F अकिञ्चनता क्या है ? akinchan kya hai hindi arth - bhagwat kathanak
अकिञ्चनता क्या है ? akinchan kya hai hindi arth

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अकिञ्चनता क्या है ? akinchan kya hai hindi arth

अकिञ्चनता क्या है ? akinchan kya hai hindi arth
 अकिञ्चनता क्या है ? 
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अकिञ्चनता क्या है ?   akinchan hindi arth
मैं अकेला हूं। कोई मेरा नहीं, मैं किसी का नहीं और स्पर्श, रस-गंध-वर्ण मेरे नहीं है। परमाणु के बराबर कोई भी द्रव मेरा नहीं है। ऐसा चिंतन अकिंचन धर्म कहलाता है। 

अकिञ्चनता जीव का वह अलंकार है जिसको धारण करने के बाद वह महान आत्मा हो जाता है , जिसने अपने अंदर अकिञ्चनता को सहेज लिया फिर वह दुख रूपी गड्ढे से बाहर निकल आता है और असीम सुख का अनुभव करता है |

  • अकिञ्चनता क्या है ? 

  1. किसी भी वस्तु का जो संग्रह करने का लोभ हमारे मन में दिमाग में बैठ जाता है उसे जो दूर कर दे वह अकिञ्चनता है |
  2. लोभ लालच से परे होने पर ही अकिञ्चनता आती है |
  3. अकिञ्चनता वह गुण है जिसको धारण करने के बाद जीव आत्मा मे परमात्मा को देखने लगता है |

  • अकिञ्चनता को धारण करना श्रेयस्कर है |
  ( पद्म पुराण सृष्टि खंड )  


तपःसंचय एवेह विशिष्टो धनसंचयात् ॥ 
इस लोकमें धन-संचयकी अपेक्षा तपस्याका संचय ही श्रेष्ठ है । 

त्यजतः संचयान् सर्वान् यान्ति नाशमुपद्वाः । 
न हि संचयवान् कश्चित् सुखी भवति मानद ॥ 
 जो सब प्रकारके लौकिक संग्रहोंका परित्याग कर देता है, उसके सारे उपद्रव शान्त हो जाते हैं । मानद ! संग्रह करनेवाला कोई भी मनुष्य सुखी नहीं हो सकता ।

यथा यथा न गृह्णाति ब्राह्मणः सम्प्रतिग्रहम् ।
तथा तथा हि संतोषाद् ब्रह्मतेजो विवर्धते ॥ 
ब्राह्मण जैसे-जैसे प्रतिग्रहका त्याग करता है, वैसेही-वैसे संतोषके कारण उसके ब्रह्म-तेजकी वृद्धि होती है। 

अकिंचनत्वं राज्यं च तुलया समतोलयन् । 
अकिंचनत्वमधिकं राज्यादपि जितात्मनः ॥
एक ओर अकिंचनता और दूसरी ओर राज्यको तराजूपर रखकर तोला गया तो राज्यकी अपेक्षा जितात्मा पुरुषकी अकिंचनताका ही पलड़ा भारी रहा।
(पद्म० सृष्टि० १९ । २४६-२४९ ) 


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