F नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा Narmda ganga mahima - bhagwat kathanak
नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा Narmda ganga mahima

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नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा Narmda ganga mahima

नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा Narmda ganga mahima
 नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा 
Narmda ganga mahima 
नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा   Narmda ganga mahima
  • गङ्गा-नर्मदा-माहात्म्य !
  • महर्षि वशिष्ठ जी के द्वारा-
गङ्गा च नर्मदा तापी यमुना च सरस्वती। 
गण्डकी गोमती पूर्णा एता नद्यः सुपावनाः ॥ 
गङ्गा, नर्मदा, तापी, यमुना, सरस्वती, गण्डकी, गोमती और पूर्णा—ये सभी नदियाँ परम पावन हैं।

एतासां नर्मदा श्रेष्ठा गङ्गा त्रिपथगामिनी । 
दहते किल्बिषं सर्व दर्शनादेव राघव ॥ 
इन सबमें नर्मदा और त्रिपथगामिनी गङ्गा श्रेष्ठ हैं । रघुनन्दन ! श्रीगङ्गाजी दर्शनमात्रसे ही सब पापोंको जला देती हैं।

दृष्ट्वा जन्मशतं पापं गत्वा जन्मशतत्रयम् । 
स्नात्वा जन्मसहस्रं च हन्ति रेवा कलौ युगे ॥ 
कालियगमें नर्मदाका दर्शन करनेसे सौ जन्मोंके, समीप जानेसे तीन सौ जन्मोंके और जलमें स्नान करनेसे एक हजार जन्मोंके पापोंका वह नाश कर देती है ।

नर्मदातीरमाश्रित्य शाकमूलफलैरपि । 
एकस्मिन् भोजिते विप्रे कोटिभोजफलं लभेत् ॥ 
नर्मदाके तटपर जाकर साग और मूल-फलसे भी एक ब्राह्मणको भोजन करानेसे कोटि ब्राह्मणोंको भोजन देनेका फल होता है ।

गङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद् योजनानां शतैरपि ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स गच्छति ॥
जो सौ योजन दरसे भी गङ्गा-गङ्गा'का उच्चारण करता है, वह सब पापोंसे भक्त होता है और भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है।
(स्क० पु० प्रा० ध० मा० ३१ । ३-७)

नर्मदा और गंगा की अनुपम महिमा 

Narmda ganga mahima 

  • श्रीविष्णुकी आराधना 
प्राप्नोष्याराधिते विष्णौ मनसा यद्यदिच्छसि । 
त्रैलोक्यान्तर्गतं स्थानं किमु वत्सोत्तमोत्तमम् ॥ 
 ( श्रीविष्णु० १ । ११ । ४९ )
 विष्णुभगवान्की आराधना करनेपर तू अपने मनसे जो कुछ चाहेगा, वही प्राप्त कर लेगा; फिर त्रिलोकीके उत्तमोत्तम स्थानकी तो बात ही क्या है।

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