राजेश्वरानंद रामायणी- कविता
प्यार करो पर प्यार ना मागो
rajeshwaranand ji ki kavita
आशा ही तो परेशान करती है-आशा ही तो परेशान करती है ,सोचो जीवन में दुख सुख भरती है,
नहीं दूसरा दोषी कोई आशा ही निराश करती है क्षणभंगुर विषयों से सुख का स्थाई आधार ना मांगो |
प्यार करो पर प्यार न मांगो
प्यार करो पर प्यार ना मांगो ||
गैरों से क्या अपनों से भी सपनों का संसार ना मांगो-गैरों से क्या अपनों से भी सपनों का संसार ना मांगो,
तुम्हें दिखाई देती है जो बची हुई बस्ती यारों की
धोखे में मत आ जाना यह दुनिया है दुकानदारों की,
व्यवसाई से निश्छल मन का प्रेम भरा व्यवहार न मागो |
प्यार करो पर प्यार न मांगो
प्यार करो पर प्यार न मांगो ||
जिसने जगत बनाया जग में उसकी ही इच्छा चलती है - जिसने जगत बनाया जग में उसकी ही इच्छा चलती है ,
बात कभी की अलग हमेशा दिल की दाल नहीं गलती है ,
मुक्ति का उपाय सोचो कुछ भक्ति का भंडार ना मांगो |
प्यार करो पर प्यार न मांगो
प्यार करूं पर प्यार ना मांगो ||
जग को हरि का रूप समझ कर मन में भाव भक्ति का भर दो-जग को हरि का रूप समझ कर मन में भाव भक्ति का भर दो,
प्रभु की सत्ता सिन्धु सरिस सा अपना अहम विसर्जित कर दो,
छूट जाएगा रोना अपने होने का अधिकार ना मांगो |
प्यार करो पर प्यार ना मांगो
प्यार करो पर प्यार न मांगो ||
देखो फलदार वृक्षों को कितने नम्र रहा करते हैं- देखो फलदार वृक्षों को कितने नम्र रहा करते हैं, फल वाले होकर पत्थर का कठिन प्रहार सहा करते हैं,
सीखो यह सनेह देकर के बदले में सतकार ना मागो |
प्यार करो पर प्यार न मांगो
प्यार करो पर प्यार न मांगो ||
अनेक में एक यही तो मिलता है उपदेश यहां-अनेक में एक यही तो मिलता है उपदेश यहां,
सभी राम का रूप है पगले रंक और राजेश कहां,
इसी दृष्टि से सृष्टि बदल दो रिपु का भी प्रतिकार ना मागो |
प्यार करो पर प्यार न मांगो
प्यार करो पर प्यार ना मांगो ||
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राजेश्वरानंद रामायणी-कविता प्यार करो पर प्यार ना मांगो
rajeshwaranand ji ki kavita