाखाने को |

देखो सबसे ज्यादा दुखी आदमी को करती है आशा और जब आशा पूरी नहीं होती तो व्यक्ति छटपटाता है और कहता है हमें इनसे ऐसी आशा नहीं थी इनकी गलती है |

अपनी गलती नहीं देखता कि अरे आशा ही क्यों की थी , वह व्यक्ति उठा महाराज के चरणों में गिरा और उनके साथ ही वह वन को निकल गया समझ गया संसार की वास्तविक संबंध को कि सब स्वारथ के साथी हैं |

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