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आध्यात्मिक ज्ञान की बातें adhyatmik gyan ki baten

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आध्यात्मिक ज्ञान की बातें adhyatmik gyan ki baten

आध्यात्मिक ज्ञान की बातें  adhyatmik gyan ki baten
आध्यात्मिक ज्ञान की बातें  adhyatmik gyan ki baten   नारद पुराण से
 विविध उपदेश- मां गंगा की महिमा

नास्ति गङ्गासमं तीर्थं नास्ति मातृसमो गुरुः । नास्ति विष्णुसमं दैवं नास्ति तस्वं गुरोः परम् ॥
गङ्गाके समान कोई तीर्थ नहीं है, माताके समान कोई गुरु नहीं है, भगवान् विष्णुके समान कोई देवता नहीं है तथा गुरुसे बढ़कर कोई तत्त्व नहीं है!

 नास्ति शान्तिसमो बन्धुर्नास्ति सत्यात्परं तपः । नास्ति मोक्षात्परो लाभो नास्ति गङ्गासमा नदी ॥
शान्तिके समान कोई बन्धु नहीं है, सत्यसे बढ़कर कोई तप नहीं है, मोक्षसे बड़ा कोई लाभ नहीं है और गङ्गाके समान कोई नदी नहीं है।
( नारद० पूर्व प्रथम० ६ । ५८, ६ । ६०)

संसार की असारता का वर्णन-
यौवनं धनसम्पत्तिः प्रभुत्वमविवेकता । एकैकमप्यनर्थाय किमु पत्र चतुष्टयम् ॥
(नारद० पूर्व प्रथम ७ । १५)

यौवन, धनसम्पत्ति, प्रभुता और अविवेक-इनमेसे एक-एक भी अनर्थका कारण होता है। फिर जहाँ ये चारों मौजूद हों वहाँके लिये क्या कहना !

नास्स्यकीर्तिसमो मृत्युर्नास्ति क्रोधसमो रिपुः । नास्ति निन्दासमं पापं नास्ति मोहसमासवः ॥ 

नास्स्यसूयासमाकीर्तिर्नास्ति कामसमोऽनलः । नास्ति रागसमः पाशो नास्ति सङ्गसम विषम् ॥
(नारद० पूर्व० प्रथम० ७ । ४१-४२) 

अकीर्तिके समान कोई मृत्यु नहीं है । क्रोधके समान कोई शत्रु नहीं है। निन्दाके समान कोई पाप नहीं है और मोहके समान कोई मादक वस्तु नहीं है; असूयाके समान कोई अपकीर्ति नहीं है, कामके समान कोई आग नहीं है, रागके समान कोई बन्धन नहीं है और आसक्तिके समान कोई विष नहीं है ।

दानभोगविनाशाश्च रायः स्युर्गतयस्त्रिधा । 
यो ददाति च नो भुङ्क्ते तद्धनं नाशकारणम् ॥ 
तरवः किं न जीवन्ति तेऽपि लोके परार्थकाः । 
यन्त्र मूलफलैर्वृक्षाः परकार्य प्रकुर्वते ॥ 
मनुष्या यदि विप्राय न परार्थास्तदा मृताः ।
( ना० पु० पूर्व० १२ । २४-२६ )

दान, भोग और नाश धनकी ये तीन प्रकारको गतियाँ हैं। जो न दान करता है, न भोगता है, उसका धन नाशका कारण होता है।

क्या वृक्ष जीवन-धारण नहीं करते ? वे भी इस जगत्में दूसरों के हितके लिये ही जीते हैं ।

जहाँ वृक्ष भी अपनी जड़ों और फलोंके द्वारा दूसरोका हितकार्य करते हैं, वहाँ यदि मनुष्य परोपकारी न हो तो वे मरे हुएके समान ही हैं।

हरीभक्ति का प्रभाव-
ये मानवा हरिकथाश्रवणास्तदोषाः
कृष्णाधिपमभजने रतचेतनाश्च । 
ते वै पुनन्ति च जगन्ति शरीरसङ्गात्
सम्भाषणादपि ततो हरिरेव पूज्यः ॥ 

हरिपूजापरा यत्र महान्तः शुद्धबुद्धयः । 
तत्रैव सकलं भद्रं यथा निम्ने जलं द्विज ॥
(ना० पूर्व० ४० । ५३-५४)

जो मानव भगवान्की कथा श्रवण करके अपने समस्त दोष-दुर्गुण दूर कर चुके हैं और जिनका चित्त भगवान् श्रीकृष्णके चरणारविन्दोंकी आराधनामें अनुरक्त है |

वे अपने शरीरके सङ्ग अथवा सम्भाषणसे भी संसारको पवित्र करते हैं। अतः सदा श्रीहरिकी ही पूजा करनी चाहिये ।

ब्रह्मन् ! जैसे नीची भूमिमें इधर-उधरका सारा जल सिमट-सिमटकर एकत्र हो जाता है, उसी प्रकार जहाँ भगवत्पूजापरायण शुद्धचित्त ___ महापुरुष रहते हैं, वहीं सम्पूर्ण कल्याणका वास होता है।
आध्यात्मिक ज्ञान की बातें
adhyatmik gyan ki baten
 नारद पुराण से 

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