F मोक्षके चार द्वारपाल moksh ke marg in hindi - bhagwat kathanak
मोक्षके चार द्वारपाल moksh ke marg in hindi

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मोक्षके चार द्वारपाल moksh ke marg in hindi

 मोक्षके चार द्वारपाल moksh ke marg in hindi
 मोक्षके चार द्वारपाल 
moksh ke marg in hindi
 मोक्षके चार द्वारपाल   moksh ke marg in hindi
महर्षि वशिष्ठ जी के द्वारा यह पावन उपदेश जिसको धारण करने के बाद भगवत प्राप्ति निश्चित हो जाती है !

  • महर्षि वशिष्ठ जी के द्वारा उपदेश मोक्ष के चार साधन-
  • योगवाशिष्ठ  ग्रंथ से !


मोक्षद्वारे द्वारपालाश्चत्वारः परिकीर्तिताः । 
शमो विचारः संतोषश्चतुर्थः साधुसङ्गमः ॥ 
मोक्षके द्वारपर चार द्वारपाल कहे गये हैं—शम, विचार, संतोष और चौथा सत्सङ्ग ।

एते सेव्याः प्रयत्नेन चत्वारो द्वौ त्रयोऽथवा। 
द्वारमुद्घाटयन्त्येते मोक्षराजगृहे तथा ॥ 
पहले तो इन चारोंका ही प्रयत्नपूर्वक सेवन करना चाहिये । यदि चारोंके सेवनकी शक्ति न हो तो तीनका सेवन करना चाहिये; तीनका सेवन न हो सकने पर दो का सेवन करना चाहिये । 

एकं वा सर्वयत्नेन प्राणांस्त्यक्त्वा समाश्रयेत् । 
एकस्मिन् वशगे यान्ति चत्वारोऽपि वशं यतः ॥
इनका भलीभाँति सेवन होनेपर ये मोक्षरूपी राजगृहमें मुमुक्षुका प्रवेश होनेके लिये द्वार खोलते हैं। 

यदि दोके सेवनकी भी शक्ति न हो तो सम्पूर्ण प्रयत्नसे प्राणोंकी बाजी लगाकर भी इनमेंसे एकका अवश्य आश्रयण करना चाहिये। यदि एक वशमें हो जाता है तो शेष तीन भी वशमें हो जाते हैं। 
(योगवाशिष्ठ)

 इन्द्रियसंयम--मनकी समता 

अवान्तरनिपातीनि स्वारूढानि मनोरथम् । पौरुषेणेन्द्रियाण्याशु संयम्य समतां नय ॥
( योगवाशिष्ठ) 
मनोमय रथपर चढ़कर विषयोंको ओर दौड़नेवाली इन्द्रियाँ वशमें न होनेके कारण बीचमें ही पतनके गर्त्तमें गिरनेवाली है। अतः प्रबल पुरुषार्थद्वारा इन्हें शीघ्र अपने वशमें करके मनको समतामें ले जाइये।
 मोक्षके चार द्वारपाल 
moksh ke marg in hindi

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