आध्यात्मिक ज्ञान-भगवत प्राप्ति
adhyatmik gyan ki baatein hindi mein
- महर्षि अत्रि मुनि के द्वारा अध्यात्मिक ज्ञान की बातें-
इहैवात्तं वसु प्रीत्यै प्रेत्य वै कटुकोदयम् ।
तस्मान्न ग्राह्यमेवैतत् सुखमानन्त्यमिच्छता ॥
(पन० सृष्टि० १९ । २४३ )
प्रात हुआ धन इसी लोकमें आनन्ददायक होता है, मृत्युके बाद तो वह बड़े ही कटु परिणामको उत्पन्न करता है; अतः जो सुख एवं अनन्त पदकी इच्छा रखता हो, उसे तो इसे कदापि नहीं लेना चाहिये।
परः पराणां पुरुषो यस्य तुष्टो जनाईनः ।
स प्राप्नोत्यक्षयं स्थानमेतत्सत्यं मयोदितम् ॥'
(विष्णु पुराण १ । ११ । ४४ )
जो परा प्रकृति आदिसे भी परे हैं, वे परमपुरुष जनार्दन जिससे संतुष्ट होते हैं, उसीको वह अक्षयपद मिलता है—यह मैं सत्य-सत्य कहता हूँ।
न गुणान् गुणिनो हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि ।
नान्यदोषेषु रमते सानसूया प्रकीर्तिता ॥
जो गुणियोंके गुणका खण्डन नहीं करता, किसीके थोड़े-से गुणोंकी भी प्रशंसा करता है, दूसरेके दोष देखनेमें मन नहीं लगाता, उसके इस भावको अनसूया' कहते हैं ।
परस्मिन् बन्धुबर्गे वा मित्रे द्वेष्ये रिपो तथा ।
आपन्ने रक्षितव्यं तु दयैषा परिकीर्तिता ॥
परायों से हो या अपने भाई-बन्धुओंमेसे, मित्र हो, द्वेषका पात्र या वैर रखनेवाला हो, जिस-किसीको भी विपत्तिमें देखकर उसकी रक्षा करनी ही 'दया' कहलाती है ।
आनृशंस्यं क्षमा सत्यमहिंसा दानमार्जवम् ।
प्रीतिः प्रसादो माधुर्य मार्दवं च यमा दश ॥
अकरता (दया), क्षमा, सत्य, अहिंसा, दान, नम्रता, प्रीति, प्रसन्नता, मधुर वाणी और कोमलता--ये दस यम हैं।
शौचमिज्या तपो दानं स्वाध्यायोपस्थनिग्रहः ।
व्रतमौनोपवासं च स्नानं च नियमा दश ॥
पवित्रता, यज्ञ, तप, दान, स्वाध्याय, जननेन्द्रियका निग्रह, व्रत, मौन, उपवास और स्नान-ये दस नियम हैं ।
(अविस्मृति ३४, ४१, ४८, ४९)
आध्यात्मिक ज्ञान-भगवत प्राप्ति
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