केनोपनिषद का सारांश ब्रह्म का स्वरूप kenopanishad ka saransh in hindi

 केनोपनिषद का सारांश ब्रह्म का स्वरूप 
kenopanishad ka saransh in hindi 
 केनोपनिषद का सारांश ब्रह्म का स्वरूप   kenopanishad ka saransh in hindi

  • जानें ब्रह्म का स्वरूप-

यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥
( केन० १ । ५)

जिसको कोई भी मनसे-अन्तःकरणके द्वारा नहीं समझ सकता, जिससे मन मनुष्यका जाना हुआ हो जाता हैयों कहते हैं, उसको ही तू ब्रह्म जान । मन और बुद्धिके द्वारा जानने में आनेवाले जिस तत्त्वकी लोग उपासना करते हैं, वह यह ब्रह्म नहीं है।

यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षुषि पश्यति ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥
(केन० १ । ६)

जिसको कोई भी चक्षुके द्वारा नहीं देख सकता, बल्कि जिससे मनुष्य नेत्र और उसकी वृत्तियोंको देखता है, उसको ही तू ब्रह्म जान । चक्षुके द्वारा देखनेमें आनेवाले जिस दृश्य वर्ग के लोग उपासना करते हैं यह ब्रह्म नहीं है |


नाहं मन्ये सुवेदेति नो न वेदेति वेद च ।
यो नस्तद्वेद तद्वेद नो न वेदेति वेद च ॥
( केन० २ । २)

मैं ब्रह्मको भलीभाँति जान गया हूँ यों नहीं मानता और न ऐसा ही मानता हूँ कि नहीं जानता; क्योंकि जानता भी हूँ। किंतु यह जानना विलक्षण है। हम शिष्यों से जो कोई ।

भी उस ब्रह्मको जानता है, वही मेरे उक्त वचनके अभिप्रायको भी जानता है कि मैं जानता हूँ और नहीं जानता ये दोनों ही नहीं हैं।

  • ब्रह्म को किसने जाना है किसने नहीं जाना-


यस्यामतं तस्य मतं मतं यस्य न वेद सः। 
अविज्ञातं विजानतां विज्ञातमविजानताम् ॥
( केन० २ । ३)

जिसका यह मानना है कि ब्रह्म जाननेमें नहीं आता, उसका तो वह जाना हुआ है और जिसका यह मानना है कि ब्रह्म मेरा जाना हुआ है, वह नहीं जानता क्योंकि जाननेका अभिमान रखनेवालोंके लिये वह ब्रह्मतत्त्व जाना हुआ नहीं है और जिनमें ज्ञातापनका अभिमान नहीं है, उनका वह ब्रह्मतत्त्व जाना हुआ है अर्थात् उनके लिये वह अपरोक्ष है ।

इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति
न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः ।
भूतेषु भूतेषु विचित्य धीराः
प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति ॥
(केन० २ । ५)

यदि इस मनुष्यशरीरमें परब्रह्मको जान लिया तो बहुत कुशल है । यदि इस शरीरके रहते-रहते उसे नहीं जान पाया तो महान् विनाश है। यही सोचकर बुद्धिमान् पुरुष प्राणी-प्राणीमें (प्राणिमात्रमें ) परब्रह्म पुरुषोत्तमको समझकर _ इस लोकसे प्रयाण करके अमृत (ब्रह्मरूप ) हो जाते हैं ।

 केनोपनिषद का सारांश ब्रह्म का स्वरूप 
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