कुल, जननी और जन्मभूमिकी महिमा
कौन बढ़ाता है ?
श्री देवर्षि नारद और धर्मराज युधिष्ठिर के मध्य का संवाद-
समाहितो ब्रह्मपरो प्रमादी
शुचिस्तथैकान्तरतिर्जितेन्द्रियः ।
समाप्नुयाद् योगमिर्म महामना
विमुक्तिमाप्नोति ततश्च योगतः ॥
जो एकाग्रचित्त, ब्रह्मचिन्तनपरायण, प्रमादशून्य, पवित्र, एकान्तप्रेमी और जितेन्द्रिय है, वह महामना योगी इस योगमें सिद्धि प्राप्त करता है और उस योगके प्रभावसे मोक्षको प्राप्त हो जाता है।
कुलं पवित्रं जननी कृतार्था
वसुन्धरा भाग्यवती च तेन ।
विमुक्तिमार्गे सुखसिन्धुमग्न
लग्न परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ॥
जिसका चित्त मोक्षमार्गमें आकर परब्रह्म परमात्मामें संलग्न हो सुखके अपार सिन्धुमें निमग्न हो गया है, उसका कुल पवित्र हो गया, उसकी माता कृतार्थ हो गयी तथा उसे प्राप्त करके यह सारी पृथ्वी भी सौभाग्यवती हो गयी।
(स्कन्द० मा० कुमा० ५५ । १३९-१४०)
कुल जननी और जन्मभूमिकी महिमा
कौन बढ़ाता है ?
Who increases total motherhood and birth history glory?
कुल जननी और जन्मभूमिकी महिमा
कौन बढ़ाता है ?
Who increases total motherhood and birth history glory?